Bihar LS Elections 2024: बिहार की सियासत में 19 फीसदी दलित वोटबैंक को साधने की चुनौती, सभी दलों की टिकी है निगाहें
By एस पी सिन्हा | Published: April 7, 2024 04:48 PM2024-04-07T16:48:41+5:302024-04-07T16:51:20+5:30
Bihar Lok Sabha Elections 2024: बिहार की सियासत के हिसाब से देखा जाए तो अनुसूचित जातियों में 4-5 जातियां ही प्रमुख रूप से राजनीति में सक्रिय रहती हैं। ऐसे में ये पार्टियां भी इन्हीं जातियों के बीच से अपने-अपने प्रत्याशियों की तलाश करती हैं।
पटना: लोकसभा चुनाव में 19 फीसदी दलित वोट बैंक को साधने के लिए बिहार में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने सियासत तेज कर दी है। लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा ने 19 फीसदी दलित वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए कई कार्यक्रम किए थे। इसी कड़ी में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस को अपने साथ जोड़ा। जबकि चुनावी गहमागहमी के बीच राजद ने वीआईपी के निषाद वोट बैंक पर पकड़ बनाने के लिए मुकेश सहनी को अपने पाले में खींच लाई।
बिहार की सियासत के हिसाब से देखा जाए तो अनुसूचित जातियों में 4-5 जातियां ही प्रमुख रूप से राजनीति में सक्रिय रहती हैं। ऐसे में ये पार्टियां भी इन्हीं जातियों के बीच से अपने-अपने प्रत्याशियों की तलाश करती हैं। बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों पर छह उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। इसमें से चार सीटों पर पासवान जाति के उम्मीदवार जीते थे। वहीं एक सीट पर मुसहर और एक अन्य सीट रविदास जाति के खाते में गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में यही समीकरण था। इस चुनाव में भी चार सीटों पर पासवान जाति के उम्मीदवार ही जीते थे।
वहीं एक सीट पर मुसहर और एक सीट पर रविदास जाति के उम्मीदवार को जीत मिली थी। जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर रविदास, एक मुसहर, एक पासी और एक सीट पर पासवान उम्मीदवार जीते थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में सात सीट आरक्षित वर्ग के लिए थी। इसमें से चार सीट पर पासवान यानी दुसाध जाति के उम्मीदवार विजयी रहे थे। वहीं एक सीट पर मुसहर, एक सीट पर रविदास और एक सीट पर धोबी जाति के उम्मीदवार विजयी हुए थे।
बिहार में दलित समुदाय का 19 फीसदी वोट बैंक बिहार की सत्ता के फेरबदल और लोकसभा के 40 सीटों के लिए सबसे अहम माना जा रहा है। यही कारण है कि भाजपा और राजद, जदयू और कांग्रेस का गठबंधन सभी इन्हें अपने पाले में लाने में लगी हैं। लोकसभा चुनाव में दलित वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा की तरफ से जीतन राम मांझी और चिराग पासवान महत्वपूर्ण भूमिका में होंगे।
हाल के जातीय गणना के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी करीब 19.65 फीसदी है। इसमें करीब 22 जातियां शामिल हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से सशक्त केवल तीन जातियां ही दिखती हैं। इनका प्रतिनिधित्व हर स्तर के राजनीतिक मंच पर अन्य जातियों की अपेक्षा अधिक है।
इनमें पासवान (दुसाध), मुसहर और रविदास शामिल हैं। इन तीनों की आबादी करीब 13.6 फीसदी है। वहीं अन्य 19 जातियों की आबादी करीब छह फीसदी है। ये जातियां राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में लगभग हाशिये पर हैं। अन्य 18 जातियों को मुकाबले से भी बाहर मान लिया जाता है। राजनीतिक दल प्राय: यह नारा देते रहे हैं कि जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।
अब जातिवार गणना की रिपोर्ट आने के बाद हाशिए पर खड़ी बंटार, बौरी, भोगता, भुइयां, चौपाल, (रविदासिया, मोची), दबगर, धोबी (या रजक), डोम्बा (चांडाल सहित), दुसाध या पासवान, घसिया, हलालखोर ( वाल्मीकि), हेला /मेहतर, कुरारियार (कुरील सहित), लाल बेगी, मुसहर जाति, नट, पानो, पासी, रजुआर(रजवार) और तुरी की भी उचित राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग जोर पकड़ने लगी है।