अयोध्या विवादः बाबरी मस्जिद के पास रहने वाले परिवार ने खोलीं परतें, कहा-कार सेवकों पर जुनून छाया था

By भाषा | Published: November 15, 2019 08:50 PM2019-11-15T20:50:32+5:302019-11-15T20:50:32+5:30

नीरज गोस्वामी उस समय 10 साल के थे। उन्होंने बताया, ‘‘कार सेवकों पर जुनून छाया था। 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद की तीन गुंबदों को एक-एक कर उन्होंने लोहे की छड़ों और अन्य चीजों से तोड़-तोड़ कर ढहा दिया, जिससे वहां धूल का गुबार छा गया। बाद में इसका प्रभाव समूचे देश में महसूस किया गया।’’

Ayodhya dispute: Family living near Babri Masjid opened layers, said - passion was on car workers | अयोध्या विवादः बाबरी मस्जिद के पास रहने वाले परिवार ने खोलीं परतें, कहा-कार सेवकों पर जुनून छाया था

गोस्वामी ने कहा, ‘‘नौ नवंबर को ऐसे लगा कि मेरे दिल से बोझ हट गया।

Highlightsगोस्वामी की कई पीढ़ियां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के विभिन्न चरणों की गवाह रहीं हैं।मामले में उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला उनके परिवार के लिये एक बड़ी राहत लेकर आया।

जीवन के 84 वसंत देख चुके रामकिशोर गोस्वामी अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि कैसे वह अपने करीब 200 साल पुराने मकान के समीप बनी बाबरी मस्जिद के आसपास खेला करते और तब वहां इस मस्जिद के आसपास सुरक्षाकर्मियों का कोई पहरा नहीं हुआ करता था।

उनके पुत्रों नीरज और निखिल, दोनों का जन्म 1980 के दशक में हुआ थे। उनके स्मृतिपटल पर अब भी 1992 के उस दिन की यादें ताजा हैं जब अनियंत्रित कारसेवकों की भीड़ ने मुगल काल की मस्जिद को ढहा दिया था। दोनों घटनास्थल से करीब 300 मीटर दूर स्थित अपने पैदाइशी घर ‘श्रीनगर भवन’ की छत से इस घटना को देख रहे थे।

नीरज गोस्वामी उस समय 10 साल के थे। उन्होंने बताया, ‘‘कार सेवकों पर जुनून छाया था। 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद की तीन गुंबदों को एक-एक कर उन्होंने लोहे की छड़ों और अन्य चीजों से तोड़-तोड़ कर ढहा दिया, जिससे वहां धूल का गुबार छा गया। बाद में इसका प्रभाव समूचे देश में महसूस किया गया।’’

गोस्वामी की कई पीढ़ियां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के विभिन्न चरणों की गवाह रहीं हैं। मामले में उच्चतम न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला उनके परिवार के लिये एक बड़ी राहत लेकर आया। गोस्वामी ने कहा, ‘‘नौ नवंबर को ऐसे लगा कि मेरे दिल से बोझ हट गया। अपने जीवन के 80 साल मैं अपने पिता, दादा से रामजन्मभूमि, बाबरी मस्जिद के बारे में सुनता आ रहा था। 1992 तक वहां बाबरी मस्जिद थी। मुझे खुशी है कि विवाद सुलझ गया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘रामजन्मभूमि हमारे लिये एक पवित्र स्थल है और निर्णय से मुझे खुशी है। अयोध्या के लोग शांतिप्रिय हैं और इसलिए सांप्रदायिक सौहार्द कायम रहना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस परिसर के इतना करीब रहने के बावजूद बचपन में मुझे कभी इस स्थल के विवादित होने के बारे में पता नहीं था। यह इलाका तो हम बच्चों के लिये खेलने की जगह था।’’

गोस्वामी ने कहा, ‘‘दिसंबर 1949 में मस्जिद में चुपके से भगवान राम की प्रतिमा स्थापित की गयी। उसे रहस्मय प्राकट्य के रूप में मान लिया गया। उस समय मुझे इस मामले का महत्व समझ में आया। ’’ उस समय भारत को स्वतंत्र हुए मा दो वर्ष हुए थे और विभाजन का घाव अभी भरा नहीं था।

गोस्वामी ने दावा किया, ‘‘1949 की घटना के बाद तांगों पर लाउडस्पीकर से यह घोषणा की जाती थी कि हिंदुओं के कल्याण के लिये भगवान राम प्रकट हुए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे याद है बचपन में मस्जिद से ‘अजान’ की आवाज आती थी। लेकिन 1950 के दशक के बाद ये आवाजें आनी बंद हो गयीं।’’ श्रीनगर भवन सदियों से गोस्वामी परिवार का आवास रहा है। निखिल गोस्वामी के अनुसार उनके पूर्वज दयाल गोस्वामी वृंदावन से अयोध्या आये थे। 

Web Title: Ayodhya dispute: Family living near Babri Masjid opened layers, said - passion was on car workers

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