स्वीडन के एक द्वीप के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि, जानिए वजह

By भाषा | Updated: November 25, 2019 20:02 IST2019-11-25T20:02:29+5:302019-11-25T20:02:29+5:30

आईवीएल स्वीडिश पर्यावरण अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ स्टॉफेन फिलिप्सन ने बताया कि गॉटलैंड के दक्षिणी हिस्से में पानी की काफी कमी है। इसलिए उत्तरी हिस्से से पानी की आपूर्ति की गई और विशेष प्रकार की जलशोधन विधि ‘टेस्ट बेड’ का इस्तेमाल भी किया गया।

Anna Hazare's Maharashtra Village Shows Way to Swedish Scientists to Tackle Water Problem | स्वीडन के एक द्वीप के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि, जानिए वजह

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Highlightsसामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि इन दिनों बाल्टिक सागर में एक स्वीडिश द्वीप की भूजल रिचार्जिंग परियोजना के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है।इस द्वीप में गर्मियों के दौरान पीने के पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि इन दिनों बाल्टिक सागर में एक स्वीडिश द्वीप की भूजल रिचार्जिंग परियोजना के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है। इस द्वीप में गर्मियों के दौरान पीने के पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। स्वीडन के मुख्यभाग में करीब एक करोड़ आबादी के लिए साफ पानी की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस द्वीप में हालात एकदम उल्टे हैं।

इस द्वीप की आबादी करीब 900 है, लेकिन गर्मियों में स्थानीय निवासियों के साथ ही पर्यटकों की आवक बढ़ने से भूजल का संकट खड़ा हो जाता है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन को भवन निर्माण और पानी पर आधारित अन्य गतिविधियों को रोकना पड़ता है।

यहां पानी की किल्लत की वजह स्ट्रॉसड्रेट की मिट्टी की पतली परत में छिपी है, जिसके चलते बारिश का पानी भूजल को रिचार्ज नहीं कर पाता है और बहुत जल्दी समुद्र में बह जाता है। आईवीएल स्वीडिश पर्यावरण अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ स्टॉफेन फिलिप्सन ने बताया कि गॉटलैंड के दक्षिणी हिस्से में पानी की काफी कमी है। इसलिए उत्तरी हिस्से से पानी की आपूर्ति की गई और विशेष प्रकार की जलशोधन विधि ‘टेस्ट बेड’ का इस्तेमाल भी किया गया।

शोधकर्ताओं ने बाल्टिक सागर का पानी भी शोधित करने की कोशिश की, हालांकि इसमें बहुत अधिक ऊर्जा खर्च होती थी। ऐसे में आईवीएल की एक अन्य विशेषज्ञ रूपाली देशमुख ने जल संचय के लिए भारत के गांवों के परंपरागत तरीकों को इस्तेमाल करने का सुझाव दिया। इसके नतीजों के अध्ययन के लिए इसे नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकी साधनों से जोड़ा गया।

फिलिप्सन ने कहा कि स्ट्रॉसड्रेट की जरूरत को पूरा करने के लिए यहां बारिश तो बहुत होती है, बस चुनौती उस पानी को रोक पाने की थी, ताकि गर्मी में उसका इस्तेमाल किया जा सके। उन्होंने बताया कि इस परियोजना के लिए विन्नोवा नाम की एजेंसी ने 80 लाख स्वीडिश क्रोन दिए और फोरम बाल्टिक, केटीएच, उप्पसाला विश्वविद्यालय, एसजीयू सहित कई अन्य सहभागी संगठनों ने अतिरिक्त 80 लाख स्वीडिश क्रोन दिए। देशमुख जो नागपुर की हैं, उन्होंने कहा कि स्ट्रॉसड्रेट और रालेगण सिद्धि की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं हैं।

उन्होंने कहा, “हमें भारत के छोटे गांव रालेगण सिद्धि से परंपरागत ज्ञान मिला, जो महाराष्ट्र में अन्ना हजारे का गांव है। हम चेक डैम, तालाब आदि परंपरागत जल संचय के साधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनका यहां स्वीडन में कभी इस्तेमाल नहीं किया गया।” फिलिप्सन ने कहा वे जल संचय के लिए छोटे बांध बना रहे हैं, भूजल को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक स्थलों की पहचान कर रहे हैं और बारिश के पानी को समुद्र में जाने से रोकने के लिए बांध बना रहे हैं।

आईवीएल के शोधकर्ताओं ने जल स्तर की निगरानी के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के उपकरण लगा रखे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह स्वीडन साबित कर सकता है कि किस तरह स्थाई समाधान किया जा सकता है, और जिसमें ईंधन की खपत भी कम होगी।

Web Title: Anna Hazare's Maharashtra Village Shows Way to Swedish Scientists to Tackle Water Problem

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