2018 में बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी
By भाषा | Updated: December 30, 2018 17:23 IST2018-12-30T17:23:27+5:302018-12-30T17:23:27+5:30
ग्रामीण चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन से उत्साहित पार्टी प्रमुख अमित शाह ने राज्य की 42 लोसकभा सीटों में कम से कम 22 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। पंचायत चुनाव के दौरान भगवा पार्टी को 7,000 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली थी।

2018 में बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक तौर पर पूरे साल जबरदस्त गहमागहमी रही। पंचायत चुनाव के समय हिंसा की व्यापक घटनाओं के साथ ही सांप्रदायिक झड़प के मामले भी सामने आए। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस तथा माकपा की जगह भाजपा ही हर जगह सत्तारूढ़ तृणमूल को चुनौती देती नजर आयी।
अप्रैल-मई में सड़े-गले मांस की आपूर्ति करने वाले गिरोह की संलिप्तता के मामले सामने आने के बाद दहशत फैल गयी। ममता बनर्जी सरकार को इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए उच्चाधिकार समिति का गठन करना पड़ा।
कांग्रेस और माकपा को पीछे छोड़ते हुए भाजपा सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने में मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर सामने आयी। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में उन्हें अच्छी कामयाबी मिलेगी। राज्य में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं और दोनों पार्टियां अधिकतम सीटों पर जीत के दावे कर रही है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया, ‘‘बंगाल से हम अधिकतम सीटें जीतेंगे। राज्य में हम कम से कम 26 सीटें जीतेंगे।’’
जवाब में, तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि 2019 के चुनाव में उनकी पार्टी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा, ‘‘बंगाल में हम अधिकतर सीटें जीतेंगे। बंगाल के लोग तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं और उपचुनाव तथा ग्रामीण चुनावों में भी यह साबित हो चुका है जहां पार्टी ने जबरदस्त जीत हासिल की।’’
ग्रामीण चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन से उत्साहित पार्टी प्रमुख अमित शाह ने राज्य की 42 लोसकभा सीटों में कम से कम 22 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। पंचायत चुनाव के दौरान भगवा पार्टी को 7,000 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली थी।
तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच राज्य में मार्च अप्रैल में रामनवमी के दौरान पश्चिम बर्द्धमान जिले के आसनसोल में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुयीं।
साल के अंत में भाजपा की रथ यात्रा को अनुमति नहीं मिलने से मामला गरमाया रहा। तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि भाजपा की रथ यात्रा का मकसद राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।
अप्रैल में पंचायत चुनाव के दौरान हिंसा की भीषण घटनाएं हुयी। वर्ष 1978 में पंचायत राज की शुरूआत के बाद से राज्य सबसे अधिक हिंसा का गवाह बना।
ग्रामीण सीटों में तकरीबन 85 प्रतिशत पर तृणमूल कांग्रेस ने जीत दर्ज की जबकि भाजपा भी पुरूलिया, झारग्राम, बांकुरा और पश्चिम मेदनीपुर जिले में अपनी जगह बनाने में कामयाब रही।
तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी मोर्चे के प्रति एकजुटता दिखाने के मकसद से 19 जनवरी को विपक्षी दलों की एक रैली का आह्वान किया। हालांकि, उसने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की संभावना से लगातार इंकार करते हुए कहा कि वह राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर लड़ना चाहती है।
राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन के मुद्दे पर वाम मोर्चा और माकपा दोनों दुविधा की स्थित में दिखते हैं। वाममोर्चा के फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी जैसे भागीदारों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन या किसी तरह की आपसी सहमति का फैसला होने पर मोर्चा से बाहर निकलने की धमकी दे रखी है ।