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Bihar Lalu Yadav-Akhilesh Singh: दिल्ली के बाद बिहार में कांग्रेस तेवर?, लालू यादव से नजदीकियां, कन्हैया कुमार की खिलाफत, सांसद अखिलेश सिंह पर भारी

By एस पी सिन्हा | Updated: March 19, 2025 14:43 IST

Bihar Lalu Yadav-Akhilesh Singh: अखिलेश सिंह बिहार के प्रभावशाली भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। राज्यसभा के सांसद भी हैं।

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ठळक मुद्देसाल 2022 में बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।अखिलेश सिंह को लालू यादव का करीबी माना जाता है।राजेश कुमार को अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस पार्टी ने राज्य में पार्टी की कमान दलित समुदाय के प्रभावशाली नेता और कुटुंबा सीट से विधायक राजेश कुमार को सौंपकर हलचल मचा दी है। राजेश कुमार को अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। अखिलेश सिंह बिहार के प्रभावशाली भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं। मौजूदा समय में वो राज्यसभा के सांसद भी हैं। अखिलेश सिंह को लालू यादव का करीबी माना जाता है। वह कभी राजद का ही हिस्सा थे। साल 2022 में उन्हें बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

  

चर्चा है कि लालू यादव से ज्यादा निकटता अखिलेश सिंह पर भारी पड़ा है। वहीं, राजेश कुमार को यह जिम्मेदारी ऐसे समय में दी गई है, जब बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। पार्टी आलाकमान के इस फैसले को दलित वोट बैंक साधने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। बिहार में कांग्रेस ने दिल्ली का दांव चला और लालू यादव से दोस्ती भारी पड़ गई।

दरअसल, कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव जितनी सीटों पर अड़ी है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को राजद ने 70 सीटें थी। इसमें से कांग्रेस 19 सीटों पर जीती थी। बीते दिनों में कई कांग्रेस नेताओं ने सीट शेयरिंग को लेकर अपनी प्रतिक्रिया भी दी जिसमें पार्टी को सीट शेयरिंग में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें इस पर जोर दिया।

वहीं, राजद 150 सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में है। बता दें कि कांग्रेस एक समय बिहार में सबसे मजबूत पार्टी हुआ करती थी। आजादी से लेकर 1989 तक कमोबेश बिहार में कांग्रेस की ही सरकार रही। एक समय था कि बिहार कांग्रेस के कई बड़े नेताओं का दबदबा राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखता था। 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बनी।

धीरे-धीरे डा. जगन्नाथ मिश्रा का प्रभाव कांग्रेस पार्टी में कम होने लगा। इसके बाद डा. जगन्नाथ मिश्रा ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई। कहा जाता है कि इस समय के बाद बिहार में कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती गई।  बाद के दिनों में कांग्रेस पूरी तरीके से लालू प्रसाद यादव पर निर्भर होती चली गई। बिहार में कांग्रेस पार्टी हमेशा राजद के पीछे चलती रही।

पार्टी की हालत इतनी बदतर हो चुकी थी कि लालू यादव के इशारों पर ही काम करना पड़ता था। अभी पिछले ही साल निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में श्री कृष्ण सिंह की जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया था।

इस कार्यक्रम में ही लालू यादव ने अखिलेश सिंह की कांग्रेस में जाने और बनाने का पोल खोलकर रख दिया था। ऐसे में अब कांग्रेस आलाकमान इस रवायत को बदलना चाहता है। कांग्रेस नेतृत्व के फैसले बता रहे हैं कि वह अब लालू यादव की उंगली पर नहीं नाचने वाले हैं। इसकी शुरुआत उस वक्त हो गई थी, पार्टी ने बिहार का प्रभारी बदला था।

लालू खेमे के मोहन प्रकाश को हटाकर कर्नाटक के नेता कृष्णा अल्लावरू को बिहार का प्रभारी बनाकर भेजा गया। कृष्णा अल्लावरु की ताजपोशी में 2 महीने से ज्यादा वक्त बीत गया है। इस दौरान कृष्णा कई बार बिहार आए, लेकिन एक बार भी लालू के दरबार में हाजिरी लगाने नहीं गए। कृष्णा अल्लावरु के प्रभारी बनते ही युवा नेता कन्हैया कुमार को भी बिहार में सक्रिय कर दिया गया।

इससे प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को तकलीफ हुई। अखिलेश प्रसाद ने खुलकर तो जाहिर नहीं किया, लेकिन अंदरखाने में इसका विरोध जरूर किया। पार्टी दो खेमों में बंटती नजर आ रही थी। अंतर्कलह से चुनावों में नुकसान या राजद के साथ सीट शेयरिंग में झुकने से पहले ही प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया गया है।

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