उच्च न्यायालय न्यायाधीश के आवास से बड़े पैमाने पर नकदी?, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा-तो फिर कानून से परे एक श्रेणी को यह छूट कैसे हासिल हुई?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 17, 2025 20:10 IST2025-04-17T20:10:05+5:302025-04-17T20:10:54+5:30
किसी संस्था या व्यक्ति को पतन की ओर धकेलने का सबसे पुख्ता तरीका उसे जांच से सुरक्षा की पूर्ण गारंटी प्रदान करना है।

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नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास से बड़े पैमाने पर नकदी की बरामदगी से जुड़े मामले में प्राथमिकी दर्ज न किए जाने पर बृहस्पतिवार को सवाल उठाया और कहा कि क्या “कानून से परे एक श्रेणी” को अभियोजन से छूट हासिल है। धनखड़ ने कहा, “अगर यह घटना उसके (आम आदमी के) घर पर हुई होती, तो इसकी (प्राथमिकी दर्ज किए जाने की) गति इलेक्ट्रॉनिक रॉकेट सरीखी होती, लेकिन उक्त मामले में तो यह बैलगाड़ी जैसी भी नहीं है।” उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्र जांच या पूछताछ के खिलाफ किसी तरह का “सुरक्षा कवच” नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी संस्था या व्यक्ति को पतन की ओर धकेलने का सबसे पुख्ता तरीका उसे जांच से सुरक्षा की पूर्ण गारंटी प्रदान करना है।
उच्चतम न्यायालय ने 14 मार्च को होली की रात दिल्ली में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर लगी भीषण आग को बुझाने के दौरान वहां कथित तौर पर बड़े पैमाने पर नोटों की अधजली गड्डियां बरामद होने के मामले की आंतरिक जांच के आदेश दिए थे। इसके अलावा, न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से वापस इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया गया था।
धनखड़ ने मामले की आंतरिक जांच के लिए गठित तीन न्यायाधीशों की समिति की कानूनी वैधता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि तीन न्यायाधीशों की समिति मामले की जांच कर रही है, लेकिन जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है, न्यायपालिका का नहीं। उपराष्ट्रपति ने दावा किया कि समिति का गठन संविधान या कानून के किसी प्रावधान के तहत नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा, “और समिति क्या कर सकती है? समिति अधिक से अधिक सिफारिश कर सकती है। सिफारिश किससे? और किसलिए?” धनखड़ ने कहा, “न्यायाधीशों के लिए हमारे पास जिस तरह की व्यवस्था है, उसके तहत अंततः एकमात्र कार्रवाई (न्यायाधीश को हटाना) संसद द्वारा की जा सकती है।” उन्होंने कहा कि समिति की रिपोर्ट का “स्वाभाविक रूप से कोई कानूनी आधार नहीं होगा।”
यहां राज्यसभा प्रशिक्षुओं के एक समूह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “एक महीने से ज्यादा समय बीत चुका है। भले ही इस मामले के कारण शर्मिंदगी या असहजता का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अब समय आ गया है कि इससे पर्दा उठाया जाए। सारी सच्चाई सार्वजनिक मंच पर आने दें, ताकि व्यवस्था को साफ किया जा सके।”
उन्होंने कहा कि सात दिन तक किसी को इस घटनाक्रम के बारे में पता नहीं था। धनखड़ ने कहा, “हमें खुद से कुछ सवाल पूछने होंगे। क्या देरी के लिए कोई सफाई दी जा सकती है? क्या यह माफी योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? क्या किसी आम आदमी से जुड़े मामले में चीजें अलग होतीं?”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि शीर्ष अदालत की ओर से मामले की पुष्टि किए जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि इसकी जांच किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “अब राष्ट्र बेसब्री से इंतजार कर रहा है। राष्ट्र बेचैन है, क्योंकि हमारी एक संस्था, जिसे लोग हमेशा से सर्वोच्च सम्मान और आदर की दृष्टि से देखते आए हैं, वह अब कठघरे में खड़ी है।”
कानून के शासन की अहमियत पर जोर देते हुए धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र में आपराधिक न्याय प्रणाली की शुचिता ही उसकी दिशा निर्धारित करती है। उन्होंने कहा कि मामले में प्राथमिकी न दर्ज किए जाने के मद्देनजर फिलहाल कानून के तहत कोई जांच नहीं हो रही है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “यह देश का कानून है कि हर संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को देना जरूरी है और ऐसा न करना एक अपराध है।
इसलिए, आप सभी को आश्चर्य हो रहा होगा कि कोई प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई।” उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि उपराष्ट्रपति सहित किसी भी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है। धनखड़ ने कहा, “केवल कानून का शासन लागू किए जाने की जरूरत होती है। किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ती।
लेकिन अगर यह न्यायाधीशों, उनकी श्रेणी का मामला है, तो सीधे प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती। न्यायपालिका में संबंधित लोगों की ओर से इसका अनुमोदन किए जाने की जरूरत होती है।” उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान में केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही अभियोजन से छूट प्रदान की गई है। उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा, “तो फिर कानून से परे एक श्रेणी को यह छूट कैसे हासिल हुई?”
पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित करते हुए उपराष्ट्रपति ने लोकपाल पीठ के इस फैसले का जिक्र किया कि लोकपाल को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि स्वत: संज्ञान लेकर शीर्ष अदालत ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के आधार से जुड़े आदेश पर रोक लगा दी। धनखड़ ने कहा, “यह स्वतंत्रता जांच, पूछताछ या छानबीन के खिलाफ किसी तरह का सुरक्षा कवच नहीं है। संस्थाएं पारदर्शिता से फलती-फूलती हैं। किसी संस्था या व्यक्ति को पतन की ओर धकेलने का सबसे पुख्ता तरीका यह है कि उसे इस बात की पूरी गारंटी दे दी जाए कि उसके खिलाफ कोई जांच, कोई पूछताछ या कोई छानबीन नहीं होगी।” भाषा पारुल नरेश नरेश