कानून निर्माताओं के विरुद्ध दर्ज मामले उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते: न्यायालय

By भाषा | Updated: August 10, 2021 18:29 IST2021-08-10T18:29:37+5:302021-08-10T18:29:37+5:30

Cases registered against law makers cannot be withdrawn without permission of High Courts: Court | कानून निर्माताओं के विरुद्ध दर्ज मामले उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते: न्यायालय

कानून निर्माताओं के विरुद्ध दर्ज मामले उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते: न्यायालय

नयी दिल्ली, 10 अगस्त आपराधिक मामलों का सामना कर रहे नेताओं को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण आदेश में उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को राज्य अभियोजकों की शक्ति को कम कर दिया और कहा कि वे कानून निर्माताओं के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत दर्ज अभियोजन को उच्च न्यायालयों की अनुमति के बिना वापस नहीं ले सकते।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र सरकार और सीबीआई जैसी एजेंसियों द्वारा स्थिति रिपोर्ट दायर नहीं करने पर नाराजगी जताई तथा संकेत दिया कि नेताओं के विरुद्ध दर्ज मामलों की निगरानी करने के लिए उच्चतम न्यायालय में एक विशेष पीठ की स्थापना की जाएगी।

अदालत की सहायता के लिए नियुक्त न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा खबरों के आधार पर उल्लिखित उन तथ्यों के आलोक में उच्चतम न्यायालय का आदेश महत्वपूर्ण है जिनमें कहा गया था कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों ने सीआरपीसी की धारा 321 के इस्तेमाल से नेताओं के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने का अनुरोध किया था।

यह धारा अभियोजकों को मामले वापस लेने की शक्ति देती है। न्याय मित्र की रिपोर्ट में कहा गया था, “उत्तर प्रदेश सरकार संगीत सोम (मेरठ के सरधना से विधायक), सुरेश राणा (थाना भवन से विधायक), कपिल देव (मुजफ्फरनगर सदर से विधायक, जहां दंगे हुए थे) और नेत्री साध्वी प्राची के विरुद्ध अभियोजन वापस लेने का अनुरोध कर रही है।”

न्याय मित्र की रिपोर्ट में अन्य राज्यों में मामले वापस लेने का भी हवाला दिया गया है। पीठ ने कहा, “पहला मुद्दा मामले वापस लेने के लिए सीआरपीसी की धारा 321 के गलत इस्तेमाल का है। हमें यह निर्देश देना उचित लग रहा है कि सांसद और विधायक के विरुद्ध कोई भी अभियोजन उच्च न्यायालय से अनुमति लिए बिना वापस नहीं लिया जा सकता।”

एक अन्य आदेश में न्यायालय ने कहा कि सांसदों और विधायकों के विरुद्ध मामले की सुनवाई कर रहे विशेष अदालतों के न्यायाधीशों का अगले आदेश तक स्थानांतरण नहीं किया जाएगा। हालांकि, उक्त न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति और मौत जैसे अपवादों में आदेश लागू नहीं होगा।

उच्चतम न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को निर्देश दिया कि वे कानून निर्माताओं के विरुद्ध उन मामलों की जानकारी, एक तय प्रारूप में सौंपें, जिनका निपटारा हो चुका है। पीठ ने उन मामलों का भी विवरण मांगा है जो निचली अदालतों में लंबित हैं।

पहले दिए गए आदेश के निर्देशानुसार, स्थिति रिपोर्ट दायर नहीं करने पर नाराजगी जताते हुए पीठ ने कहा कि केंद्र और उसकी एजेंसियों को आदेश का पालन करने का अंतिम अवसर दिया जाता है।

इसके साथ ही न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 25 अगस्त की तारीख तय कर दी।

इस मामले में न्यायालय की मदद के लिये नियुक्त न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और वकील स्नेहा कालिता की रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद पीठ ने आदेश दिया।

पीठ, भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2016 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सांसदों और विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई तथा दोषी ठहराए गए नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

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Web Title: Cases registered against law makers cannot be withdrawn without permission of High Courts: Court

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