CBI ने 51 इकाइयों को किया नामजद, 1038 करोड़ का कालाधन हांगकांग भेजा, जानिए और क्या है मामला
By भाषा | Published: January 6, 2020 07:28 PM2020-01-06T19:28:41+5:302020-01-06T19:28:41+5:30
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सूचना मिली थी कि 51 इकाइयों में से 48 के चालू खाते 1,038.34 करोड़ रुपये की राशि बाहर भेजने के लिए ही इन बैंकों की चार शाखाओं में खोले गए थे। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि 24 खातों का इस्तेमाल वस्तुओं के आयात के अग्रिम भुगतान के रूप में विदेशों में पैसा भेजने के लिए किया गया जिसके तहत 488.39 करोड़ रुपये की राशि डॉलर में भेजी गई।
वर्ष 2014-15 में कालेधन के तौर पर 1,038 करोड़ रुपये हांगकांग भेजने के आरोप में सीबीआई ने 51 इकाइयों को नामजद किया है। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
आरोप है कि इन 51 इकाइयों ने तीन सरकारी बैंकों- बैंक ऑफ इंडिया, भारतीय स्टेट बैंक और पंजाब नेशनल बैंक के अज्ञात अधिकारियों की मिलीभगत से 1,038 करोड़ रुपये का बेहिसाबी कालाधन हांगकांग भेजा। इन इकाइयों में से अधिकतर के मालिक चेन्नई निवासी हैं।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सूचना मिली थी कि 51 इकाइयों में से 48 के चालू खाते 1,038.34 करोड़ रुपये की राशि बाहर भेजने के लिए ही इन बैंकों की चार शाखाओं में खोले गए थे। सीबीआई ने आरोप लगाया है कि 24 खातों का इस्तेमाल वस्तुओं के आयात के अग्रिम भुगतान के रूप में विदेशों में पैसा भेजने के लिए किया गया जिसके तहत 488.39 करोड़ रुपये की राशि डॉलर में भेजी गई।
वहीं, 27 खातों का इस्तेमाल भारतीय पर्यटकों की विदेशी यात्राओं के लिए 549.95 करोड़ रुपये की राशि भेजने के लिए किया गया। अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई ने प्राथमिकी में 48 कंपनियों और तीन व्यक्तियों-मोहम्मद इब्राम्सा जॉनी, जिंटा मिढार और निजामुद्दीन को नामजद किया है।
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि वस्तुओं के आयात के संबंध में 24 कंपनियों में से 10 ने कम मात्रा में आयात किया, लेकिन आयात किया गया सामान और आयात का मूल्य कंपनियों द्वारा बैंकों को जमा किए गए बिल से मेल नहीं खाता था।
एजेंसी ने प्राथमिकी में आरोप लगाया, ‘‘आगे खुलासा हुआ कि आरोपियों और अन्य जो इस काम से जुड़े थे...को स्थानांतरित की गई राशि और बैंक खातों के सक्रिय रहने की अवधि के आधार पर कमीशन मिला तथा संबंधित बैंक अधिकारियों को नकद रिश्वत दी गई।’’
सीबीआई ने यह भी आरोप लगाया कि अधिकांश राशि 2015 की दूसरी छमाही में भेजी गई और कंपनियों का कारोबार लाखों में दिखाया गया, जबकि बाहर भेजी गई राशि करोड़ों में थी जिसे बैंक अधिकारियों ने ‘‘फर्जी तरीके और बेईमानी’’ से भेजना आसान बनाया।