बिहार चुनाव: प्राचीन भारत में शक्तिशाली साम्राज्य रहे मगध में एनडीए की प्रतिष्ठा पर लगी है दांव पर, सभी दलों ने झोंक दी है अपनी पूरी ताकत
By एस पी सिन्हा | Updated: October 10, 2025 14:01 IST2025-10-10T14:01:31+5:302025-10-10T14:01:31+5:30
मगध प्रमंडल राज्य का एक प्रमुख चुनावी क्षेत्र रहा है, जहां कुल 26 विधानसभा सीटों हैं। मगध क्षेत्र में कुल 5 जिले शामिल हैं। इसमें गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल। यह इलाका ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता आया है।

बिहार चुनाव: प्राचीन भारत में शक्तिशाली साम्राज्य रहे मगध में एनडीए की प्रतिष्ठा पर लगी है दांव पर, सभी दलों ने झोंक दी है अपनी पूरी ताकत
पटना: प्राचीन भारत में शक्तिशाली साम्राज्य रहे मगध में विधानसभा चुनाव के लिए किलेबंदी की तैयारी हो रही है। मगध के प्रतापी सम्राटों में सबसे पहले बिम्बिसार थे, जिन्होंने मगध साम्राज्य की स्थापना की और बाद में अजातशत्रु, शिशुनाग, नंद वंश के महापद्मनंद और धननंद जैसे राजा हुए। पौराणिक कथाओं के अनुसार जरासंध भी मगध के एक शक्तिशाली राजा थे। मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। अब उसी मगध की धरती पर अपनी चुनावी विसात बिछाने में सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। दरअसल, मगध प्रमंडल राज्य का एक प्रमुख चुनावी क्षेत्र रहा है, जहां कुल 26 विधानसभा सीटों हैं। मगध क्षेत्र में कुल 5 जिले शामिल हैं। इसमें गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल। यह इलाका ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता आया है।
वर्तमान में मगध क्षेत्र में राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के महागठबंधन का दबदबा है। लेकिन सत्ताधारी गठबंधन एनडीए यहां नई राह बनाने की कोशिश में है। एनडीए ने इस बार ‘जीती सीटों को बचाने’ के साथ-साथ ‘हारी सीटों को वापस पाने’ का बड़ा अभियान शुरू किया है। इसे “मिशन रिकवरी प्लान” का नाम दिया गया है। ऐसे में मगध क्षेत्र के पांच जिलों में इस बार बेहतर प्रदर्शन करने के लिए एनडीए को नई राह बनाने की मशक्कत करनी है तो महागठबंधन को अपनी साख बचाए रखना बड़ी चुनौती है। चुनाव की घोषणा होने के बाद टिकट बंटवारे को लेकर माथापच्ची जारी है। मगध क्षेत्र के कुल 26 विधानसभा सीटों में से 19 सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है। सिर्फ सात सीटें ही एनडीए के पास हैं। औरंगाबाद, अरवल और जहानाबाद जिले में एनडीए का कोई विधायक नहीं है। सिर्फ गया जी में एनडीए को बढ़त हासिल है।
गयाजी जिले में एनडीए के 6 और महागठबंधन के 4 विधायक हैं। ऐसे में एनडीए के घटक दलों का अपेक्षाकृत ज्यादा जोर उन सीटों पर है, जहां उनकी मौजूदगी नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों की हार हुई थी, वहां प्रत्याशी बदलने पर भी गंभीरता से विचार चल रहा है। सभी राजनीतिक दलों में नेतागण टिकटों के लिए नेतृत्व के पास दौड़ भी लगा रहे हैं। उधर, इस बार चुनाव मैदान में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी है। हालांकि गया जी की दो सीटों बेलागंज और इमामगंज में हुए उपचुनाव में जदयू के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। इसमें राजद का गढ़ मानी जाने वाली बेलागंज की सीट पर राजद को हार का सामना करना पड़ा था।
35 साल बाद बेलागंज में राजद का किला ढह गया। हालांकि, उप चुनाव के नतीजों को नई पार्टी जन सुराज के प्रदर्शन से जोड़कर भी देखा जा रहा है। जन सुराज को मिले वोट किसी की हार को जीत और किसी की जीत को हार में बदल सकते हैं। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में कई बड़े चेहरे, पूर्व मुख्यमंत्री और मंत्री तह चुके हैं या फिर केंद्र में मंत्री हैं। इनमें सबसे पहला नाम केन्द्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी और बेलागंज सुरेंद्र प्रसाद यादव जैसे उम्मीदवार मैदान में अपनी धाक जमा चुके हैं।
गया जिले में विधानसभा की 10 सीटें आती हैं। इसमें गुरुवा, शेरघाटी, इमामगंज, बराचट्टी, बोधगया, गया टाउन, टिकारी, बेलागंज, अत्री और वज़ीरगंज। वहीं, नवादा जिले में 5 विधानसभा सीटें हैं। जिसमें रजौली (सुरक्षित), हिसुआ, नवादा, गोविंदपुर और वारिसलीगंज। जबकि औरंगाबाद जिले में विधानसभा की 6 सीटें हैं। इसमें गोह, ओबरा, नबीगर, कुटुंबा, औरंगाबाद और रफीगंज। वहीं, जहानाबाद जिले में 3 विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमें जहानाबाद, घोसी और मखदमपुर है। जबकि अरवल जिले में 2 विधानसभा सीटें है। इसमें अरवल और कुर्था शामिल है।
बता दें कि मगध प्रमंडल के अधिकतर ग्रामीण इलाकों में यादव समुदाय का प्रभाव है। यह राजद का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। गया, नवादा, जहानाबाद आदि जिलों में इनकी संख्या खासकर ज्यादा है। वहीं, नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का कुर्मी और कोइरी मुख्य समर्थन आधार है। औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल क्षेत्रों में प्रभावी माना जाता है। इसके साथ ही मुस्लिम मतदाताओं को राजद और महागठबंधन का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। शहरी व कस्बाई क्षेत्रों जैसे कि नवादा, गया टाउन, जहानाबाद आदि में महत्वपूर्ण संख्या में मौजूद हैं।
ऐसे में यादव-मुस्लिम (एमवाय) समीकरण यहां मजबूत दिखता है। जबकि, सवर्ण मतदाताओं (ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत) को भाजपा का मुख्य वोट बैंक माना जाता है। औरंगाबाद, अरवल और नवादा में भूमिहार और राजपूत समुदाय प्रभावी हैं। लेकिन भाजपा की जीत में शहरी और उच्च वर्गीय सवर्ण मतदाताओं की बड़ी भूमिका रही है। इसके साथ ही दलित मतदाताओं का प्रभाव भी कई सीटों पर निर्णायक होता है। ऐसे में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा(रा) और जीतन राम मांझी की हम पार्टी का प्रभाव कुछ दलित बहुल इलाकों में देखा जा सकता है।
मगध की राजनीति में जातीय समीकरण, विकास के मुद्दे, शिक्षा, रोजगार और क्षेत्रीय नेतृत्व की छवि जैसे विषयों ने अहम भूमिका निभाती है। इस क्षेत्र में गया टाउन, बोधगया, इमामगंज, टिकारी, नवादा, वारिसलीगंज, औरंगाबाद, रफीगंज, कुटुंबा, जहानाबाद, मखदुमपुर, अरवल आदि प्रमुख सीटें रही हैं। इनमें से कई सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव में करीबी मुकाबला देखा गया, वहीं कुछ क्षेत्रों में जातीय ध्रुवीकरण ने जीत-हार तय की। इस बार के चुनाव में भी मगध अपनी महती भूमिका निभाएगा। ऐसे में मगध के किले को फतह करना किसी भी सियासी गठजोड़ के लिए बहुत जरूरी हो जाता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में गोह, नबीनगर, बोधगया की सीट पर एनडीए की हार उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के कारण हुई थी। ओबरा, शेरघाटी और इस्लामपुर की सीट लोजपा के कारण हारी थी। अगर यह दोनों पार्टियां एनडीए गठबंधन में होती तो अतरी उर कुर्था सीट एनडीए जीत जाती। वहीं महागठबंधन की जीत में माले के साथ गठबंधन एक अहम फैक्टर था। इस इलाके में भाकपा- माले का प्रभाव है। पार्टी ने 12 में से 4 सीटें इसी क्षेत्र में जीती थीं। 2020 में महागठबंधन को इसका फायदा मिला था।