अयोध्या विवाद :विवाद सुलझाने के लिए अध्यादेश लाने की योजना बना रही थी चंद्रशेखर सरकार
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 15, 2019 07:22 IST2019-07-15T07:22:07+5:302019-07-15T07:22:07+5:30
किताब 'चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स' में कहा गया है कि 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उस समय के मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और भैरों सिंह शेखावत के साथ विहिप और मुस्लिम नेताओं के बीच संवेदनशील मुद्दे पर मध्यस्थता की थी.

बाबरी मस्जिद 1992 में ढहाए जाने से दो साल पहले तत्कालीन कांग्रेस समर्थित चंद्रशेखर सरकार अध्यादेश के जरिए अयोध्या विवाद को सुलझाने की योजना बना रही थी.
बाबरी मस्जिद 1992 में ढहाए जाने से दो साल पहले तत्कालीन कांग्रेस समर्थित चंद्रशेखर सरकार अध्यादेश के जरिए अयोध्या विवाद को सुलझाने की योजना बना रही थी. यह दावा राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर लिखी गई किताब में किया गया है.
किताब 'चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स' में कहा गया है कि 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उस समय के मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और भैरों सिंह शेखावत के साथ विहिप और मुस्लिम नेताओं के बीच संवेदनशील मुद्दे पर मध्यस्थता की थी.
जयप्रकाश नारायण के करीबी सहयोगी रहे वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय के हवाले से किताब में कहा गया है कि व्यापक तौर पर यह माना जाता है कि चंद्रशेखर सरकार अध्यादेश लागू कर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को ''सुलझाने के कगार'' पर थी.
किताब में दावा किया गया है कि इस तरह का अध्यादेश तैयार किए जाने की सूचना मिलने पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी और उनकी ''सलाहकार मंडली में हड़कंप मच गया'' क्योंकि वे ''नहीं चाहते थे'' कि इस तरह की जटिल समस्या के समाधान से चंद्रशेखर का कद बढ़े.
हरिवंश ने अपनी किताब में आगे कहा है कि चंद्रशेखर प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान हिंदुओं (विहिप) और मुस्लिमों (बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी) के तथाकथित नेताओं के बीच शत्रुता को कम करने के लिए कुछ अत्यंत साहसिक कदम उठाने से भी नहीं झिझके.
किताब में कहा गया है, ''चंद्रशेखर दोनों पक्षों को समझौते की मेज पर बैठाने और मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पारस्परिक समझौतों के वास्ते मार्ग तलाशने में सफल रहे.''मुद्दे को सुलझाने के प्रयास के तहत चंद्रशेखर ने राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं अपने पुराने मित्र एवं भाजपा नेता शेखावत, कांग्रेस से एक अन्य मित्र एवं महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री पवार और उत्तर प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री यादव को पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर काम करने के लिए आमंत्रित किया था.