Budget 2019: सीतारमण ने तोड़ी ब्रीफकेस की परंपरा, इस बार अपना हिसाब-किताब बही खाता में रखते हैं

By सतीश कुमार सिंह | Published: July 5, 2019 12:22 PM2019-07-05T12:22:33+5:302019-07-05T12:22:33+5:30

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी शाम पांच बजे बजट पेश करने की अतीत की परंपरा को बदला था। उसके बाद से सभी सरकारों में बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाता रहा है। परंपरागत भारतीय व्यापारी अपना हिसाब-किताब बही खाता में रखते हैं। 

Briefcases were reminiscent of the colonial past, so this time they keep their accounts in the book | Budget 2019: सीतारमण ने तोड़ी ब्रीफकेस की परंपरा, इस बार अपना हिसाब-किताब बही खाता में रखते हैं

इतना ही नहीं इस बार ‘बजट’ को ‘बही खाता’ कहा जा रहा है।

Highlightsइस बार मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश होने से पहले दो बड़े बदलाव किए हैंवहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हाथ में 'बजट ब्रीफकेस' की जगह आज लाल रंग की एक पोटली दिखी।साल 1999 से अबतक एनडीए की सरकार के दौरान बजट की पांच परंपराएं बदली गई हैं।

पूर्व की परंपरा को छोड़ते हुए देश की पहली पूर्णकालिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शुक्रवार को केंद्रीय बजट के दस्तावेज एक लाल बैग में लेकर पहुंचीं। यह परंपरागत ‘बही-खाते’ की याद दिला रहा था।

इससे पहले विभिन्न सरकारों में सभी वित्त मंत्री बजट पेश करने के लिए बजट दस्तावेज ब्रीफकेस में लेकर जाते रहे हैं, जिसे औपनिवेशिक अतीत की याद दिलाता था। सीतारमण 2019-20 का पूर्ण बजट पेश रही हैं। वह बजट दस्तावेज लाल रंग के बैग में लेकर पहुंचीं, जिसपर राष्ट्रीय चिह्न बना हुआ था।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी शाम पांच बजे बजट पेश करने की अतीत की परंपरा को बदला था। उसके बाद से सभी सरकारों में बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाता रहा है। परंपरागत भारतीय व्यापारी अपना हिसाब-किताब बही खाता में रखते हैं। 

इस बार मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश होने से पहले दो बड़े बदलाव किए हैं। इस बार ‘बजट’ शब्द में बदलाव करके इसे ‘बही खाता’ की संज्ञा दी गई है। वहीं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हाथ में 'बजट ब्रीफकेस' की जगह आज लाल रंग की एक पोटली दिखी। साल 1999 से अबतक एनडीए की सरकार के दौरान बजट की पांच परंपराएं बदली गई हैं।

इतना ही नहीं इस बार ‘बजट’ को ‘बही खाता’ कहा जा रहा है। मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यन ने कहा है, ‘’यही भारतीय परंपरा है। यह पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकलने का प्रतीक है। यह एक बजट नहीं है, लेकिन एक 'बही खाता’ है।’’ 

बजट के ‘ब्रीफकेस’ का इतिहास

साल 1733 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री रॉबर्ट वॉलपोल 'बजट' पर लेदर बैग के साथ संसद आए थे। चमड़े के बैग को फ्रेंच भाषा में बुजेट कहा जाता है, इसीलिए इस परंपरा को बजट कहा जाने लगा। बजट ब्रीफकेस का आकार तो लगभग एक जैसा ही रहा, लेकिन रंग में कई बार बदलाव आया। अंग्रेजों ने इस परंपरा को भारत में भी बढ़ाया जो पिछले अंतरिम बजट तक जारी रहा।

साल 2000 तक केंद्रीय बजट शाम 5 बजे पेश किया जाता था। ये परंपरा अंग्रेजों के समय से चली आ रही थी, लेकिन साल 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सुबह 11 बजे बजट पेश कर नई परंपरा शुरू की।

पहले बजट फरवरी के आखिरी वर्किंग डे के दिन पेश होता था, लेकिन मोदी सरकार अब बजट को फरवरी के पहले वर्किंग डे के दिन पेश करती हैं।

साल 2016 तक केंद्रीय बजट से कुछ दिन पहले रेल बजट पेश किया जाता था। साल 2017 में रेल बजट को केंद्रीय बजट के साथ ही पेश किया गया। ऐसा होने से पिछली 92 साल की पुरानी परंपरा बदल गई और रेल बजट और आम बजट एक साथ पेश होने लगा।

Web Title: Briefcases were reminiscent of the colonial past, so this time they keep their accounts in the book

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