भीमा-कोरेगांव पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पांचों एक्टिविस्ट नहीं जाएंगे जेल, 12 सिंतबर तक घर में ही रहेंगे नजरबंद
By पल्लवी कुमारी | Updated: September 6, 2018 13:39 IST2018-09-06T13:39:12+5:302018-09-06T13:39:12+5:30
महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में बुद्धिजीवियों के घरों में मंगलवार 28 अगस्त को छापा मारा। जिसमें माओवादियों से संपर्क रखने के शक में कम से कम पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया।

भीमा-कोरेगांव पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, पांचों एक्टिविस्ट नहीं जाएंगे जेल, 12 सिंतबर तक घर में ही रहेंगे नजरबंद
नई दिल्ली, 06 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट में 06 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश और भीमा कोरोगांव हिंसा केस की सुनवाई करने का फैसला फिलहाल के लिए टाल दिया है। अब ये सुनवाई 12 सितंबर 2018 को की जाएगी। इसका मतलब 12 सितंबर तक वह अपने घर में ही नजरबंद रहेंगे। इस मामले में पांच एक्टिविस्ट कवि वरवर राव, वकील सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनॉन गोंज़ाल्विस को गिरफ्तार किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि पुलिस ने कैसे कहा कि मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि पुलिस में प्रेस में साक्ष्य दिखाकर सुप्रीम कोर्ट को गलत साबित करने की कोशिश न करे। कोर्ट ने सरकारी वकील से कहा, 'पुलिस को ऐहतियात बरतना चाहिए। हम इस मामले में बेहद गंभीर हैं।'
कल दाखिल हुआ था हलफनामा
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के कथित नक्सल लिंक के मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में 5 सिंतबर को हलफनामा दाखिल किया था। महाराष्ट्र पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने सरकार से असहमति के लिए नहीं बल्कि बैन संगठन सीपीआई के सदस्य होने के सबूत मिलने के बाद आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने आरोपियों के पूछताछ के लिए सुप्रीम कोर्ट से फिर एक बार उनकी कस्टडी की मांग की है। साथ ही आशंका भी जताई है कि आरोपी सबूत नष्ट कर सकते हैं। पुलिस ने कोर्ट ने सील बंद लिफाफे में सबूत भी पेश किए गए थे।
Bhima Koregaon case: Supreme Court extended the house arrest of five arrested activists till September 12. pic.twitter.com/T6HbOXvGCx
— ANI (@ANI) September 6, 2018
घर में नजरबंद करने को दिया था आदेश
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घरों में ही नजरबंद रखने का आदेश देते हुये महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के जवाब में ही राज्य पुलिस ने बुधवार 5 सिंतबर को हलफनामा दाखिल किया था।
न्यायालय ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर तथा अन्य की यचिका पर 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ''असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व'' है।
महाराष्ट्र पुलिस की छापेमारी
बता दें कि महाराष्ट्र पुलिस ने कई राज्यों में बुद्धिजीवियों के घरों में मंगलवार 28 अगस्त को छापा मारा। जिसमें माओवादियों से संपर्क रखने के शक में कम से कम पांच लोगों को गिरफ्तार किया। जिसमें रांची से फादर स्टेन स्वामी , हैदराबाद से वामपंथी विचारक और कवि वरवरा राव, फरीदाबाद से सुधा भारद्धाज और दिल्ली से सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलाख शामिल है।
महाराष्ट्र पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से मंगलवार दिल्ली में पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा, गोवा में प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे, रांची में मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी, मुंबई में सामाजिक कार्यकर्ता अरुण परेरा, सुजैन अब्राहम, वर्नन गोनसाल्विस, हैदराबाद में माओवाद समर्थक कवि वरवर राव, वरवर राव की बेटी अनला, पत्रकार कुरमानथ और फरीदाबाद में सुधा भारद्वाज के घर पर छापेमारी की।
क्या था पूरा मामला
एक जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना के बीच पुणे के निकट भीमा नदी के किनारे कोरेगांव नामक गाँव में युद्ध हुआ था। एफएफ स्टॉन्टन के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की सेना को गंभीर नुकसान पहुँचाया। ब्रिटिश संसद में भी भीमा कोरेगांव युद्ध की प्रशंसा की गयी। ब्रिटिश मीडिया में भी इस युद्ध में अंग्रेज सेना की बहादुरी के कसीदे काढ़े गये। इस जीत की याद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोरेगांव में 65 फीट ऊंचा एक युद्ध स्मारक बनवाया जो आज भी यथावत है। भीमा कोरेगांव के इतिहास में बड़ा मोड़ तब आया जब बाबासाहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कोरेगांव युद्ध की 109वीं बरसी पर एक जनवरी 1927 को इस स्मारक का दौरा किया।
शिवराम कांबले के बुलावे पर ही बाबासाहब कोरेगांव पहुंचे थे। बाबासाहब ने भीमा कोरेगांव स्मारक को ब्राह्मण पेशवा के जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ महारों की जीत के प्रतीक के तौर पर इस युद्ध की बरसी मनाने की विधवित शुरुआत की। इस साल एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव की 200वीं बरसी पर आयोजित आयोजन का कई दक्षिणपंथी संगठनों ने विरोध किया था। विरोध करने वालों में अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा, हिन्दू अगाड़ी और राष्ट्रीय एकतमाता राष्ट्र अभियान ने शामिल थे। ये संगठन इस आयोजन को राष्ट्रविरोधी और जातिवादी बताते हैं।