बलूनी ने उत्तराखंड के लोगों से अपने पैतृक गांवों में लोकपर्व इगास मनाने का किया आग्रह

By भाषा | Updated: November 13, 2021 19:42 IST2021-11-13T19:42:38+5:302021-11-13T19:42:38+5:30

Baluni urges the people of Uttarakhand to celebrate the folk festival Egas in their native villages | बलूनी ने उत्तराखंड के लोगों से अपने पैतृक गांवों में लोकपर्व इगास मनाने का किया आग्रह

बलूनी ने उत्तराखंड के लोगों से अपने पैतृक गांवों में लोकपर्व इगास मनाने का किया आग्रह

नयी दिल्ली, 13 नवंबर उत्तराखंड के लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ने के उद्देश्य से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद अनिल बलूनी लोकपर्व ‘इगास’ यानी बूढ़ी दिवाली को पुनर्जीवित करने का अभियान चला रहे हैं और इसके तहत उन्होंने लोगों से अपने-अपने पैतृक गांवों में ही इस पर्व को मनाने का आह्वान किया है।

बलूनी ने 2018 में ‘‘अपना वोट, अपने गांव’’ नाम से एक अभियान की शुरुआत की थी और इसी के तहत उन्होंने यह अपील की है। इसके पीछे उनका उद्देश्य है कि जो लोग उत्तराखंड से बाहर हैं, वह चुनावों के समय अपने गांवों में आकर मतदान जरूर करें।

बलूनी ने कहा कि इस पहल से उत्तराखंड के लोग अपनी जड़ों से जुड़ेंगे और इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचेगा।

सुदूर गांवों में पलायन को एक ‘‘गंभीर समस्या’’ करार देते हुए बलूनी ने कहा, ‘‘इस लोक पर्व को पुनर्जीवित करने के लिए शुरु किया गया अभियान यह सुनिश्चित करने के लिए था कि चीन और नेपाल की सीमा से सटे हमारे गांवों में सूनापन न रहे। इसके तहत मैं लोगों से यह आग्रह भी कर रहा हूं कि वह अपने पैतृक गांवों में ही मतदान करें ताकि उस स्थान से संपर्क में बना रहे।’’

भाजपा मीडिया विभाग के प्रभारी बलूनी ने कहा कि इसके पीछे उनका व्यापक विचार यही है कि उत्तराखंड से पलायन कर चुके लोग इस लोक पर्व के माध्यम से अपनी जड़ों की ओर लौटे और पलायन पर भी लगाम लग सके।

उन्होंने कहा, ‘‘इस अभियान के केंद्र में पलायन से प्रभावित उत्तरखंड के दूर-सुदूर गांव व स्थान हैं। लोग अगर इगास मनाने और मतदान करने के लिए साल में कम से कम दो बार भी अपने गांवों में जाए तो इससे इन सीमाई क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अहम इन गांवों का सूनापन भी खत्म होगा।’’

बलूनी ने कहा कि पिछले तीन सालों से जारी उनके इस प्रयासों की बदौलत यह लोकपर्व अब पलायन संकट के समाधान का एक जरिया बना है।

अभियान की प्रगति से खुश भाजपा नेता ने कहा कि इस वर्ष तो समतल क्षेत्र में रहने वाले भी इस पर्व को मनाएंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘इगास या बूढ़ी दिवाली अब उत्तराखंड की पहचान बन चुका है। ठीक उसी प्रकार जैसे गुजरात का गरबा और बिहार का छठ।’’

ज्ञात हो कि उत्तराखंड सरकार ने इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है।

इगास का यह पर्व दिवाली के 11 दिनों बाद मनाया जाता है। मान्यता है कि 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे तो इसकी खबर उत्तराखंड की सुदूर पहाड़ियों में 11 दिनों के बाद पहुंची थी।

इस त्योहार के दिन घरों में पारंपरिक पकवान और मिठाइयां बनती हैं और शाम को भैलो जलाकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।

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Web Title: Baluni urges the people of Uttarakhand to celebrate the folk festival Egas in their native villages

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