मतदाता सूची गहन पुनरीक्षणः अवैध अप्रवासी मतदाताओं की संख्या 32 लाख?, 51 लाख नाम कटने का खतरा?, सियासत जारी
By एस पी सिन्हा | Updated: July 23, 2025 14:43 IST2025-07-23T14:42:55+5:302025-07-23T14:43:54+5:30
voter list Intensive revision: ताजा अपडेट के अनुसार बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 41.6 लाख (5.3 फीसदी) मतदाता अपने दर्ज पते पर नहीं मिले।

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पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के द्वारा कराए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के प्रक्रिया के अंतर्गत तकरीबन 51 लाख लोगों के नाम हटाए जा रहे हैं। पुनरीक्षण के दौरान चुनाव आयोग को यह जानकारी मिली है कि 32 लाख से भी अधिक अवैध अप्रवासी मतदाताओं की संख्या हो सकती है। इनके फॉर्म अब तक प्राप्त नहीं हुए हैं। बताया जा रहा है कि एसआईआर में अभी तक 11 हजार अवैध प्रवासियों की संख्या पाई गई है। चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया कि 11 हजार मतदाता बीएलओ के सत्यापन के दौरान न तो अपने पते पर पाए गए और न ही पड़ोसियों के इनके पास में रहने की जानकारी है। कुछ पते पर तो किसी का घर भी नहीं मिला। ताजा अपडेट के अनुसार बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 41.6 लाख (5.3 फीसदी) मतदाता अपने दर्ज पते पर नहीं मिले।
इनमें से करीब 11,000 मतदाताओं पर अवैध प्रवासी होने की आशंका जताई गई है, जिन्होंने संभवतः फर्जी तरीके से मतदाता पहचान पत्र हासिल किए हैं। बूथ लेवल अधिकारियों ने इन मतदाताओं के पते पर तीन बार दौरा किया, लेकिन न तो वे मिले और न ही पड़ोसियों को उनके बारे में कोई जानकारी थी। कुछ मामलों में दर्ज पते पर कोई घर या आवास ही नहीं पाया गया।
राज्य के मुख्य निर्वचन पदाधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने बताया कि इन 11,000 मतदाताओं के अवैध प्रवासी संभवतः बांग्लादेशी या रोहिंग्या होने की आशंका है जो पड़ोसी राज्यों में रहते हुए बिहार में मतदाता पहचान पत्र प्राप्त करने में सफल रहे। उन्होंने स्पष्ट किया कि इनके नाम 30 सितंबर को प्रकाशित होने वाली अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं होंगे।
इसके लिए 1 अगस्त के बाद गहन जांच की जाएगी। उल्लेखनीय है कि 25 जून से शुरू हुई एसआईआर प्रक्रिया में 77,895 बीएलओ घर-घर जाकर गणना फॉर्म एकत्र कर रहे हैं। अब तक 96 फीसदी मतदाताओं (लगभग 7.56 करोड़) ने फॉर्म जमा किए हैं। शेष 5.3 फीसदी (41.6 लाख) मतदाता अपने पते पर नहीं मिले, जिनमें 12.5 लाख मृतक, 17.5 लाख स्थायी रूप से बिहार से बाहर चले गए और 5.5 लाख दोहरे पंजीकरण वाले हैं। बता दें कि एसआईआर को लेकर विपक्षी दलों ने तीखी आपत्ति जताई है।
उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया कि बिहार में गरीबी और बाढ़ के कारण कई लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज नहीं हैं। कोर्ट ने 10 जुलाई को सुनवाई के दौरान आयोग से आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को भी सत्यापन के लिए स्वीकार करने को कहा।
अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। राजद नेता तेजस्वी यादव ने एसआईआर को “एनआरसी का बैकडोर” करार दिया, जबकि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा कि अगर अवैध प्रवासी थे तो 2024 लोकसभा चुनाव में उन्हें वोट क्यों देने दिया गया। दूसरी ओर भाजपा ने एसआईआर का समर्थन करते हुए विपक्ष पर फर्जी मतदाताओं को बचाने का आरोप लगाया।