आखिर क्यों तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पेश करने से बच रहे कांग्रेस लीडर?, पीसी में कांग्रेस नेता बोले- थोड़ा इंतजार कीजिए, देरी से क्या फर्क पड़ता? क्या हम बिना चेहरे के लड़ेंगे?
By एस पी सिन्हा | Updated: September 24, 2025 18:02 IST2025-09-24T18:01:23+5:302025-09-24T18:02:55+5:30
गया जिले के टिकारी से आए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने टिकट वितरण को लेकर जोरदार नारेबाजी की, जिससे बैठक की तैयारियों में और भी जोश नजर आया।

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पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। राजद के नेता तेजस्वी यादव जहां भाजपा की तरह बिना चेहरे के चुनाव न लड़ने की बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे पर लगातार चुप्पी साधे हुए है। यह गतिरोध तब सामने आया है, जब दोनों ही दल सीटों के बंटवारे को लेकर गहन बातचीत में लगे हुए हैं। उधर, बुधवार को पटना में हुई सीडब्ल्यूसी की बैठक में पार्टी के नेताओं ने अपने भविष्य को लेकर मंथन किया। सुबह से शुरू हुई बैठक शाम 4 बजे तक चली। बैठक से पहले सदाकत आश्रम में झंडोतोलन कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इससे पहले कांग्रेस दफ्तर के गेट पर पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच एंट्री को लेकर हल्की बहस भी हुई। वहीं, गया जिले के टिकारी से आए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने टिकट वितरण को लेकर जोरदार नारेबाजी की, जिससे बैठक की तैयारियों में और भी जोश नजर आया। विधानसभा चुनाव से पहले यह बैठक कांग्रेस के लिए राजनीतिक और संगठनात्मक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है।
सीडब्ल्यूसी की बैठक में कांग्रेस शासित तीन राज्यों के मुख्यमंत्री-हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुक्खू, तेलंगाना के रेवंत रेड्डी और कर्नाटक के सिद्धरमैया भी मौजूद थे। इनके साथ ही कांग्रेस पार्टी के सभी प्रदेश अध्यक्ष, उपमुख्यमंत्री,सीएलपी नेतागण, सांसद और विधायक शामिल हुए। इतनी बड़ी संख्या में नेताओं की मौजूदगी इस बैठक को विशेष महत्व देती है।
यह बैठक बिहार में इसलिए भी खास रही क्योंकि आजादी के बाद यह पहली बार है, जब सीडब्ल्यूसी की बैठक पटना में हुई। हालांकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1912, 1922 और 1940 में यहां कांग्रेस की अहम बैठकें हो चुकी हैं। सदाकत आश्रम का इतिहास भी गवाही देता है कि यहां से आजादी की लड़ाई की बड़ी-बड़ी रणनीतियां बनी थीं।
महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू जैसे दिग्गज नेताओं ने इसी आश्रम से आंदोलन की दिशा तय की। उधर, बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस बैठक को काफी अहम माना जा रहा है। कारण कि वर्ष 1990 के बाद से बिहार में लगातार पिछड़ती रही कांग्रेस अब खुद को नए जोश-खरोश के साथ चुनावी समर में उतारना चाहती है।
विधानसभा चुनाव से पहले इस बैठक को कांग्रेस का बड़ा शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है। इस बैठक में बिहार को लेकर खास रणनीति सेट किए जाने की चर्चा है। इसमें कांग्रेस को सीट की संख्या के बजाय जीत की संभावना वाली सीट पर चुनाव लड़ने पर फोकस करना मुख्य रणनीति का हिस्सा रहा।
सूत्रों के अनुसार बैठक में यह तय किया गया कि महागठबंधन में सीट बंटवारे पर चर्चा के दौरान पार्टी सिर्फ उन सीट पर अपनी दावेदारी जताएगी, जहां जीत की संभावनाएं हैं। इसके लिए कुछ सीट की अदला-बदली भी की जा सकती है। वहीं, पत्रकारों से बातचीत में कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से बिहार में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर सवाल पूछा गया।
उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि यह फैसला चुनाव जीतने के बाद लिया जाएगा। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की यह हिचक एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया कि पार्टी को डर है कि तेजस्वी को चेहरा घोषित करने से गैर-यादव और गैर-प्रभावी जातियां उनके खिलाफ एकजुट हो सकती हैं। अतीत में ऐसा कई बार हुआ है।
पार्टी का मानना है कि किसी चेहरे को घोषित करने के बजाय चुप रहकर हम मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को अपने से दूर होने से बचा सकते हैं। दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव लगातार इस मुद्दे पर दबाव बनाए हुए हैं। उन्होंने हाल ही में एक टीवी चैनल से कहा था, “थोड़ा इंतजार कीजिए। पांच-दस दिन की देरी से क्या फर्क पड़ता है? यह सीटों के बंटवारे के बाद होगा। क्या हम बिना चेहरे के चुनाव लड़ेंगे?
हम चेहरे के साथ चुनाव लड़ेंगे। क्या हम भाजपा हैं, जो बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनाव लड़ेंगे?” दरअसल, 2005 में सत्ता खोने के बाद से, राजद को अकेले दम पर वापस सत्ता में आने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। इसका मुख्य कारण गैर-यादव पिछड़ी जातियों का उससे दूर होना है।
आज भी, सवर्ण और गैर-यादव पिछड़ी जातियां “जंगल राज” की बात करती हैं, जो 1990 से 2005 के बीच राजद के शासनकाल में कथित रूप से अपराध में वृद्धि को दर्शाता है। एक कांग्रेस नेता ने कहा कि यह एक ऐसी स्थिति है जहां राजद, भाजपा और जदयू से लड़ने के बजाय, इतने सालों तक विपक्ष में रहने के बावजूद अपनी सत्ता विरोधी लहर से लड़ रही है।
इस बीच, इंडिया गठबंधन के एक और प्रमुख घटक, भाकपा-माले ने भी बिना किसी मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है। हालांकि, उसने कहा है कि अगर विपक्ष सरकार बनाता है, तो तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए एक स्वाभाविक पसंद होंगे। उल्लेखनीय है कि 1990 में कांग्रेस को केवल 71 सीटों पर जीत मिली और 103 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
1995 में यह गिरावट और तेज हो गई जब पार्टी को सिर्फ 29 सीटें मिलीं और 167 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 2000 में कांग्रेस को महज 23 सीटों से संतोष करना पड़ा और 231 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। वहीं झारखंड अलग होने के बाद वर्ष 2005 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 51 सीटों पर उम्मीदवार उतारा और सिर्फ 9 सीट जीत पाई।
2010 में स्थिति और भी खराब हो गई जब 243 में से सिर्फ 4 सीटें जीत पाईं और 216 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। वहीं 2015 में पार्टी ने केवल 41 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 27 सीटें जीत लीं, यह गठबंधन की राजनीति का असर था, न कि कांग्रेस की खुद की ताकत का क्योंकि तब लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ मिलकर कांग्रेस उतरी थी।
वहीं 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 19 सीटों पर जीत सकी। ऐसे में कांग्रेस 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में पूरी तरह जुट गई है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व आश्वस्त है कि इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव से बेहतर होगा। इसके लिए कुछ जातीय समीकरणों को साधने में कांग्रेस लगी है।
बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग(ईबीसी) की आबादी 36 फीसदी है। जाति गणना के आंकड़ों के अनुसार बिहार सरकार की अति पिछड़ा सूची में 25 जातियां शामिल हैं। इनमें कपरिया, कानू, कलंदर, कोछ, कुर्मी, खंगर, खटिक, वट, कादर, कोरा, कोरकू, केवर्त, खटवा, खतौरी, खेलटा, गोड़ी, गंगई, गंगोता, गंधर्व, गुलगुलिया, चांय, चपोता, चन्द्रवंशी, टिकुलहार, तेली (हिंदू व मुस्लिम) और दांगी शामिल हैं।
दूसरे नंबर पर ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या है, जो 27 फीसदी हैं। इस तरह राज्य में कुल पिछड़े 63 फीसदी हैं, लेकिन उसमें भी कैटिगराइजेशन कर दिया गया है और ईबीसी क्लास 36 पर्सेंट के साथ सबसे बड़ा समूह है। बता दें कि बिहार की आबादी में दलित आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है।
इसमें अनुसूचित जाति यानी एससी वर्गों की आबादी 19.65 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जनजाति वर्ग में 1.06 प्रतिशत आबादी है। दलितों में दुसाध पासवान जाति की कुल आबादी 69 लाख 43 हजार है, जो राज्य की कुल आबादी का 5.31 प्रतिशत है। वहीं दलितों में यह सबसे बड़ा वर्ग है। दलितों में दूसरे नंबर पर रविदास यानी चमार जाति की आबादी भी 5.25 फीसदी है।
वहीं मुसहर जाति की आबादी 3.08 फीसदी है। इन तीन जातियों की आबादी कुल दलित जनसंख्या में करीब 14 फीसदी है। बिहार की राजनीति में जातियों की प्रमुखता से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में जाति आधारित राजनीति का काट खोजने के लिए राहुल गांधी एक साथ कई जातियों को टारगेट कर बिहार में कांग्रेस के लिए बड़ा करना चाहते हैं।