लालू परिवार में फूट?, तेजस्वी यादव के खिलाफ प्रत्याशी उतारेंगे तेज प्रताप, मुस्लिम-यादव समीकरण पर दिखेगा असर

By एस पी सिन्हा | Updated: August 23, 2025 14:55 IST2025-08-23T14:52:55+5:302025-08-23T14:55:42+5:30

लालू यादव का तेजस्वी यादव प्रेम कई मौकों पर जगजाहिर रहा है। चुनावी मौसम में तेजस्वी को सुरक्षित रखने के लिए तेज प्रताप यादव को आउट कर दिया गया है।

bihar polls chunav Split Lalu family Tej Pratap field candidate against Tejashwi Yadav impact seen Muslim-Yadav equation | लालू परिवार में फूट?, तेजस्वी यादव के खिलाफ प्रत्याशी उतारेंगे तेज प्रताप, मुस्लिम-यादव समीकरण पर दिखेगा असर

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Highlightsलालू यादव तेजस्वी यादव की राह को आसान करना चाह रहे हैं।लालू यादव का तेजस्वी प्रेम हमेशा से ही ज्यादा रहा है। तेज प्रताप कभी भी खुद को उपेक्षित महसूस ना करे।

पटनाः राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के परिवार में पड़ी फूट का असर बिहार विधानसभा चुनाव में पडने की संभावना जताई जाने लगी है। हालांकि लालू यादव ने बिहार की सियासत को अपने करिश्माई नेतृत्व और मुस्लिम-यादव समीकरण से 15 साल राज किया। पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री और छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया। लेकिन लालू परिवार में इस समय यह एक ऐसी महाभारत चल रही है जहां पर तेज प्रताप खुद को कई बार कृष्ण बता देते हैं। लेकिन जिस तेजस्वी को वे अपना अर्जुन कहते हैं, वे उनकी एक नहीं सुनते। पिछले कुछ सालों में सार्वजनिक मंचों पर चाहे दोनों भाई साथ दिखे हों, लेकिन एक सियासी अदावत भी रही है। दरअसल, लालू यादव ने तेजस्वी के प्रेम में तेज प्रताप को बाहर का रास्ता दिखाया। इसका कारण यह रहा कि लालू यादव तेजस्वी यादव की राह को आसान करना चाह रहे हैं।

अगर पार्टी में रहते हुए ‘उपेक्षित तेज प्रताप’ चुनावी मौसम में कुछ और विवाद खड़े करते, उससे बेहतर उन्हें इस सियासी मैदान से बाहर खदेड़ना ही रहा। जानकार मानते हैं कि इस वक्त अगर लालू बड़े बेटे को पार्टी से बाहर नहीं निकालते तो उस स्थिति में कई मोर्चों पर चुनौतियां खड़ी हो जातीं।

बता दें कि कि तेज प्रताप की ऐश्वर्या के साथ शादी विवादों में रही है, पारिवारिक कलेश ऐसा रहा है जो मीडिया की सुर्खियां तक बना। इसके ऊपर अब एक दूसरी लड़की की एंट्री होना पूरे ही विवाद को नया रंग दे दिया है। विरोधी तो अभी से नैरेटिव सेट करने में लगे हैं कि ‘बिहार की बेटी एश्वर्या’ की जिंदगी क्यों बर्बाद की, अनुष्का पसंद थी तो उससे शादी क्यों की गई?

ऐसे में लालू परिवार की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी। जबकि लालू यादव का तेजस्वी प्रेम हमेशा से ही ज्यादा रहा है। घर के बड़े बेटे जरूर तेज प्रताप रहे हैं, लेकिन सम्मान, ताकत और अब तो मुख्यमंत्री बनाने तक के सपने तेजस्वी के लिए देखे गए। ऐसा कहा जाता है कि मां राबड़ी देवी ने जरूर कोशिश की थी कि तेज प्रताप कभी भी खुद को उपेक्षित महसूस ना करे।

लेकिन लालू का तेजस्वी प्रेम कई मौकों पर जगजाहिर रहा है। यह बात खुद बताने के लिए काफी है कि अब क्यों चुनावी मौसम में तेजस्वी को सुरक्षित रखने के लिए तेज प्रताप को आउट कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था।

एक वक्त ऐसा आया था जब तेजस्वी तस्वीर से आउट से हो गए थे और तेज प्रताप ने ‘तेज सेना’ बनाने का ऐलान कर दिया था। बिहार के युवाओं को साधने के लिए वे अलग मंच तैयार कर रहे थे। लेकिन अब चुनाव के ठीक मुहाने पर लालू उम्र के ढलान पर हैं तो उनके दोनों बेटों तेजप्रताप और तेजस्वी के बीच दबे पांव सत्ता की जंग छिड़ चुकी है।

तेजस्वी राजद के भविष्य हैं, जिन्हें लालू ने अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। जबकि तेज प्रताप अपनी अलग पहचान बनाने को बेताब हैं। वहीं, तेज प्रताप यादव के ऐलान से अब तस्वीर साफ है कि वह अक्टूबर-नवंबर में संभावित विधानसभा चुनाव में छोटे भाई तेजस्वी के सारथी नहीं, आमने-सामने होंगे। इसके लिए उन्होंने अपनी नई पार्टी बना ली है। नाम रखा है जनशक्ति जनता दल।

चुनाव चिन्ह बांसुरी मांगा है। अब जबकि तेजप्रताप ने अपनी पार्टी तो बना ली है तो ऐसे में उनका पीछे हटना मुश्किल ही दिखाई दे रहा हैं। उनके साथ छोटे छोटे दल भी आ रहे हैं। इसतरह वह एक तरफ तीसरा मोर्चा बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। वैसे तेज प्रताप के पास भले ही अपना तेजस्वी की तरह कोई मजबूत जनाधार नहीं है और ना ही उनके पास अपना कोई राज्यव्यापी संगठन है।

लेकिन जिस तरह वह अपनी छवि लालू की तरह गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं, इससे राजद के कोर वोट बैंक में कुछ सेंधमारी जरूर कर सकते हैं। इसका सीधा नुकसान तेजस्वी को होगा। 2020 विधानसभा चुनाव के नतीजों (एनडीए से सिर्फ 0.23 फीसदी वोट शेयर कम) को देखते हुए निर्णायक हो सकता है।

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान तेजप्रताप जहानाबाद और शिवहर सीट से अपने करीबियों को मैदान में उतारना चाहते थे। टिकट को लेकर खूब जोर-आजमाइश की, लेकिन नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने दोनों जगहों से निर्दलीय अपना प्रत्याशी उतार दिया। हालांकि, शिवहर के प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया। सिर्फ जहानाबाद से तेज के करीबी चंद्र प्रकाश ही चुनाव लड़े।

राजद के सुरेंद्र प्रसाद यादव 1,751 वोटों से चुनाव हार गए थे। जबकि इससे ज्यादा वोट तेज प्रताप के उम्मीदवार को मिला था। चुनाव बाद कहा गया कि अगर तेज प्रताप ने वहां अपना प्रत्याशी नहीं दिया होता तो राजद चुनाव जीत जाती। ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव में भी तेज प्रताप वोटों में सेंधमारी कर देते हैं तो तेजस्वी का गणित फेल कर जा सकता है।

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