CAG रिपोर्ट में खुलासाः दासौ ने पूरी नहीं की 36 राफेल जेट करार की शर्त, एमबीडीए ने भी भारत को नहीं सौंपी तकनीक

By भाषा | Updated: September 24, 2020 21:38 IST2020-09-24T21:38:55+5:302020-09-24T21:38:55+5:30

कैग ने कहा कि उसे विदेशी विक्रेताओं द्वारा भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का एक भी मामला नहीं मिला है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रक्षा क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पाने वाले 63 क्षेत्रों में से 62वें स्थान पर रहा है।

CAG report revealed Dasau not fulfill condition 36 Rafale jet agreement MBDA not handed over technology to India | CAG रिपोर्ट में खुलासाः दासौ ने पूरी नहीं की 36 राफेल जेट करार की शर्त, एमबीडीए ने भी भारत को नहीं सौंपी तकनीक

ऑफसेट दावों में से केवल 48 प्रतिशत (5,457 करोड़ रुपये) ही मंत्रालय के द्वारा स्वीकार किए गये। (file photo)

Highlightsदसॉ एविएशन राफेल जेट की विनिर्माता कंपनी है, जबकि एमबीडीए ने विमान के लिये मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति की है। डीआरडीओ लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिये इंजन (कावेरी) के स्वदेशी विकास में तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता है।36 विमानों की खरीद के लिये 59,000 करोड़ रुपये के सौदे के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर होने के करीब चार साल बाद प्राप्त हुई।

नई दिल्लीः लड़ाकू विमान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन और यूरोप की मिसाइल निर्माता कंपनी एमबीडीए ने 36 राफेल जेट की खरीद से संबंधित सौदे के हिस्से के रूप में भारत को उच्च प्रौद्योगिकी की पेशकश के अपने ऑफसेट दायित्वों को अभी तक पूरा नहीं किया है।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। दसॉ एविएशन राफेल जेट की विनिर्माता कंपनी है, जबकि एमबीडीए ने विमान के लिये मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति की है। कैग की संसद में पेश रिपोर्ट में भारत की ऑफसेट नीति के प्रभाव की धुंधली तस्वीर पेश की गई है। कैग ने कहा कि उसे विदेशी विक्रेताओं द्वारा भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का एक भी मामला नहीं मिला है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रक्षा क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पाने वाले 63 क्षेत्रों में से 62वें स्थान पर रहा है।

कैग ने कहा है, ‘‘36 मध्यम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) से संबंधित ऑफसेट अनुबंध में विक्रेताओं ‘मैसर्स दसॉ एविएशन और मैसर्स एमबीडीए ने शुरुआत में डीआरडीओ को उच्च प्रौद्योगिकी प्रदान करके अपने ऑफसेट दायित्व के 30 प्रतिशत का निर्वहन करने का प्रस्ताव किया था।’’

एयरक्राफ्ट के लिये इंजन (कावेरी) के स्वदेशी विकास में तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता

कैग द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘डीआरडीओ लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिये इंजन (कावेरी) के स्वदेशी विकास में तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता है। अब तक विक्रेताओं ने इस तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की है।’’ पांच राफेल जेट की पहली खेप 29 जुलाई को भारत पहुंच चुकी है। यह आपूर्ति 36 विमानों की खरीद के लिये 59,000 करोड़ रुपये के सौदे के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर होने के करीब चार साल बाद प्राप्त हुई।

भारत की ऑफसेट नीति के तहत, विदेशी रक्षा उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को कुल खरीद अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत भारत में खर्च करना होता है। वह भारत में कल-पुर्जों की खरीद अथवा शोध व विकास केंद्र स्थापित कर यह खर्च कर सकते हैं। ऑफसेट मानदंड 300 करोड़ रुपये से अधिक के सभी पूंजीगत आयात सौदे पर लागू होते हैं। विक्रेता कंपनी इस आफसेट दायित्व को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, भारतीय कंपनी को निशुलक प्रोद्योगिकी का हस्तांतरण कर या फिर भारत में बने उत्पादों को खरीद कर पूरा कर सकती है।

आफसेट यानी सौदे की एक निश्चित राशि की भरपाई अथवा समायोजन भारत में ही किया जायेगा। लेखा परीक्षक ने कहा कि हालांकि, विक्रेता अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को निभाने में विफल रहे, लेकिन उन्हें दंडित करने का कोई प्रभावी उपाय नहीं है। कैग ने कहा, ‘‘यदि विक्रेता द्वारा ऑफसेट दायित्वों को पूरा नहीं किया जाये, विशेष रूप से जब मुख्य खरीद की अनुबंध अवधि समाप्त हो जाती है, तो ऐसे में विक्रेता को सीधा लाभ होता है।’’ कैग ने कहा कि चूंकि ऑफसेट नीति के वांछित परिणाम नहीं मिले हैं, इसलिये रक्षा मंत्रालय को नीति व इसके कार्यान्वयन की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

इन बाधाओं को दूर करने के लिये समाधान खोजने की जरूरत

मंत्रालय को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय उद्योग को ऑफसेट का लाभ उठाने से रोकने वाली बाधाओं की पहचान करने तथा इन बाधाओं को दूर करने के लिये समाधान खोजने की जरूरत है। कैग ने कहा कि 2005 से मार्च 2018 तक विदेशी विक्रेताओं के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के 48 ऑफसेट अनुबंधों पर हस्ताक्षर किये गये थे।

इनमें से दिसंबर 2018 तक विक्रेताओं द्वारा 19,223 करोड़ रुपये के ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन किया जाना चाहिये था, लेकिन उनके द्वारा दी गयी राशि केवल 11,396 करोड़ रुपये है, जो कि प्रतिबद्धता का केवल 59 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘इसके अलावा, विक्रेताओं द्वारा प्रस्तुत किये गये इन ऑफसेट दावों में से केवल 48 प्रतिशत (5,457 करोड़ रुपये) ही मंत्रालय के द्वारा स्वीकार किए गये।

बाकी को मोटे तौर पर खारिज कर दिया गया क्योंकि वे अनुबंध की शर्तों और रक्षा खरीद प्रक्रिया के अनुरूप नहीं थे। कैग ने कहा कि लगभग 55,000 करोड़ रुपये की शेष ऑफसेट प्रतिबद्धताएं 2024 तक पूरी होने वाली हैं। उसने कहा, ‘‘विदेशी विक्रेताओं ने लगभग 1,300 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की दर से ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है। इस स्थिति को देखते हुए, विक्रेताओं के द्वारा अगले छह वर्ष में 55 हजार करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता को पूरा कर पाना एक बड़ी चुनौती है।’’

जम्मू कश्मीर की वित्तीय स्थिति में 2016- 17 और 2017- 18 में आया सुधार: कैग

जम्मू कश्मीर सरकार की वर्ष 2016-17 में कुल राजस्व प्राप्तियां 41,980.72 करोड़ रुपये रहीं, जो इससे पिछले वर्ष में 35,780.60 करोड़ रुपये थी। यह राजस्व प्राप्ति में 6,200.12 करोड़ रुपये की वृद्धि को दर्शाता है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने बुधवार को यह जानकारी दी।

कैग की संसद के पटल पर रखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल प्राप्तियों का 28 प्रतिशत, कर राजस्व (7,819.13 करोड़ रुपये) और गैर-कर राजस्व (4,074.44 करोड़ रुपये) से प्राप्त किया गया, वहीं शेष 72 प्रतिशत में (9,488.60 करोड़ रुपये) केन्द्रीय करों एवं शुल्कों में राज्य के हिस्से के तौर पर और (20,598.55 करोड़ रुपये) अनुदान सहायता के रूप में प्राप्त हुये। कैग ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। कैग की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू कश्मीर को 2017- 18 में 7,595 करोड़ रुपये का राजस्व अधिशेष हासिल हुआ।

इस दौरान राज्य का कुल व्यय बढ़कर 51,294 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस दौरान राज्य में वस्तु एवं सेवाओं की बिक्री पर कर और जीएसटी से भी राजस्व वृद्धि दर्ज की गई। यह राजस्व 2013- 14 में जहां 4,579 करोड़ रुपये पर था वहीं यह 2017- 18 में 7,104 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।

कैग की जम्मू कश्मीर के 31 मार्च 2018 को समाप्त वित्त वर्ष पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान राज्य का राजस्व अधिशेष जो कि 2016- 17 में 2,166 करोड़ रुपये था 2017- 18 में बढ़कर 7,595 करोड़ रुपये हो गया। इस दौरान राजकोषीय घाटा 6,177 करोड़ रुपये से कम होकर 2,778 करोड़ रुपये रह गया। वहीं राज्य का प्राथमिक घाटा 2016- 17 के 1,610 करोड़ रुपये से सुधरकर 2017- 18 में 1,885 करोड़ रुपये के प्राथमिक अधिशेष में पहुंच गया।

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