अनुच्छेद 370: सुप्रीम कोर्ट ने सीताराम येचुरी को दी कश्मीर जाने की इजाजत, कहा- अपने दोस्त से मिल आओ, राजनीति न करना
By भाषा | Published: August 28, 2019 01:30 PM2019-08-28T13:30:51+5:302019-08-28T13:50:56+5:30
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि वह अपनी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक यूसुफ तारीगामी से मिलने के लिए गुरुवार (29 अगस्त) को कश्मीर जा रहे हैं।
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी को उनके पार्टी सहयोगी मोहम्मद यूसुफ तारीगामी से मिलने के लिए जम्मू-कश्मीर जाने की इजाजत दे दी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की एक पीठ ने हालांकि येचुरी को निर्देश दिया कि जम्मू कश्मीर जाकर वह सिर्फ तारीगामी से मिलें और अपनी यात्रा का इस्तेमाल किसी भी राजनीतिक उद्देश्य के लिए न करें।
पीठ ने कहा कि अगर येचुरी किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल होते हैं तो अधिकारी इस बारे में उच्चतम न्यायालय को बताने के लिए स्वतंत्र हैं।
CPI(M) leader Sitaram Yechury: I am going there tomorrow (to meet his party leader & former MLA, Yusuf Tarigami in Kashmir) https://t.co/mAM0SBAQADpic.twitter.com/TvLYSHkOuz
— ANI (@ANI) August 28, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एक छात्र मोहम्मद अलीम सयैद को भी जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में रहने वाले उसके परिवार से मिलने की इजाजत दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि परिवार से मिलने बाद उसे कोर्ट को रिपोर्ट करना होगा।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को नरेंद्र मोदी सरकार ने संशोधित कर दिया था। इस फैसले के बाद से सुरक्षा उपायों के तहत कश्मीर घाटी में प्रतिबंध लगाए गए। नेताओं को नजरबंद किया गया। कुछ इलाकों में प्रतिबंधों में ढील दे दी गई है।
बुधवार (28 अगस्त) को उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को रद्द करके जम्मू कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में बदलाव किये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केन्द्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किये।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय पीठ केन्द्र की इस दलील से सहमत नहीं थी कि इस मामले में नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सालिसीटर जनरल तुषार मेहता न्यायालय में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
पीठ ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि इसके ‘‘सीमा पार नतीजे ’’ होंगे। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपेंगे।’’
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि न्यायालय ने जो कुछ भी कहा उसे पहले संयुक्त राष्ट्र भेजा गया था। इस मुद्दे पर दोनों ही पक्षों के वकीलों में बहस के बीच ही पीठ ने कहा, ‘‘हमें पता है कि क्या करना है, हमने आदेश पारित कर दिया है। हम इसे बदलने नहीं जा रहे।’’
पीठ ने यह भी कहा कि सारे मामले अक्टूबर के पहले सप्ताह में संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किये जायेंगे। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने संबंधी राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली पहली याचिका अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने दायर की थी। इसके बाद जम्मू कश्मीर के एक अन्य वकील शाकिर शबीर भी इसमें शामिल हो गये। जम्मू कश्मीर के एक प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेन्स ने भी 10 अगस्त को राज्य की स्थिति में बदलाव को चुनौती देते हुये शीर्ष अदालत में याचिका दायर की। याचिका में दलील दी गयी कि राज्य के नागरिकों के अधिकार छीन लिये गये हैं।
याचिका में कहा गया है कि संसद द्वारा पारित और बाद में राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश ‘‘असंवैधानिक’’ है और इसे ‘‘शून्य और निष्क्रिय’’ घोषित करने का अनुरोध किया गया है।
यह याचिका नेशनल कांफ्रेन्स के लोक सभा सदस्य मोहम्म्द अकबर लोन और सेवानिवृत्त न्यायाधीश हसनैन मसूदी ने दायर की है। लोन जम्मू कश्मीर विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष है। जबकि मसूदी जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं।
अन्य याचिकाओं में कुछ पूर्व रक्षा अधिकारियों और नौकरशाहों ने इस संबंध में सरकार के फैसले को चुनौती दी है। इन याचिकाओं में भी राष्ट्रपति के पांच अगस्त के आदेश को असंवैधानिक और शून्य घोषित करने का अनुरोध किया गया है। एक अन्य याचिका नौकरशाह से राजनीतिक बने शाह फैजल और उनकी पार्टी की सहयोगी तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व नेता शहला रशीद ने दायर की है।