कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा, "दहेज प्रताड़ना की धारा 498A तो 'कानूनी आतंकवाद' की शक्ल ले चुका है"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 22, 2023 02:03 PM2023-08-22T14:03:13+5:302023-08-22T14:07:47+5:30
कलकत्ता हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के संबंध में प्रयोग होने वाले धारा 498ए के बारे में बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि लोगों द्वारा इसका गलत इस्तेमाल ऐसे हो रहा है, मानो यह "कानूनी आतंकवाद" हो गया है।
कोलकाता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के संबंध में प्रयोग होने वाले धारा 498ए के बढ़ते दुरुपयोग के बारे में बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि लोगों को प्रताड़ित करने के लिए इसका गलत इस्तेमाल इस तरह से हो रहा है मानो यह "कानूनी आतंकवाद" हो गया है।
समाचार वेबसाइट एनडीटीवी के अनुसार कलकत्ता हाईजकोर्ट ने बीते सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कुछ महिलाओं के प्रति बेहद कड़ी दिप्पणी करते हुए कहा कि इन्होंने दहेज प्रताड़ना के खिलाफ प्रयोग में लायी जाने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए का दुरुपयोग करके "कानूनी आतंकवाद" फैलाया है।
कोर्ट ने कहा कि दहेज प्रथा के खिलाफ प्रयोग में लाये जाने वाला यह प्रावधान उन्हें पति या पति के परिवार के सदस्यों की क्रूरता से बचाने के लिए है न कि इसके जरिये वो किसी को प्रताड़ित करें।
कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सुभेंदु सामंत की सिंगल बेंच ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति और उसके परिवार द्वारा उसकी अलग हो चुकी पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को चुनौती देने वाले याचिका की सुनवाई करते हुए की।
जस्टिस सुभेंदु सामंत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "धारा 498ए का प्रावधान समाज से दहेज की बुराई को खत्म करने के लिए लागू किया गया है। लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि उपरोक्त प्रावधान का दुरुपयोग करके नए तरह का कानूनी आतंकवाद फैलाया जा रहा है।"
इसके साथ ही जस्टिस सामंत ने यह भी कहा कि केस के रिकॉर्ड को देखते हुए और मौजूद मेडिकल साक्ष्य के साथ गवाहों के बयानों से आरोपी व्यक्ति और उसके परिवार के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का कोई अपराध साबित नहीं हुआ है। इस कारण से कोर्ट पीड़ित महिला की शिकायत के आधार पर निचली अदालत द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का आदेश देती है।
अदालत ने कहा, "वास्तव में शिकायतकर्ता पीड़िता द्वारा पति के खिलाफ लगाया गया सीधा आरोप केवल उसके बयान से है और वह बयान किसी भी तरह के दस्तावेजी या चिकित्सा साक्ष्य से मजबूत नहीं होते हैं। इस कारण यह मामला असत्य प्रतीत होता है। कानून शिकायतकर्ता पीड़िता को धारा 498ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करने की अनुमति देता है, लेकिन उसके लिए पीड़िता के पास किसी भी तरह का ठोस सबूत होना आवश्यकत है।"
अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि यह शुरू से प्रमाणित है कि पीड़िता उस व्यक्ति के परिवार के साथ नहीं बल्कि एक अलग घर में रह रही थी। शिकायत की याचिका में लगाए गए सारे आरोप मनगढ़ंत हैं।
कोर्ट ने कहा कि कहीं से भी यह प्रमाणित नहीं होता है कि शिकायतकर्ता पर उसके पति या पति के परिवार वालों ने कभी भी हमले या यातना का प्रयास किया हो। शादी के बाद से महिला ने कभी भी अपने ससुराल वालों के साथ रहने का इरादा नहीं किया, जिसके कारण याचिकाकर्ता पति और वे अलग-अलग रह रहे थे।