नयी दिल्ली, 29 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस्लाम, पवित्र कुरान और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक बयान वाले एक प्रकाशन के खिलाफ एक वाद को खारिज कर दिया है और कहा कि वादी किसी के व्यक्तिगत कानूनी अधिकार या कानून के किसी प्रावधान के उल्लंघन की बात को दर्शा नहीं सके।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि उन्होंने प्रकाशन के गुण-दोषों या विषयवस्तु का अध्ययन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत धार्मिक भावनाओं को कोई आघात कानून के तहत कार्रवाई योग्य गलत बात नहीं है और इसमें सबसे अच्छा यह हो सकता है कि आपराधिक कानून के तहत मामला दर्ज किया जा सकता था , लेकिन इससे उन्हें मामले पर विचार करने का अधिकार नहीं मिल जाएगा।
न्यायाधीश ने व्यवस्था दी कि सैयद वसीम रिजवी द्वारा लिखित पुस्तक ‘मुहम्मद’ के खिलाफ कमर हसनैन नामक व्यक्ति का वाद विचारणीय नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि वादी हसनैन को अपने सभी अधिकारों का इस्तेमाल करने और कानून के तहत सभी उपायों का उपयोग करने का अधिकार होगा।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।