कोरोना के इलाज के लिए लोग बेच रहे घर-जमीन पर निजी अस्पतालों में जारी है लूट, बिहार से आई दिल तोड़ने वाली तीन कहानी

By एस पी सिन्हा | Published: May 7, 2021 04:04 PM2021-05-07T16:04:16+5:302021-05-07T16:04:35+5:30

कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में बेहद महंगा साबित हो रहा है। कई जगहों पर अस्पताल मनमाना रवैया अपना रहे हैं और लोगों से मोटी फीस वसूली जा रही है।

Bihar coronavirus costly treatment in private hospitals people selling their property for money | कोरोना के इलाज के लिए लोग बेच रहे घर-जमीन पर निजी अस्पतालों में जारी है लूट, बिहार से आई दिल तोड़ने वाली तीन कहानी

बिहार में कोरोना संकट के बीच निजी अस्पतालों में लूट का खेल (फाइल फोटो)

Highlightsबिहार में कोरोना संकट के बीच लाचार परिजनों का आर्थिक शोषण की भी कई खबरें आ रही हैंकुछ निजी अस्पतालों के मैनेजर से लेकर डायरेक्टर तक की जरूरी दवाइयों की कालाबाजारी में संलिप्तता पाई गई हैपटना के एक अस्पताल में एक मरीज के परिजन से सिर्फ पीपीई किट के लिए 56 हजार रुपये वसूले गए

पटना: बिहार में कोरोना के जारी कहर से अपने परिजनों को बचाने के लिए लोग सब कुछ दांव पर लगा रहे हैं. निजी अस्पतालों में भर्ती करा कर इलाज कराने वाले कई परिवारों की आर्थिक स्थित खराब हो गई है. कई परिवारों का बैंक बैलेंस खाली हो गया है तो कई जेवर बंधक रख कर रुपए जुटा रहे है. 

कुछ परिवारों ने तो अपनी जायदाद तक बेच दी है. रोज कमाने खाने वाले परिवारों के लिए यह बीमारी काल बन कर सामने आया है. बिहार सरकार द्वारा शुल्क निर्धारित करने के बावजूद राज्य के निजी अस्पतालों के द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों से बडी राशि वसूली जा रही है. 

पीपीई किट के लिए भी वसूले जा रहे हैं हजारों रुपये

राज्य के निजी अस्पतालों में जारी लूट का हाल यह है कि वे बेड चार्ज से लेकर जांच और यहां तक कि पीपीई किट के लिए हजारों रुपये अलग से वसूल रहे हैं. पटना बैंक रोड स्थित तारा हॉस्पिटल में एक मरीज के परिजन से सिर्फ पीपीई किट के लिए 56 हजार रुपये वसूले. 

यही नही अब तो यह भी मामला सामने आया है कि इस संकट के दौर में निजी अस्पतालों में  कालाबाजारी का सिलसिला भी शुरू हो गया है. निजी अस्पतालों के द्वारा इस समय मरीजों के लाचार परिजनों का आर्थिक शोषण भी जमकर किया जा रहा है. आए दिन ऐसी शिकायतें सामने आती रहती हैं. 

ऑक्सीजन हो या रेमडेसिविर दवाई, इनकी एक तरफ जहां डिमांड बढी है वहीं दूसरी तरफ इसकी कालाबाजारी भी चरम पर है. मरीजों के परिजन मजबूरी में 50 हजार से 60 हजार रुपये देकर भी इसे दलालों के माध्यम से खरीदने पर विवश हैं. निजी अस्पतालों के मैनेजर से लेकर डायरेक्टर तक की इसमें संलिप्तता पाई गई है.

राजधानी पटना और भागलपुर जिला में कोरोना की जीवन रक्षक दवा रेमडेसिविर की कालाबाजारी को लेकर बडी छापेमारी हुई है. पटना में आर्थिक अपराध ईकाई ने बडी कार्रवाई करते हुए गांधी मैदान स्थित रेनबो हॉस्पिटल में रेमडेसिविर की ब्लैक मार्केटिंग करते अस्पताल के निदेशक और उसके साले को गिरफ्तार किया है. 

अस्पताल का डायरेक्टर अशफाक और उसके साले अल्ताफ अहमद को गुप्त सूचना के आधार पर दबोचा गया. अस्पताल से 40 पीस रेमडेसिविर इंजेक्शन को जब्त किया गया.

वहीं भागलपुर में भी पुलिस व ड्रग विभाग के संयुक्त प्रयास से रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाले दलालों को दबोचा गया. इसमें पारस अस्पताल के मैनेजर की भी संलिप्तता थी. पुलिस ने मैनेजर सहित दो लोगों को गिरफ्तार किया है. 

यहां मामला कुछ ऐसा था कि गलत सूचना के आधार पर ये दलाल एक मृत मरीज के नाम पर रेमडेसिविर लेने आए थे. अस्पताल के मैनेजर ने यह कबूल किया है वह कालाबाजारी में लिप्त था. 

अस्पतालों से आ रहे हैं दिल तोड़ने वाले किस्से

निजी अस्पतालों में जारी लूट क अहाल यह है कि पटना के तारा अस्पताल में महाराजगंज के सीएमओ डॉ. राजेश्वर प्रसाद सिन्हा भर्ती थे. अस्पताल ने उनको मृत घोषित कर परिजनों को शव सौंपा. शव सौंपने से पहले तीन लाख 33 हजार 500 रुपये वसूले गए. इसमें 56 हजार केवल पीपीई किट के लिए वसूले गए हैं. 

यही नहीं, तीन मई के बाद मरीज की कोई रिपोर्ट परिजनों को नहीं दी जा रही थी. तीन मई के बाद की सारी दवाइयां दुकान पर लौटाई गई. अचानक छह मई की देर शाम को पैसा जमा कर शव ले जाने के लिए कहा जाने लगा. जबकि तीन दिन पहले उनकी हालत में सुधार की बात कही जा रही थी. 

वही, दूसरी कहानी चंदवारा निवासी रामकृष्ण चौधरी की है। उनको पत्नी के इलाज के लिए ढाई लाख खर्च करना पड़ा. इनकी पत्नी 10 अप्रैल को कारोना से संक्रमित हुई थीं. रामकृष्ण ने इन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. दस दिन बाद पत्नी ठीक हो गईं. अस्पताल का बिल ढाई लाख था. 

जेनरल स्टोर्स चलाकर जीवन-यापन करने वाले रामकृष्ण ने एक संबंधी से रुपया कर्ज लेकर अस्पताल का बिल चुका दिया. बाद में उन्होंने गांव में अपनी जमीन बेच कर संबंधी को रुपया चुका दिया. वह कहते हैँ कि पत्नी स्वस्थ हो गई. लेकिन इस बीमारी के कारण एक महीने का कारोबार ठप रहा और परेशानी भी उठानी पडी. 

वहीं, तीसरी कहानी मुजफ्फरपुर के लकडीढाई रोड निवासी शंभु वर्मा की है। इनका 25 वर्षीय बेटा कोरोना पॉजीटिव हो गया था. पांच दिनों बाद जब उन्हें सांस लेने में समस्या हुई तो एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. सात दिनों तक अस्पताल में इलाज के बाद इनका बेटा स्वस्थ हो गया. 

अस्पताल का बिल 1.30 लाख था. इनके पास सिर्फ 60 हजार रुपए थे. इन्होंने बेटी की शादी के लिए रखे एफडी तोड कर अस्पताल का बिल भरा. शंभु वर्मा कहते हैं कि बेटा बच गया, वहीं उनके लिए बहुत है. रुपयों का उपाय कर फिर बेटी के नाम से एफडी कर लेंगे.

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