गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी घोषित महिला की रिहाई का आदेश दिया, न्यायाधिकरण ने 2016 में 'भारतीय' तो 2021 में 'विदेशी' घोषित किया था

By विशाल कुमार | Updated: December 16, 2021 07:47 IST2021-12-16T07:42:56+5:302021-12-16T07:47:17+5:30

सोमवार को हाईकोर्ट ने न्यायाधिकरण की 2021 की राय को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दोनों निर्णयों में याचिकाकर्ता की पहचान समान है और एक ही व्यक्ति के संबंध में दूसरी राय कायम नहीं रह सकती है।

assam woman-declared-indian-foreigner gauhati-high-court-ordered release | गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी घोषित महिला की रिहाई का आदेश दिया, न्यायाधिकरण ने 2016 में 'भारतीय' तो 2021 में 'विदेशी' घोषित किया था

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने विदेशी घोषित महिला की रिहाई का आदेश दिया, न्यायाधिकरण ने 2016 में 'भारतीय' तो 2021 में 'विदेशी' घोषित किया था

Highlightsविदेशी न्यायाधिकरण ने 2016 में हसीना उर्फ हस्ना बानू को विदेशी/अवैध प्रवासी नहीं था।न्यायाधिकरण ने मार्च 2021 में न्यायाधिकरण ने उन्हें 25.03.1971 की विदेशी घोषित किया।सोमवार को हाईकोर्ट ने न्यायाधिकरण की 2021 की राय को खारिज कर दिया।

गुवाहाटी: एक ही विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा पहले साल 2016 में भारतीय और फिर साल 2021 में विदेशी घोषित किए जाने के बाद असम के दरांग जिले की एक 55 वर्षीय निवासी गुवाहाटी हाईकोर्ट के दखल के बाद आज डिटेंशन सेंटर से बाहर आएंगी।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, असम के मंगलदाई में स्थित विदेशी न्यायाधिकरण-1 ने अगस्त, 2016 में हसीना उर्फ हस्ना बानू को किसी भी तरह का विदेशी/अवैध प्रवासी नहीं होना बताया था।

हालांकि, साल 2017 में असम सीमा पुलिस को उनके बांग्लादेशी नागरिक होने का संदेह हुआ जिसके बाद उसने इस विदेशी न्यायाधिकरण में भेज दिया जहां उनके खिलाफ एक और मामला दर्ज किया गया।

मार्च 2021 में न्यायाधिकरण ने उन्हें 25.03.1971 की विदेशी घोषित किया, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अक्टूबर में तेजपुर जेल में एक डिटेंशन कैंप में डाल दिया गया।

दरांग के एसपी सुशांत बिस्वा सरमा ने बताया कि उन्होंने सोमवार को अदालत के निर्देश के बाद उनकी रिहाई के आदेश को मंजूरी दे दी थी। वह अब कभी भी बाहर जा सकती हैं। भानु के परिवार ने कहा कि वे उन्हें गुरुवार को तेजपुर जेल (दरांग से करीब 100 किलोमीटर दूर) से लेने जाएंगे।

सोमवार को हाईकोर्ट ने न्यायाधिकरण की 2021 की राय को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दोनों निर्णयों में याचिकाकर्ता की पहचान समान है और एक ही व्यक्ति के संबंध में दूसरी राय कायम नहीं रह सकती है।

हाईकोर्ट ने साल 2019 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी उदाहरण दिया जिसमें किसी की नागरिकता से जुड़े मसले में एक बार फैसला हो जाने के बाद उसी पक्ष द्वारा मामले को दोबारा खोलने पर रोक लगाती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि हम यह समझने में असमर्थ हैं कि न्यायाधिकरण ने मामले की जांच कैसे की और कैसे उपरोक्त अवलोकन किया। उसने बिना कोई अन्य रिकॉर्ड मंगाए ही मामले को खारिज कर दिया।

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