बिहार विधानसभा चुनाव 2025: छोटी पार्टियां बिगाड सकती हैं एनडीए और महागठबंधन का सियासी खेल, आधा दर्जन से ज्यादा छोटी पार्टियां लड़ेगी चुनाव
By एस पी सिन्हा | Updated: September 14, 2025 14:08 IST2025-09-14T14:07:46+5:302025-09-14T14:08:07+5:30
Bihar assembly elections 2025 : जन सुराज पार्टी ने राज्य की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है और किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने की बात कही है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: छोटी पार्टियां बिगाड सकती हैं एनडीए और महागठबंधन का सियासी खेल, आधा दर्जन से ज्यादा छोटी पार्टियां लड़ेगी चुनाव
Bihar assembly elections 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे की सियासत अब पूरी तरह से गर्मा गई है। विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और इंडिया ब्लॉक (महागठबंधन) के बीच माना जा रहा है। एनडीए में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और भाजपा मुख्य पार्टी के अलावे हम, लोजपा(रा) और रालोमो हैं। जबकि महागठबंधन में कांग्रेस और राजद के अलावे वामपंथी पार्टियां, झामुमो, वीआईपी और रालोजपा शामिल हैं। मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है। ऐसे में दोनों गठबंधन एक दूसरे को मात देने की रणनीति बना रहे हैं। लेकिन इस बार कम से कम आधा दर्जन से अधिक छोटी राजनीतिक पार्टियां बिहार में ताल ठोकने के लिए बेताब हैं। अगर उन्होंने थोड़ा-बहुत भी वोटों का नुकसान किया तो महागठबंधन और एनडीए का खेल बिगड़ते देर नहीं लगेगी।
बता दें कि विधानसभा और विधान परिषद के उपचुनाव में प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली पार्टी जन सुराज ने इसका ट्रेलर दिखा भी दिया था। जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी गोपालगंज में अपना असर दिखाया था। इस बार आम आदमी पार्टी और जन सुराज ने विधानसभा की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम, हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले झामुमो, पूर्व आईजी शिवदीप वामनराव लांडे की हिन्द सेना, आम आदमी पार्टी(आप), बसपा, आईपी गुप्ता की पार्टी इंडियन इनक्लाब पार्टी, द प्लूरल पार्टी, तेज प्रताप के नेतृत्व में बना गठबंधन के अलावे अब शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी अपने लोगों को चुनावी मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है। इनके अलावा भी कई अन्य पार्टियां भी जातीय आधार पर दिखाई दे सकती हैं। वैसे सियासी भाषा में ऐसे छोटे दलों को लोग वोटकटवा कहते हैं। लेकिन यह सच है कि इस बार वोट कटवा पार्टियों की चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। ऐसे में जानकारों की मानना है कि इन दलों को यदि 5-10 प्रतिशत वोट भी मिल जाते हैं तो वो एनडीए और महागठबंधन दोनों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में 40 से अधिक सीटें ऐसी थीं जिस पर जीत एवं हार का अंतर 3500 से मतों से कम था। इनमें 11 सीटें ऐसी थीं जहां हार और जीत का अंतर 1000 वोटों से भी कम था। राजद के शक्ति सिंह यादव को सिर्फ 12 वोटों से पराजय का सामना करना पड़ा था। वहीं, रामगढ़ सीट 189 वोटों के अंतर रिजल्ट आए थे। ऐसे में 2025 के विधानसभा चुनावों में छोटे दलों की भूमिका निर्णायक हो सकती है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने साल 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल इलाके में सीटें जीती थीं, हालांकि उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए थे। इस बार एआईएमआईएम महागठबंधन में शामिल होने की अपील की है। हालांकि अब तक गठबंधन की ओर से कोई ठोस उत्तर नहीं मिला है। एआईएमआईएम 20-25 विधानसभा सीटों की मांग कर रही है। वैसे महागठबंधन में पहले से ही 7 दल शामिल हैं। ऐसे में ऐसा नहीं लग रहा है कि एआईएमआईएम का महागठबंधन से तालमेल बैठ पाए। इसके साथ ही चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत से उतरे हैं। जन सुराज पार्टी ने राज्य की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है और किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनने की बात कही है। वह अपनी सभाओं में नीतीश, भाजपा के साथ-साथ तेजस्वी यादव और लालू यादव की सरकार की भी लगातार आलोचना कर रहे हैं। वैसे विधानसभा उपचुनावों में भले ही उनकी पार्टी को कोई सीट नहीं मिली हो, लेकिन कई सीटों पर उनके उम्मीदवारों ने 10 फीसदी तक मत मिले थे। प्रशांत किशोर लगातार जिलों का दौरा कर रहे हैं और जनता से काम के आधार पर वोट देने की अपील कर रहे हैं। वे लगातार कहते आ रहे हैं कि “अगर चिराग पासवान 5 फीसदी वोट पर 5 सांसद निर्वाचित करवा सकते हैं तो हमारे 10 फीसदी वोट की ताकत को भी कम मत आंकिए।
वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) कभी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा थी, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बिहार चुनाव में सभी सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया है। हालांकि आप का बिहार में बहुत ज्यादा जनाधार नहीं हैं, लेकिन राजद और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। इससे महागठबंधन की चिंता बढ़ सकती है। खासकर शहरी क्षेत्रों, मुसलमान या युवा वोटर को वह अपने पक्ष में कर सकती है।
मायावती की बसपा भी बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। बिहार में बसपा का अब तक का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा है। 2020 में बसपा को एक सीट पर जीत मिली। बाद में पार्टी के विधायक जमा खान जदयू में शामिल हो गए जो अभी अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं। बसपा विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ती रही है। यूपी से सटे बिहार के इलाकों में बसपा का प्रभाव रहा है। जिसमें चैनपुर, मोहनिया, रामपुर, फारबिसगंज, भभुआ, दिनारा, बक्सर, कटैया नौतन, रामगढ़ जैसे विधानसभा क्षेत्र है और इन सीटों पर बसपा को जीत भी मिली है। यदि बसपा की जीत नहीं हुई है तो जीत हार में बसपा की प्रमुख भूमिका रही है। इस बार भी इन सीटों पर असर डाल सकती है।
वहीं, आईपीएस अधिकारी शिवदीप वामनराव लांडे पिछले साल सितंबर में आईजी (पूर्णिया) के पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद नए राजनीतिक संगठन 'हिंद सेना' गठन की और विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी। शिवदीप लांडे ने पार्टी गठन के समय ही कहा था कि लोगों का ध्यान खींचने के लिए राष्ट्रवाद, सेवा और समर्पण के सिद्धांतों पर पार्टी काम करेगा। शिवदीप लांडे आईपीएस अधिकारी के रूप में युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं। ऐसे में उनकी पार्टी कितना प्रभाव डालते हैं, इसपर सभी की निगाहें टिकी हुई है।
उधर, द प्लुरल पार्टी की नेता पुष्पम प्रिया चौधरी भी इस बार पूरे जोश में हैं। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वे खुद दरभंगा से चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने ऐलान किया कि जब तक कोई दल किसी महिला को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाता, वे मास्क नहीं उतारेंगी। उनकी पार्टी ने 2020 में भी चुनाव लड़ा था और अब एक बार फिर वो खुद को राज्य की एक सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं। वहीं, इंडियन इंकलाब पार्टी के अध्यक्ष ई. आईपी गुप्ता ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। उनकी पार्टी विशेष रूप से वैश्य समुदाय पर फोकस कर रही है।
बता दें कि बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में 212 पार्टियों ने हिस्सा लिया था। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो विधानसभा चुनाव को देखें तो 85 फीसदी से अधिक उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में कुल उम्मीदवारों में से 3,205 उम्मीदवारों यानी 85.8 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। इसी तरह बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या 2,935 थी, जो कुल उम्मीदवार का 85 फीसदी रहा था। चुनाव आयोग के आंकड़ों से साफ है कि अधिकांश छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार की जमानत नहीं बचती है। इसके बावजूद हर साल छोटे दलों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस साल विधानसभा चुनाव के लिए भी कई छोटे दलों ने 243 सीटों पर अभी से चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। पिछले साल गठित प्रशांत किशोर की जनसुराज और इस साल बनी शिवदीप लांडे की हिंद सेना उसमें शामिल है।