CAG Report: शराब नीति से 2002 करोड़ रुपये का नुकसान?, जानें 8 मुख्य बातें, क्या होगा केजरीवाल और सिसोदिया का!
By सतीश कुमार सिंह | Updated: February 25, 2025 19:31 IST2025-02-25T19:30:08+5:302025-02-25T19:31:32+5:30
CAG Report: जुलाई 2022 में उपराज्यपाल वी के सक्सेना की सिफारिश पर हुई सीबीआई जांच के बाद नीति को रद्द कर दिया गया था।

file photo
नई दिल्लीः मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पेश किया गया। कैग रिपोर्ट को लेकर दिल्ली विधानसभा में भाजपा और आप विधायकों में जमकर हो हल्ला हुआ। शराब नीति जिसे नवंबर 2021 में लागू किया गया था और 2022 में खत्म कर दिया गया था, जिससे दिल्ली सरकार को 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। शराब नीति पिछली आप सरकार के गले की फांस थी और इसके कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया समेत इसके कई नेता सलाखों के पीछे पहुंच गए थे।
इस नीति से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों को इस महीने के विधानसभा चुनावों में AAP की हार और 27 साल के अंतराल के बाद दिल्ली में भाजपा की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में भी देखा जाता है। रिपोर्ट, जिसे विधानसभा में भारी हंगामे के बीच पेश किया गया। कई AAP विधायकों को निलंबित भी किया गया। भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि आज CAG की रिपोर्ट विधानसभा में रखी गई। ये (AAP) वे लोग हैं जो पारदर्शिता की बात करते हुए सत्ता में आए थे। हमारी मांग है कि अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जनता को इसका जवाब दें।
CAG Report: दिल्ली आबकारी नीति पर विधानसभा में प्रस्तुत कैग रिपोर्ट की खास बातें
1. आबकारी राजस्व को 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान: कमजोर नीति ढांचे से लेकर नीति के अपर्याप्त कार्यान्वयन तक कई मुद्दों के कारण कुल मिलाकर 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
2. लाइसेंस नियमों का उल्लंघन: विनिर्माण हित वाले थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के साथ संबंध रखने वाले थोक विक्रेताओं ने दिल्ली में कुल शराब व्यापार के लगभग एक तिहाई की आपूर्ति को नियंत्रित किया, जिससे एकाधिकार और ब्रांड को बढ़ावा देने का जोखिम पैदा हुआ।
3. थोक विक्रेताओं का मुनाफा पहले के 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया: मंत्रियों के समूह द्वारा दिया गया तर्क यह था कि वैश्विक वितरण मानक, गुणवत्ता जांच प्रणाली के साथ गोदामों में प्रयोगशालाएं स्थापित करने और स्थानीय परिवहन की लागत को कवर करने के लिए उच्च लाइसेंस शुल्क की भरपाई करना आवश्यक था।
4. खुदरा शराब लाइसेंस: उचित जांच और सॉल्वेंसी, वित्तीय विवरणों तथा आपराधिक पृष्ठभूमि के सत्यापन के बिना खुदरा शराब लाइसेंस दिए गए।
5. विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें: नीति का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह (जीओएम) द्वारा बदल दिया गया था। विशेषज्ञ समिति ने शराब के थोक व्यापार को सरकारी एजेंसी द्वारा संभाले जाने की सिफारिश की, लेकिन जीओएम ने थोक व्यापार को निजी संस्थाओं द्वारा संभालने की सिफारिश की।
6. शराब के खुदरा व्यापार में एकाधिकार: इस नीति का उद्देश्य दिल्ली में शराब के खुदरा व्यापार में एकाधिकार को खत्म करना था। हालांकि, वास्तव में इससे एकाधिकार और ब्रांड को बढ़ावा मिलने का खतरा था। शहर में आईएमएफएल और विदेशी शराब की 71 प्रतिशत आपूर्ति पर केवल तीन निजी थोक विक्रेताओं का नियंत्रण था। साथ ही, 32 क्षेत्रों में फैली 849 शराब दुकानों को चलाने के लिए केवल 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिया गया था।
7. राजस्व संबंधी प्रभाव: राजस्व संबंधी प्रमुख निर्णय मंत्रिमंडल की मंजूरी और उपराज्यपाल की राय के बिना लिए गए।
8. दोषपूर्ण गुणवत्ता अनुपालन: आबकारी विभाग ने उन संस्थाओं को लाइसेंस जारी किए जिनके पास उचित गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट नहीं थी या जो भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) मानदंडों का अनुपालन नहीं करती थीं। 51 प्रतिशत विदेशी शराब परीक्षण मामलों में, रिपोर्ट या तो गायब थीं या एक वर्ष से अधिक पुरानी थीं।
मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में पेश की गई कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार, शराब के कई थोक विक्रेताओं ने भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मानदंडों के अनुपालन की पुष्टि करने वाले अनिवार्य गुणवत्ता परीक्षण प्रस्तुत नहीं किए। वहीं, विभिन्न ब्रांड के लिए पानी की गुणवत्ता, हानिकारक सामग्रियों, भारी धातु, मिथाइल अल्कोहल आदि की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई।
पूर्ववर्ती आप सरकार की 2021-22 की आबकारी नीति पर जारी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विदेशी शराब के 51 प्रतिशत परीक्षण मामलों में रिपोर्ट या तो 1 वर्ष से पुरानी थीं, गायब थीं या उन पर कोई तारीख नहीं थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में आपूर्ति की जाने वाली शराब निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी आबकारी विभाग की है।
नियमों के अनुसार थोक विक्रेताओं के लिए लाइसेंस जारी करते समय विभिन्न परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इसमें कहा गया है, ‘‘ऑडिट में कई ऐसे मामले पाए गए, जहां परीक्षण रिपोर्ट बीआईएस विनिर्देशों के अनुरूप नहीं थीं और आबकारी विभाग ने बड़ी कमियों के बावजूद लाइसेंस जारी किए।
विभिन्न ब्रांड के लिए पानी की गुणवत्ता, हानिकारक तत्व, भारी धातु, मिथाइल अल्कोहल, माइक्रोबायोलॉजिकल परीक्षण रिपोर्ट आदि की महत्वपूर्ण परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई।’’ यह रिपोर्ट, पिछली आम आदमी पार्टी सरकार के प्रदर्शन पर 14 रिपोर्ट में से एक है, जिन्हें मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली नई सरकार द्वारा पेश किया जाना है।
रिपोर्ट में, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा कि इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि आबकारी विभाग शराब की गुणवत्ता की सक्रिय रूप से निगरानी करे और कड़े गुणवत्ता मानक बनाए और उनका अनुपालन सुनिश्चित करे।