Amit Shah Exclusive: महाराष्ट्र में 42 से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतेंगे, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ विशेष साक्षात्कार, देखें पूरी बातचीत
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 7, 2024 12:09 IST2024-02-07T10:59:16+5:302024-02-07T12:09:15+5:30
Amit Shah Exclusive: ‘गेम चेन्जर’ से ज्यादा, भारतीय न्याय में एक नए युग की शुरुआत मानता हूं. क्योंकि लगभग 160 साल तक हमारा देश अंग्रेजों की बनाई न्याय व्यवस्था पर चला.

photo-lokmat
Amit Shah Exclusive: केंद्र की मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री अमित शाह एक तेज तर्रार मंत्री के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. वह जितने आत्मविश्वास के साथ संसद में अपनी बात रखते हैं, उतनी दृढता के साथ उसे पालन कराने का दावा भी करते हैं. संसद के पिछले सत्र में भारतीय दंड विधान के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता लाने पर वह कई लोगों के निशाने पर हैं, लेकिन वह हर तरह की आलोचना का जवाब तथ्यों और तर्कों के आधार पर देते हैं और बदलाव को जायज ठहराते हैं. बीते सप्ताह नई दिल्ली में ढलती शाम के बीच उनके साथ नए कानूनों के विषय में सवाल-जवाब के साथ देश के वर्तमान राजनीतिक हालातों पर भी करीब एक घंटे तक उनके निवास पर चर्चा हुई. सफेद कुर्ता- पायजामा के साथ हरे रंग की चैक की जैकेट पहने गृह मंत्री की चेहरे की चमक बता रही थी कि दिन भर के व्यस्तता के बीच उन्हें नए और परिवर्तनकारी कार्यों से लगातार कितनी ऊर्जा मिलती है.
प्रस्तुत हैं लोकमत समूह के संयुक्त प्रबंध संचालक और संपादकीय संचालक ऋषि दर्डा और नेशनल एडिटर हरीश गुप्ता की गृह मंत्री से बेबाक बातचीत के अंश :
सवाल : संसद में तीन क्रिमिनल लॉ बिल संसद में पारित हो चुके हैं. इसे देश की कानून-व्यवस्था में एक ‘टर्निंग पॉइंट’ और ‘गेम चेन्जर’ कहा जा रहा है ?
उत्तर : मैं इसे ‘गेम चेन्जर’ से ज्यादा, भारतीय न्याय में एक नए युग की शुरुआत मानता हूं. क्योंकि लगभग 160 साल तक हमारा देश अंग्रेजों की बनाई न्याय व्यवस्था पर चला. मगर जब तक अंग्रेजों का शासन था, तब तक तो ठीक था. उनकी संसद ने कानून बनाया, हमने उसका पालन किया. लेकिन स्वतंत्रता के बाद हमारी सत्ता आने के बाद भी वही कानून चलते रहे, जो करीब वर्ष 1860 से 1875 के बीच बने थे और उनका उद्देश्य अंग्रेजी सत्ता को टिकाए रखना था. वे कानून लोगों को न्याय देने के लिए नहीं थे.
सवाल : इससे बदलाव क्या आएगा?
उत्तर : किसी भी सभ्य समाज के लिए न्याय की प्रक्रिया को तैयार करने में आवश्यक यह है कि वह समाज में सबसे बड़ा गुनाह क्या है वह देखे. आज के संदर्भों में देखें या डेढ़ सौ साल पहले के संदर्भ में देखें, तो मानव हत्या सब से बड़ा अपराध था. वह इंडियन पीनल कोड 302 नंबर पर था. यह उस समय की प्राथमिकता थी. आज के संदर्भों में विचार किया जाए तो महिलाओं तथा बच्चों के साथ अत्याचार के बाद मानव हत्या और अत्याचार है. किंतु उनका नंबर धारा 302, 367 था. इसके ऊपर क्या था? खजाना लूटना, राजद्रोह, रेल पटरी उखाड़ देना, रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, सरकारी अफसर के खिलाफ उद्दंडता करना जैसे अपराधों की धाराएं थीं. पहली बार हमारे संविधान की भावना हर व्यक्ति के साथ समान न्याय, संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा के साथ कानून तैयार किया गया है. इसीलिए यह युग परिवर्तनकारी कानून का होगा.
सवाल : आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन न्याय कब मिलता है. मुकदमे चलते ही रहते हैं. सही मायने में कितने लोगों को सजा मिल पाती है?
उत्तर : आजादी के 75 साल बाद पहली बार हम भारतीय न्याय व्यवस्था के अनुसार काम करेंगे. मोदीजी ने जो एक बहुत बड़ा लक्ष्य देश के सामने रखा हैं कि वर्ष 2047 के पहले हमें गुलामी की सारी निशानियों कों समाप्त कर देना है और हमारी संस्कृति के आधार पर नया कानून बनाना हैं, बस यह इसकी शुरुआत है. पुराने कानून का पूरा जोर सजा देने पर था, मगर नए कानून का उद्देश्य न्याय दिलाना है. ढेर सारे लोगों ने न्याय के बारे में लिखा है. नारद से याज्ञवल्क्य, कल्प से कौटिल्य तक बहुत सारे लोगों ने न्याय के बारे में लिखा है. सभी की न्याय की अवधारणा का मूल न्याय था. अब दंड, पैनल्टी, सजा की जगह न्याय को केंद्र में लाया गया है. सजा किसलिए दी जाए, क्योंकि समाज में कोई दूसरा व्यक्ति इसे देखकर अपराध न करे. परंतु मूल भावना व्यक्ति को मिलने वाले न्याय की है. बहुत बड़ा फर्क यह है. हमने कानून की आत्मा को भारतीय कर दिया है और संविधान के हिसाब प्राथमिकता बदल ली है. हमने दंड की जगह न्याय को स्थापित कर मूल भारतीय न्याय विचारों से हमारा ‘जस्टिस सेंट्रिक’ कानून तैयार किया है. दुनिया में लगभग तीन न्याय व्यवस्थाएं हैं. चौथी शरियत भी है. परंतु, पूर्णतः शरियत को बहुत कम देशों ने अपनाया है. अपराध कानून लैटिन, आयरिश हैं. भारतीय न्याय की भी व्यवस्था है. हम आज तक आयरिश न्याय व्यवस्था से नियंत्रित होते रहे हैं.
सवाल : आज तो तारीख पर तारीख मिलती है. ऐसे में फैसले का क्या?
उत्तर : न्याय वही सच्चा होता है, जो समय पर मिले. 150 साल पुराने कानून में कहीं पर भी समय पर न्याय का प्रावधान नहीं था. हमने समय पर न्याय दिलाने के लिए दो प्रकार का प्रावधान किया है. एक, आधुनिक तकनीक को बहुत अधिक उपयोग में लाया है. जिससे न्याय की प्रक्रिया बहुत सरल हो जाएगी. दो, हमने पुलिस मतलब जांच, अभियोजन (वकीलों) और न्यायाधीशों, तीनों स्तर के लिए तीस से ज्यादा धाराओं में समय सीमा तय की है. अब जांच को 180 दिन से लंबा नहीं खींचा जा सकता है. अब आपको ‘फाइनल चार्जशीट’ अदालत में रखनी ही होगी. ‘फाइनल चार्ज शीट’ आने के बाद इतने दिन में ‘एक्नॉलेज’ करना हैं, इतने दिन में सुनवाई शुरू करनी है. फैसला सुरक्षित रखने के बाद 45 दिन में आपको फैसला सुनाना है. अब तकनीक के सहारे और कानूनी प्रावधानों से भी समय पर न्याय मिलेगा. सबसे बड़ी बात यह कि पूरी तरह से लागू होने के बाद यह कानून विश्व का सबसे आधुनिक और तकनीक से युक्त कानून होगा.
सवाल : कुछ अधिकारी-कर्मचारी अपनी कार्यालयीन व्यस्तताओं के चलते अदालत में जाना टलते हैं. उनसे भी मुकदमों के फैसलों में देर होती है. क्या इसके लिए भी कोई तकनीकी सुधार किया गया है?
उत्तर : अगले सौ साल में आने वाली तकनीक को ध्यान में रखकर हमने इसमें प्रावधान जोड़े हैं. अभी अधिकारी को कोर्ट में आना पड़ता है तो उसे सुबह से शाम तक बैठना पड़ता है. उसका नाम आएगा या नहीं या डेढ़ महीने बाद की तारीख मिलेगी कहा नहीं जा सकता है. कोर्ट का वातावरण भी वैज्ञानिकों को अच्छा नहीं लगता, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों को भी अच्छा नहीं लगता, बैंक के ऑफिसरों को भी अच्छा नहीं लगता है. तो वो वहां आना टालते हैं और ‘डेट पे डेट’ मिलती रहती है. हमने तय किया कि अब ऑनलाइन गवाही होगी. गवाह को या अफसर को कोर्ट में आने की जरूरत नहीं होगी. कैदी को कोर्ट में लाया नहीं जाएगा. जेल से ऑनलाइन सुनवाई की जाएगी.
सवाल : पिछली बार लोकसभा चुनाव में शिवसेना के साथ आपके गठबंधन ने 48 में से 42 सीटें जीती थी. जिनमें से 18 शिवसेना, 23 भाजपा और एक निर्दलीय सांसद एनडीए में शामिल हुईं. इस बार आपका क्या अनुमान है?
जवाब : आप देख लीजिएगा ऋषिजी हम लोग 42 सीटों से भी आगे जाएंगे. हम पहले से बेहतर करेंगे.
सवाल : आर्थिक अपराध बढ़ रहे हैं. उनकी जांच मुश्किल होती है. सादे चैक के मामले भी जल्दी निपट नहीं पाते हैं. इन मामलों के फैसले कब जल्दी सुनाए जाएंगे?
उत्तर : विपक्ष से सत्ता पार्टी जो नया कानून लाएगी उसकी प्रशंसा की अपेक्षा नहीं कर सकते. उन्होंने ध्यान से पढ़ा भी नहीं है. मैं एक छोटी-सी बात कहता हूं, कुछ साल पहले हमारे देश में परिवर्तन हुआ. हमने एक कानून बनाया. चेक रिटर्न होता है तो छह माह की सजा होगी. कानून बने दस साल हो गए. अब पांच साल तक फैसला ही नहीं आता है. जो एक ही कारण से नहीं आता है, क्योंकि बैंक वाले सुनवाई के समय आते ही नहीं हैं. अब हर बैंक में एक कंम्प्यूटर होगा, जिस पर ऑनलाइन सुनवाई होगी. कोर्ट पूछेगा कि चेक रिटर्न का कारण क्या है? तकनीकी है या खाते में पर्याप्त राशि का न होना है? तो वह कहेगा कि खाते में पर्याप्त राशि का न होना है. तो अदालत कहेगी मुकदमा समाप्त. छह माह की सजा.
सवाल : मुकदमों में अलग-अलग लोगों की भूमिका के चलते न्याय प्रक्रिया में विलंब होता है, इसे कैसे सुधारा जाएगा?
उत्तर : हमने इन जनरल ऑनलाइन गवाही की व्यवस्था कर दी है. आर्थिक अपराध में डेढ़ लाख पन्नों की चार्जशीट होती है. 30 आरोपी होते हैं, जांच एजेंसी होती है, वकील होते हैं, न्यायाधीश होते हैं. तो सवा लाख पन्नों का जेरॉक्स निकालना पड़ता है. अब एक पेन ड्राइव लेना पड़ेगा. हमने दस्तावेज की व्याख्या में पेन ड्राइव को शामिल कर दिया है. अब समन तामील करने के लिए पुलिस को घर जाना नहीं पड़ेगा. आप आरोपी के फोन पर एसएमएस या मेल से समन भेज सकते हैं. हमने ऐसी भी व्यवस्था की है कि आपने एसएमएस खोला या नहीं, यह भी मालूम पड़ जाएगा. इस प्रकार हमने अनेक प्रावधानों से नए कानून को आधुनिक बनाया है. इसी कारण विश्व का सबसे आधुनिक ‘क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ हमारा होगा.
सवाल : पुलिस, वकीलों और न्यायाधीशों को फैसले के लिए निर्धारित समय दिया जाएगा तो उन पर दबाव नहीं पड़ेगा ?
उत्तर : मैं इस तर्क से सहमत नहीं हूं. आपने सुनवाई कर ली और 45 दिन के बाद यदि फैसला लिखवाने के लिए बैठेंगे तो याद क्या रहेगा?
सवाल : मुकदमे तो ज्यादा आते रहेंगे, एक मुकदमा तो सुनवाई के लिए नहीं रहेगा?
उत्तर : एक मुकदमे का फैसला लिखवा दें. चालू कोर्ट में फैसला लिखवाएं. हमें कोई आपत्ति नहीं है. फैसला दें. फैसला लंबित नहीं रख सकते हैं.
सवाल : लेकिन फैसला लिखने के लिए समय तो लगेगा?
उत्तर : 45 दिन मतलब बहुत सारा समय है.
सवाल : बहुत बार वकील लोग स्थगन मांगते हैं, इससे कैसे निपटा जाएगा?
उत्तर : उसे भी रोकने के लिए हमने इसके अंदर प्रावधान किया है. एक सीमा की बाद आपको स्थगन नहीं मिल पाएगा.
सवाल : महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों पर रोक लगाने के लिए नए कानून में क्या कुछ ठोस प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर : सरकार की प्राथमिकता में सबसे पहले बच्चों और महिलाओं का पूरा अध्याय लिया. सामूहिक बलात्कार के मामलों में 13 साल की नाबालिग बच्ची की उम्र को अब 18 साल कर दिया है. इसके साथ- साथ सामूहिक बलात्कार के लिए मौत और आजीवन कारावास मतलब अंतिम सांस तक जेल में रहना कर दिया है. अब 14 साल की सजा नहीं रही. सबसे से ‘क्रुशियल’ चीज, पीड़िता का बयान, जिससे हाथ से लिखा जाता था. वह क्या लिखवा रही हैं? क्या लिखा जा रहा ? वो तो किसी को मालूम नहीं था... हमने अब पीड़िता की रिकॉर्डिंग को अनिवार्य किया है. पीड़िता जो बोलेगी वही रिकॉर्ड होगा. उसका मेडिकल टेस्ट आनाकानी के चलते नहीं कराया जाता था, हमने मेडिकल टेस्ट भी अनिवार्य कर दिया.
सवाल : ये पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में भी तो टाइम लगेगा, क्योंकि सारे पुलिस स्टेशन के अंदर रिकॉर्डिंग की सुविधा जरूरी होगी?
उत्तर : ‘रिकॉर्डिंग’ का मतलब मोबाइल से ‘रिकॉर्डिंग’ है.
सवाल : तकनीक से जो जोड़ना है वो इन्फ्रास्ट्रक्चर...?
उत्तर : उस पर हम पांच साल से काम कर रहे हैं. आज देश के 99.9 प्रतिशत पुलिस स्टेशन ऑनलाइन हो गए हैं. एक ही सॉफ्टवेयर से चलते हैं. भारतीय भाषाओं में चलते हैं, उनके अंदर वीडियो कॉफ्रेंसिंग की व्यवस्था हैं. मैं नहीं मानता कि कोई पुलिस थाने या अस्पताल में रिकॉर्ड न कर पाए ऐसा कोई मोबाइल नहीं होगा. और फिर सर्वर पर ट्रान्सफर करना है तो हमने पूरी तरह से आधुनिकीकरण पर पांच साल काम किया है.
सवाल : मगर पुलिस की जवाबदेही केंद्र शासित प्रदेशों में तो आप तय कर सकते हैं, लेकिन राज्यों का क्या होगा?
उत्तर : हमारी घोषणा के बाद यह सभी राज्यों में लागू हो जाएगा. ये केंद्र और राज्य दोनों का विषय है.
सवाल : कई बार राज्य सरकार भी पुलिस पर दबाव डालती है. कुछ ही नहीं, बहुत सारे मामलों में ऐसा हो सकता है?
उत्तर : हमने 6 साल और उसके ऊपर की सजा में इसके अंदर फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) को अनिवार्य कर दिया. अब आपके फिंगर प्रिंट मिल जाते हैं, फिर क्या दबाव डालेंगे. बताइए ? फिंगर प्रिंट पुलिस नहीं लेती है और एफएसएल की रिपोर्ट सीधी कोर्ट में भेजनी है. पुलिस को कॉपी भेजनी है.
सवाल: मगर कई लोग कहते हैं कि इतने सारे फॉरेन्सिक कार्यों के लिए ‘मैन पावर’ कहां है?
जवाब: इसलिए हमने पहले से ही वर्ष 2020 में फॉरेन्सिक साइंस यूनिवर्सिटी स्थापित की हैं. महाराष्ट्र में बन गई है. देश में नौ और बन रही हैं. अब उनसे 30 से 35 हजार स्नातक हर साल बाहर आएंगे. हमने लॅबोरेटरी की जगह एक नई व्यवस्था विकसित की है. हम हर जिले में एक मोबाइल फॉरेन्सिक वैन दे देंगे. हम एक देंगे, एक राज्य लेगा. मोबाइल फॉरेन्सिक वैन किसी भी ‘क्राइम सीन’ पर बीस मिनट में पहुंच जाएगी. हमारे पास उपलब्ध एनसीआरबी के आंकड़ों के विश्लेषण से भी पता चलता चलता है कि काम तो एक ही वैन से हो सकता है, फिर हम दो दे रहे हैं. इससे हमारी सजा दिलाने की दर 90 फीसदी के ऊपर पहुंच जाएगी. इससे भी पहले हमने ढेर सारा डेटा, ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया है. 'नफीस' सॉफ्टवेयर पर छह करोड़ लोगों की फिंगर प्रिंट उपलब्ध है.
सवाल : मगर गैंगस्टर जेल से ही अपनी करतूतें कर रहे हैं. वे एक हाथ आगे हैं ?
उत्तर : जेलों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है. जिसमें विशिष्ट प्रकार के जैमर का प्रावधान है. लगभग दो साल में हर जेल जैमर से युक्त कर देंगे.
सवाल : भारत में बहुत सारे जेल में ऐसे लोग हैं, जिन्हे जमानत नहीं मिलती है. गरीब हैं. उनके लिए कोई व्यवस्था?
उत्तर : बहुत बड़ा प्रावधान कर दिया है. जो ‘फर्स्ट टाइम ऑफेंडर’ है, जैसे ही उसकी 33 प्रतिशत सजा समाप्त होती है, उसे कोर्ट में जाने की जरूरत नहीं है. सेकंड टाइम ऑफेंडर है, उसकी 50 प्रतिशत सजा पूरी होती है तो उसे जमानत मिल सकती है. इसके अलावा बहुत सारे छोटे- छोटे अपराधों के लिए जेल जाने वालों के लिए जेल की जगह साफ-सफाई, ‘वॉलेंटरी वर्क’ जैसे प्रावधान किए हैं. इससे जेल में कैदियों की संख्या भी कम हो जाएगी. इसके लागू होने से पहले तीन महीने में देश के करीब 32 प्रतिशत कैदी बाहर आ जाएंगे.
सवाल : लेकिन ऐसा भी कहा जा रहा है कि इसके कारण न्यायाधीशों की शक्ति कम होगी. क्या यह सही है?
उत्तर : जो गुनाह आपका साबित नहीं हुआ. उसकी सजा का 50 प्रतिशत आपने जेल में बिता दिया. फिर सुनवाई किस बात के लिए? सुनवाई के बिना ही जेल में रहना पड़ेगा क्या? इसे तो समाज के रूप में न्यायसंगत बनाना होगा.
सवाल : आपने तीनों कानूनों में बदलाव तो तय कर लिया है. मगर इतने बड़े परिवर्तन को लागू करने में वक्त बहुत लगेगा?
उत्तर : वह तो दिमाग पर निर्भर है. कुछ लोगों का दूसरे दिन से हो जाता है. धीरे- धीरे हो जाएगा. ऐसा सोच कर कोई नई शुरूआत नहीं करनी चाहिए. डेढ़ सौ साल पुराना कानून किस तरह से चल सकेगा? अप्रासंगिक हो गया था. हमने इसमें बहुत सारी नई शुरुआत की है. आज तक देश में आतंकवाद की व्याख्या ही नहीं थी. इतना आतंकवाद झेलने के बाद भी अदालत पूछती है कि आतंकवादी की व्याख्या क्या है? तो हमारे कानून में व्याख्या नहीं थी.
सवाल : पुराने कानून में तो संगठित अपराध की भी व्याख्या नहीं थी?
उत्तर : हमने व्याख्या कर दी है. संगठित अपराध सिर्फ 120 बी से चलता था. साजिश की इतनी विस्तृत परिभाषा थी, अलग- अलग राज्यों में अपराध करने वालों का कुछ भी नहीं हो पाता था. पहली बार गैंग खत्म करना, सिंडिकेट्स खत्म करना, बच्चों से भीख मंगवाने वाले सिंडिकेट्स, महिलाओं की तस्करी करने वाले, मादक पदार्थों का कारोबार करने वाले सब संगठित अपराध करने वालों की श्रेणी में आएंगे. आज तक हमारे कानून में संगठित अपराध की व्याख्या ही नहीं थी.
सवाल: ‘मॉब लीचिंग’ की भी व्याख्या नहीं थी?
उत्तर : आज तक ‘मॉब लीचिंग’ की व्याख्या नहीं थी. सब मानते थे हमारे कानून में ‘मॉब लीचिंग’ कैसे आ सकता है? बहुत सारे एनजीओ जो भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाते थे, उनका कोई अध्ययन नहीं है. सब से ज्यादा ‘मॉब लीचिंग’ से मरने वालों की संख्या चोरों की है. छोटे गांवों में चोर पकड़ा जाता है, तो पूरा गांव इकट्ठा होकर उसे मारता हैं. उसके बाद संख्या डायन की है. गांवों में महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है और लोग उसे पत्थर मार-मार कर बेचारी की हत्या कर देते हैं. उसके बाद नंबर आता है प्रेमी युगलों का. उसमें भी पुरुष को मार देते हैं, कई जगह तो महिला को भी मार देते हैं. उसके बाद हिंदू, मुस्लिम, ईसाई ये सारे आते हैं. अब हम ‘मॉब लीचिंग’ पर कानून लेकर आए तो वे एक शब्द भी नहीं बोलते हैं. क्योंकि वह सराहना करना ही नहीं चाहते हैं. हमने ढ़ेर सारी नई चीजें लाई हैं. हमने जिस राजद्रोह की सालों साल आलोचना होती थी, उसे खत्म कर दिया. जो व्यक्ति की अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के साथ जुड़ी थी.
सवाल : लेकिन अब कोई नेता जरा-सा किसी के खिलाफ बोलता है तो उसे जेल हो जाती है?
उत्तर : अब हो ही नहीं पाएगा. उसे निकाल दिया गया है.
सवाल : कोई व्यक्ति किसी नेता के खिलाफ फेसबुक या सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट डालता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो जाती है.?
उत्तर : वह मानहानि का मामला होता है. वह मामला अलग है.
सवाल : अपमानजनक भाषा का उपयोग किया तो क्या होगा?
उत्तर : तो मानहानि का मुकदमा होगा, जो दीवानी मामला बनता है. आपको नोटिस मिलेगा और आपको अदालत में जाकर जवाब देना होगा.
सवाल : वही बयान अगर फेसबुक या टिवटर पर डाला तो आईटी कानून में चला जाएगा?
उत्तर : अगर आप स्वीकार नहीं करते हैं तो मामला बनता है. यदि आप स्वीकार करते हैं तो मानहानि का मुकदमा करो. तो मामला वापस हो जाता है और वह मानहानि की श्रेणी में चला जाता है. .
सवाल : क्या आपने निर्दोष छूट जाने वाले अपराधियों के लिए भी कुछ नए कदम उठाए हैं?
उत्तर : बहुत विस्तार से, अगर कोई विस्तार से पढ़ेगा तो उसे समझ में आएगा कि जिन बातों का सहारा बहुत सारे अपराधी लेते हैं, उन्हें हटा दिया गया है. जैसे सबसे बड़ा भ्रष्टाचार तो तब होता है, जब एक गरीब आदमी के मामले में पुलिस, कई बार ‘जज साहब’ और वकील, तीनों मिलकर मुकदमा खत्म करते हैं और अपराधी निर्दोष छूट जाते हैं. आगे अपील तो पुलिस को ही करनी होती है, जो अधिकार अब पुलिस से ले लिया गया है. अब न्यायिक क्षेत्र से जुड़े ‘डायरेक्टर ऑफ प्रोसिक्यूशन’ अपील तय करेगा.
सवाल : क्या आम जनता के लिए न्याय की राह आसान बनाने का भी कोई प्रयास किया गया है?
उत्तर : आपने देखा होगा किसी भी पुलिस स्टेशन में ढेर सारी साइकिलें रखी रहती हैं. जब्त किया सामान रहता है. जब तक मामला फाइनल नहीं होता तब तक उसे हटाया नहीं जा सकता है. अब हमने यह कह दिया कि यदि रसायन है, नकली नोट है, तो फोरेंसिक रिपोर्ट बनाकर और यदि वाहन हैं तो फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी कर राज्य अपने भीतर उसे समाप्त कर सकता है. पुलिस स्टेशन साफ कर सकता है.
सवाल : आपने अपराध के शिकार होने वाले लोगों को राहत देने के लिए कोई प्रावधान किया है?
उत्तर : आम तौर पर कोई पुलिस थाने में शिकायत करते हैं तो वह रख ली जाती है. वह एफआईआर में बदलती नहीं है. हमने तय कर दिया सात दिन में उसे एफआईआर में बदलना होगा या फिर उसे खारिज करना होगा. इसके बाद 90 दिन में रिपोर्ट देनी होगी. उसकी प्रगति की जानकारी ऑनलाइन देनी होगी. जिससे आपको एफआईआर की जानकारी मिलेगी. अदालत में क्या चल रहा है, वह सब बताया जाएगा. हर 15 दिन में ई-मेल करना है या एसएसएस भेजना होगा. ऐसे में पीड़ित के सगे-संबंधी या वह स्वयं जान पाएगा कि उसके मामले का क्या हुआ? कई बार, पुलिस मामला वापस ले लेती है और पता ही नहीं चलता. हमारे यहां पीड़ित की मुकदमे में कोई भूमिका ही नहीं रहती थी. अब हमने उसकी भूमिका तय कर दी है. अब सभी की सहमति के बिना मामला वापस नहीं लिया जा सकेगा.
सवाल : पुलिस हिरासत को लेकर अनेक शिकायतें आती हैं. अनेक अत्याचार के मामले भी सुने एवं पढ़े जाते हैं. नया कानून उस पर कोई स्पष्टता लाने जा रहा है?
जवाब : पुलिस कई लोगों को गिरफ्तार कर लेती थी. कोई कारण या जवाब नहीं मिलता था. हाईकोर्ट में अपील करना पड़ती थी. कोर्ट पुलिस को नोटिस देती थी तो वह कहती थी, हां हमारी कस्टडी में है. अब हर पुलिस स्टेशन में ऑनलाइन रजिस्टर रखना पड़ेंगे. आपकी हिरासत में आज कितने लोग हैं, बताना होगा. हिरासत में लेने के 24 घंटे के अंदर अदालत में पेश करना होगा. पहले अदालत के सामने जाकर हिरासत मांगनी होगी और बताना होगा कि मामला कानून के संज्ञान में है या फिर व्यक्ति पुलिस की हिरासत में है. जब तक कोर्ट नहीं ले जाते तो उसे रजिस्टर में चढ़ाना पड़ेगा.
सवाल : अनेक बार ऐसा देखने में आता है कि किसी मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने बाद सालों तक उसकी मामले की सुनवाई शुरू नहीं हो पाती, यहां तक कि उसे जमानत के लिए भी सालों इंतजार करना पड़ता है. क्या इस तरह के न्याय में विलंब दूर हो पाएगा?
उत्तर : किसी भी मामले में इतना विलंब करना संभव नहीं है. पहले एफआईआर पर पूरी तरह से अमल में लाने में कई साल लग जाते थे. होना यह चाहिए कि एफआईआर के तीन साल के अंदर हाईकोर्ट तक का फैसला आना चाहिए था. अब नए कानून में बदलाव कर न्याय प्रक्रिया को समयबद्ध किया गया है.
सवाल : नए कानून में पुलिस हिरासत 15 से 60 दिन तक बढ़ा दी गई है. ऐसा क्यों ?
उत्तर : पुलिस हिरासत को 15 दिन का ही रखा है. इसे 60 दिन तक कभी-भी मांग सकते हैं. यह इसलिए क्योंकि अभी तमिलनाडु में एक आरोपी को पकड़ा गया था. तो उन सज्जन को अचानक हार्टअटैक आ गया. जॉगिंग करते हुए पकड़ा था. फिर हार्टअटैक आ गया. हार्टअटैक आने के बाद वह अपने ही अस्पताल में भरती हो गया और उसे 15 दिन आराम करने का प्रमाण-पत्र भी मिल गया. पहले ऐसे में पूछताछ संभव नहीं थी. मगर अब 15 दिन आराम करने के बाद हमारे 15 दिन बाकी होंगे. हमने हिरासत की अवधि नहीं बढ़ाई है. हिरासत में लेने की समय सीमा बढ़ाई है.
इसके अलावा यदि पुलिस किसी को पकड़ कर लाई और उससे पूछताछ पूरी कर ली. उसे दस दिन में जेल में भेज दिया, मतलब न्यायिक हिरासत में भेज दिया. बाद में एक आरोपी मिला, वह कहेगा कि यह उसने किया तो दोनों को आमने-सामने करना पड़ेगा. यह बाद में किया जा सकता है. 15 दिन में अभी 5 दिन बाकी है. यह न्याय के लिए किया है. इसमें किसी की प्रताड़ना नहीं होगी. पुलिस 15 दिन से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकेगी.
सवाल : कई लोग कह रहे है कि इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचेगा
उत्तर : अवधि बढ़ाते हैं, 16 दिन करते हैं तो क्या होगा. हमने 15 दिन में ‘ब्रेकअप’ लेने का अधिकार पुलिस को दिया है.
सवाल : कुछ दिन पहले कईं राज्यों में ट्रक चालकों ने विरोध प्रदर्शन किया था. ‘हिट एंड रन’ मामले में सजा और जुर्माना बहुत ज्यादा है, इसमें बदलाव की मांग को लेकर विरोध हुआ. बाद में सरकार ने हस्तक्षेप किया. आखिर ऐसा क्यों हुआ?
उत्तर : यह सब गलतफहमी के कारण हुआ है. कानून में प्रावधान है कि यदि ‘हिट एंड रन’ मामले में यदि आप पुलिस को मोबाइल, 108 पर इन्फॉर्म नहीं करते हो और भाग जाते हो, बाद में कैमरे से पकड़े जाते हो तो सजा व जुर्माना है. आज 70 फीसदी मौत दुर्घटना के केस में खून बह जाने की वजह से होती है. क्यों कि घायल को वक्त पर अस्पताल नही लाया जाता. आज अपने देश में ऐसी व्यवस्था है कि 108 नंबर पर फोन करेंगे तो 10-15 मिनिट में एक एम्बुलेंस हाई-वे पर पहुंच जाती है. मैं कहता हूं कि जहां दुर्घटना हुई है, वहां आप गाड़ी मत खड़ी करिए, गांव वाले मारेंगे, दूर जाकर गाड़ी खड़ी करिए और 108 पर फोन करिए. जो आधे घंटे में सूचित नहीं करेगा उसी को सजा होगी. मगर फिर भी हमने ट्रक चालकों से चर्चा करने का तय किया है. हम चर्चा करेंगे. मुझे विश्वास है कि हम उन्हें समझा पाएंगे.
सवाल : विदेशों में बैठे दाऊद इब्राहिम जैसे माफिया सरगनाओं पर भी क्या कभी शिकंजा कसा जा सकेगा? क्या इनसे भी निपटने की कोई तैयारी है?
उत्तर : ‘ट्रायल इन एब्सेन्सिया’ एक नया कानून बनाया गया है. जैसे दाऊद इब्राहिम मुंबई के बम धमाकों में आरोपी है. वो भाग गया है, इसलिए उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, अब तक ऐसा होता था. पर आगे ऐसा नहीं होगा. अदालत वकील की नियुक्ति करेगी, सुनवाई भी होगा और सजा भी होगी. अगर उसे अपील करनी है तो निजी तौर पर अदालत में आकर अपील करनी होगी. जब सजा होती है तो इंटरनेशनल कानून के हिसाब से उसका भारत में प्रत्यर्पण बहुत सरल हो जाता है. अभी वो आरोपी है, पर सजा तय होने के बाद अन्य देशों को वह वापस देने पड़ते हैं. जो बड़े-बड़े आरोपी अपराध कर भागे हैं, या देश विरोधी काम कर भागे हैं उन पर अब मुकदमा चलने लगेगा.