जयंतीः भारत माता के इस महान सपूत ने अंग्रेजी हुकूमत की उड़ाकर रख दी थी नींद
By रामदीप मिश्रा | Published: June 11, 2018 06:27 AM2018-06-11T06:27:29+5:302018-06-11T08:47:25+5:30
Ram Prasad Bismil Birth Anniversary: राम प्रसाद बिस्मिल जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में 11 जून 1897 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था।
नई दिल्ली, 11 जूनः कहा जाता है कि जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारियों की बात की जाती है तो उसमें राम प्रसाद बिस्मिल का नाम भी शामिल होता है। ऐसे भारत माता के महान सपूत ने अपनी बहादुरी के आगे अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ाकर रख दी थी और देश को आजाद कराने के लिए मात्र 30 लाल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए थे। ऐसे कांतिकारी की आज जयंती है।
क्रांतिकारी के साथ थे बड़े कवि
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले में 11 जून 1897 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। जब राम प्रसाद सात वर्ष के हुए तब पिता पंडित मुरलीधर घर पर ही उन्हें हिन्दी अक्षरों का ज्ञान कराते थे। उस समय उर्दू का भी बोलबाला था इसलिए हिन्दी शिक्षा के साथ-साथ बालक को उर्दू पढ़ने के लिए एक मौलवी साहब के पास भेजा जाता था। उनके पिता शिक्षा पर विशेष ध्यान देते थे, जिसके चलते बिस्मिल उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद और साहित्यकार बने।
'उ' से उल्लू बोलने से कर दिया था इनकार
इतिहास में बताया जाता है कि बचपन में रामप्रसाद की पढ़ाई के दौरान एक दिलचस्प सामने आया था। उन दिनों हिंदी वर्णमाला की किताब में 'उ' से उल्लू पढ़ाया जाता था। कहा गया कि जब स्कूल में रामप्रसाद को अध्यापक 'उ' से उल्लू पढ़ने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया था। हालांकि अध्यापक ने उन्हें खूब समझाया था, लेकिन उनकी अपने अध्यापक की बात नहीं मानी थी। इसके बाद आध्यापक ने उनके पिता से शिकायत कर दी थी, लेकिन उन्होंने फिर भी 'उ' से उल्लू नहीं कहा था। इससे पता चलता है कि उनके मन में कहीं न कहीं क्रांतिकारी भावना बचपन से ही थी।
'सत्यार्थ प्रकाश' ने भरी देशप्रेम की भावना
बिस्मिल की प्रसिद्ध रचना की बात करें तो 'सरफरोशी की तमन्ना...' हर भारतीय के जुबान पर रहती है। लगभग 11 वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई लगभग सभी पुस्तकों को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया था। बताया जाता है कि राम प्रसाद को एक बार किसी ने स्वामी दयानंद सरस्वती की लिखी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दी थी, जिसका उन्होंने गहराई अध्ययन करके अपने जीवन को एक नए रास्ते की ओर मोड़ दिया था और सत्यार्थ प्रकाश के गहरे अध्ययन से उनके अंदर क्रांतिकारी बदलाव आया और उनके मन देशप्रेम की भावना जागृत हुई।
काकोरी कांड हिल गया था अंग्रेजी साम्राज्य
बताया जाता है कि बिस्मिल ने काकोरी कांड को अंजाम देकर अंग्रेजी साम्राज्य को हिला दिया था। उन्होंने 9 अगस्त 1925 को अपने साथियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसमें 10 लोगों ने शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को लखनऊ के पहले काकोरी में रोक लिया था और सरकारी खजाने को लूट लिया था। इस कांड को अंजाम देने के लिये जर्मन पिस्तौलों का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें अशफाख उल्ला खां भी शामिल थे। इस कांड में 40 गिरफ्तारियां हुईं थीं।
19 दिसंबर 1927 को दी गई थी फांसी
इस काकोरी कांड के आरोप में चार लोगों को 16 सितंबर 1927 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी दे दी गई। उसी दिन अशफाख उल्लाह खां को फैजाबाद जेल में और रौशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी दी गई। बिस्मिल के एक और साथी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को दो दिन के बाद गोंडा जेल में फांसी दे दी गई। बताया जाता है कि बिस्मिल की फांसी के दौरान जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए एकत्रित हुए थे और उनकी अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे।
लोकमत न्यूज के लेटेस्ट यूट्यूब वीडियो और स्पेशल पैकेज के लिए यहाँ क्लिक कर के सब्सक्राइब करें!