बिहार विधानसभा चुनावः मतदाताओं में 36 फीसदी पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जाति, सियासी दांव-पेंच शुरू, 12 से 14 जातियों का ही बोलबाला
By एस पी सिन्हा | Updated: October 7, 2025 15:19 IST2025-10-07T15:18:27+5:302025-10-07T15:19:43+5:30
Bihar Assembly Elections: बिहार में तेली समाज- 2.81 फीसदी हैं। मल्लाह-2.6086 फीसदी, कानू-2.2129 फीसदी, धानुक-2.2129 फीसदी, नोनिया-1.91 फीसदी, चंद्रवंशी-1.64 फीसदी, नाई-1.5927 फीसदी हैं।

सांकेतिक फोटो
पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव का शंखनाद होने के साथ ही सभी दलों के द्वारा अपने-अपने दल के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की कवायद तेज कर दी गई है। वैसे तो तमाम जातियां राज्य के दो प्रमुख गठबंधनों के इर्द गिर्द तेजी से गोलबंद हो रही हैं। लेकिन पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति के मतदाता आगामी चुनाव में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। मोटे तौर पर बिहार के कुल मतदाताओं में 36 फीसदी पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जातियों के मतों पर सभी की निगाहें टिकी गई हैं। ऐसे में बिहार में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों का वोट पाने के लिए सियासी दांव-पेंच चलने शुरू हो गए हैं। हालांकि तमाम राजनीतिक पार्टियां अधिक से अधिक अति पिछड़ी जातियों का वोट पाने के लिए जुगत भिड़ा रही हैं। इसका कारण यह है कि इनका सबसे अधिक 28 फीसदी होना बताया जा रहा है।
बता दें कि अति पिछड़ी जातियों की राजनीति में 12 से 14 जातियों का ही बोलबाला है। राजनीति के केंद्र में तेली, मल्लाह, प्रजापति, कानू, धानुक, नोनिया, चंद्रवंशी, नाई, बढ़ई, मुस्लिम में जुलाहा अंसारी, राइन या कुंजरा, दांगी और थोड़ी बहुत माली जाति पर केंद्रित राजनीति ही चर्चा में है। हालांकि बिहार का हालिया सियासी इतिहास बताता है कि अति पिछड़ी जातियां जदयू का कोर मतदाता रहे हैं।
यह इसके बावजूद कि पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने इस समुदाय के 19 उम्मीदवारों को टिकट दिया था। हालांकि जीत केवल 4 उम्मीदवारों को मिली थी। दूसरी ओर जदयू ने 17 अति पिछड़ों को अपना उम्मीदवार बनाया था, जिनमें से 12 ने जीत हासिल की थी। जातीय गणना के अनुसार इन सभी जातियों की आबादी 2 करोड़ 94 लाख 63 हजार 536 है,
जबकि जातीय गणना के अनुसार ही बिहार में अति पिछड़ों की कुल आबादी 4 करोड़ 70 लाख 80 हजार 514 है। इस हिसाब से बिहार की सियासत में अभी इन जातियों को छोड़कर शेष बची 1 करोड़ 76 लाख 16 हजार 978 अतिपिछड़ी जातियां राजनीतिक परिदृश्य से लगभग बाहर हैं। राज्य में कुल 112 अति पिछड़ी जाति चिह्नित किये गये हैं।
अगर इन 14 जातियों को छोड़ दें तो 98 जातियों में से अधिकांश का राजनेता नाम भी नहीं जानते होंगे। इन जातियों के नुमाइंदे भी न के बराबर दिखते हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों की निगाहें अतिपिछड़ी जातियों पर ही हैं। विधानसभा में टिकट राजनीतिक दल इन्हीं जातियों में से देते हैं। विधान परिषद और राज्यसभा में भी इन्हीं जातियों से भेजे जाते रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि इन 12 से 14 जातियों के अपने सामाजिक संगठन हैं। जबकि शेष 98 जातियों का सामाजिक संगठन है भी तो काफी बिखरा और क्षेत्रीय स्तर पर है। इस कारण राजनीतिक दल सांगठनिक और बड़ी आबादी वाली अतिपिछड़ी जातियों को ही साधने में जुटे रहते हैं।
इसमें गोड़ी, राजवंशी, अमात, केवर्त, सेखड़ा, तियर, सिंदूरिया बनिया, नागर, लहेड़ी, पैरघा, देवहार, अवध बनिया बक्खो, अदरखी, नामशुद्र, चपोता, मोरियारी, कोछ, खंगर, वनपर, सोयर, सैकलगर, कादर, तिली, टिकुलहार, अबदल, ईटफरोश, अघोरी, कलंदर, भार, सामरी वैश्य, खटवा, गंधर्व, जागा, कपरिया, धामिन, पांडी, रंगवा, बागदी, मझवार, मलार, भुईयार, धनवार, प्रधान, मौलिक, मांगर, धीमर, छीपी, मदार, पिनगनिया, संतराश, खेलटा, पहिरा, ढेकारू, सौटा, कोरक, भास्कर, मारकंडे, नागर। ये सभी अतिपिछड़ी जाति में आते हैं।
मगर, इन जातियों के नाम शायद ही राजनेताओं के मुंह से सुने गये होंगे। यहां तक कि इन जातियों का नाम सुनकर सभी चौंक जायेंगे, क्योंकि अधिकांश ने शायद ही इनका नाम सुना हो। बहुत संभव है कि इन जातियों को क्षेत्रीय स्तर पर किसी और नाम से पुकारा जाता हो, मगर राज्य स्तर पर अधिकांश के बीच ये जातियां गुमनाम हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार में अति पिछड़ा समाज को राजनीतिक और सामाजिक पहचान दिलाने में जननायक कर्पूरी ठाकुर का सबसे बड़ा योगदान रहा है, जो कि खुद अति पिछड़ा समाज और नाई जाति से आते थे। अति पिछड़ा समाज की सामाजिक और राजनीतिक हिस्सेदारी में सबसे बड़ा बदलाव तब आया जब नीतीश कुमार ने पटना हाई कोर्ट के आदेश पर पंचायती चुनाव में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म करके अति पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दे दिया। इससे अति पिछड़ा समाज में अनेक नए नेताओं का जन्म होने लगा तथा राजनीति में अति पिछड़ा वर्ग की सहभागिता बढ़ने लगी।
आज अति पिछड़ा समाज से अनेक सांसद, विधायक और मंत्री देखने को मिलते हैं। बिहार में तेली समाज- 2.81 फीसदी हैं। वहीं, मल्लाह-2.6086 फीसदी, कानू-2.2129 फीसदी, धानुक-2.2129 फीसदी, नोनिया-1.91 फीसदी, चंद्रवंशी-1.64 फीसदी, नाई-1.5927 फीसदी, बढ़ई-1.45 फीसदी, मोमिन- जुलाहा-अंसारी- 3.54 फीसदी, धुनिया-1.42 फीसदी, प्रजापति-1.40 फीसदी, राइन- कुंजरा-1.39 फीसदी, माली-0.2672 फीसदी और दांगी-0.2575 फीसदी हैं। इस संबंध में भाजपा के राज्यसभा सदस्य भीम सिंह चंद्रवंशी का कहना है कि हमारा समाज आज काफी सोच विचार कर अपना मत देता है।
पहले के और में हम लोग शोषण के शिकार हुए, लेकिन जब से एनडीए की सरकार बनी हम लोगों के बीच काफी विकास किया गया। ऐसे में इस बार भी हमारे लोग एनडीए को ही चुनेंगे ताकि आगे और भी बेहतरी हो सके। जबकि जदयू के पूर्व सांसद चंद्रबली सिंह चंद्रवंशी ने कहा कि हम लोग एकजुटता के साथ एनडीए के साथ हैं और बने रहेंगे।
महागठबंधन के लोग हमेश हमलोगों को ठगने का काम किया है। वहीं, राजद प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा कि इस समाज के लोग काफी सचेत हो गए हैं। वे जान गए हैं कि डबल इंजन की सरकार ने उनको केवल झुनझुना दिखाया है। जबकि उनकी स्थिति में कोई सुधार नही है। दो चार लोगों को छोडकर देखें तो किसी को कोई मौका नहीं दिया गया।