Bihar assembly elections 2020: राजद से परेशान कांग्रेस, मनपसंद सीट पर टकटकी, महागठबंधन में रार

By एस पी सिन्हा | Published: September 30, 2020 04:29 PM2020-09-30T16:29:20+5:302020-09-30T16:29:20+5:30

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 2015 की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा भी कर रही है. इस बाबत कांग्रेस के कई नेताओं ने बयान देकर कई बार सहयोगियों को परेशान भी कर दिया है. लेकिन राजद ऐसा होने देगी, ऐसी उम्मीद किसी को नही है.

Bihar assembly elections 2020 Congress upset RJD stares at favorite seat rages in grand alliance | Bihar assembly elections 2020: राजद से परेशान कांग्रेस, मनपसंद सीट पर टकटकी, महागठबंधन में रार

राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस लगातार काम कर रही है और वह आगामी विधानसभा चुनाव में पहले से कहीं बेहतर प्रदर्शन करेगी. (file photo)

Highlightsराष्ट्रीय पार्टी की रही, जिसके पास सवर्ण हिंदू जातियों की अगुवाई में दलितों-अल्पसंख्यकों का विशाल जनाधार था.दलितों-अल्पसंख्यकों को वाजिब हिस्सेदारी कभी नहीं दी. ऐसे में कांग्रेस का जनाधार खिसक कर अन्य दलों के पास चला गया.कांग्रेस के शामिल होने पर सवर्णों ने भी इससे दूरी बना ली. इससे पहले ही 1989 में भागलपुर दंगे के बाद अल्पसंख्यक राजद के साथ चले गये.

पटनाः बिहार को 20 मुख्यमंत्री देने वाली कांग्रेस पार्टी आज हाशिए पर खड़ी है. आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस की पहचान एक ऐसी राष्ट्रीय पार्टी की रही, जिसके पास सवर्ण हिंदू जातियों की अगुवाई में दलितों-अल्पसंख्यकों का विशाल जनाधार था.

वहीं, अब हर चुनाव में भले ही कांग्रेस खुद को पुनर्जीवित करने की कोशिश करती दिखती हो, लेकिन नतीजा कुछ खास बेहतर नहीं हुआ. इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 2015 की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा भी कर रही है. इस बाबत कांग्रेस के कई नेताओं ने बयान देकर कई बार सहयोगियों को परेशान भी कर दिया है. लेकिन राजद ऐसा होने देगी, ऐसी उम्मीद किसी को नही है.

सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने संगठन और सत्ता में दलितों-अल्पसंख्यकों को वाजिब हिस्सेदारी कभी नहीं दी. ऐसे में कांग्रेस का जनाधार खिसक कर अन्य दलों के पास चला गया. विश्लेषकों  की मानें तो 1990 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने और आरक्षण की राजनीति में राजद के साथ महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने पर सवर्णों ने भी इससे दूरी बना ली. इससे पहले ही 1989 में भागलपुर दंगे के बाद अल्पसंख्यक राजद के साथ चले गये.

दलितों ने रामविलास पासवान का दामन थाम लिया

वहीं, दलितों ने रामविलास पासवान का दामन थाम लिया. ऐसे में सवाल यह है कि जिस कांग्रेस ने बिहार में मजबूती से कई दशकों तक सरकार चलाई, आज भी अपने सहयोगी के भरोसे क्यों टिकी है ? एक और जहां कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस लगातार काम कर रही है और वह आगामी विधानसभा चुनाव में पहले से कहीं बेहतर प्रदर्शन करेगी. तो वहीं, सत्ता पक्ष के नेताओं का मानना है कि कांग्रेस का सिर्फ भग्नावशेष बचा है. 

हालांकि, इस बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा का मानना है कि 2015 की तुलना में पार्टी अधिक सीटों पर चुनाव लडेगी भी और जीतेगी भी. उन्होंने कहा कि 38 जिलों में वरिष्ठ नेताओं को कई तरह के कार्य भार दिए गए हैं. किन-किन सीटों पर कांग्रेस मजबूती से चुनाव लड़ सकती है. वहीं, जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन का तो मानना है कि बिहार में कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो चुका है.

100 वर्ष से ज्यादा पुरानी पार्टी का सिर्फ भग्नावशेष बचा है. जदयू नेता कहते हैं कि बिहार में एक ओर नीतीश कुमार और उनके सहयोगियों की सुशासन की सरकार है, तो दूसरी ओर राजद और कांग्रेस का गठबंधन. राज्य की जनता राजद के कार्यकाल को भी भलि-भांति झेली है और जानती है, जिसमें कांग्रेस बराबर की साझेदार रही है.

इसबार चुनाव में भी कांग्रेस के लिए बिहार में कुछ भी खास करने के लिए नहीं होगा. ऐसे में यह प्रश्न उठने लगा है कि तीन दशकों में आखिर कांग्रेस हाशिए पर क्यों चली गई? यहां उल्लेखनीय है कि 1985 में 196 कांग्रेस के विधायक थे. 1990 में 71 विधायक कांग्रेस के जीते. इस इस वर्ष बिहार में बडा बदलाव हुआ और लालू प्रसाद यादव जनता दल की ओर से मुख्यमंत्री बने.

1995 में कांग्रेस सिमटकर के 29 सीटों पर पहुंच गई. इस बार लालू प्रसाद यादव को पहले से भी बडी जीत हासिल हुई थी. सन 2000 में कांग्रेस की सीटों में गिरावट होते हुए 23 विधायक बने. वर्ष 2005 में कांग्रेस का ग्राफ काफी नीचे गिर गया और मात्र 9 विधायक बने.

इस बार लालू यादव को शिकस्त देकर उन्हीं के पुराने सहयोगी नीतीश कुमार ने पहली बार सीएम बने. वर्ष 2010 में तो कांग्रेस की और भी बुरी हार हुई. वर्ष 2015 में एक बार फिर नीतीश कुमार की अगुवाई में कांग्रेस को 27 सीटें मिली. इसतरह से पिछले 30 वर्षों में कांग्रेस जमीनी स्तर पर काफी कमजोर पड़ गई है.

एक ओर जहां कांग्रेस के परंपरागत वोटर भाजपा के साथ चले गए, तो वहीं एक धड़ा राजद के साथ. वैसे इसबार विधानसभा चुनाव के पहले तो कांग्रेस के कई नेता कई दावे कर रहे हैं. लेकिन क्या कुछ नया बदलाव कांग्रेस में दिखेगा, यह तो वक्त ही बताएगा.

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