जम्मू: आज से जम्मू कश्मीर अब भक्तिमय हो गया है। दो महीनों तक प्रदेश प्रशासन सभी कामकाज छोड़ कर उन धार्मिक यात्राओं से जूझने जा रहा है जो कई बार भारी भी साबित हुई हैं। इनमें सबसे अधिक लम्बी और भयानक समझी जाने वाली अमरनाथ यात्रा है जिसको क्षति पहुंचाने के लिए अगर अप्रत्यक्ष तौर पर आतंकी कमर कस चुके हैं तो सुरक्षा बल भी।
अमरनाथ यात्रा समेत कई धार्मिक यात्राएं जुलाई और अगस्त के दौरान राज्य में संपन्न होती हैं। अधिकतर एक से 7 दिनों तक चलने वाली होती हैं मगर अमरनाथ यात्रा इस बार सबसे कम 38 दिनों तक चलेगी। मतलब 38 दिनों तक प्रदेश प्रशासन की सांस गले में इसलिए भी अटकी रहती है क्योंकि आतंकी उसे क्षति पहुंचाने का कोई अवसर खोना नहीं चाहते हैं।
परसों 3 जुलाई को अमरनाथ यात्रा के प्रतीक हिमलिंग का पहला आधिकारिक दर्शन होगा। सेना समेत अन्य सुरक्षाबलों ने सुरक्षा का जिम्मा 15 दिन पहले ही संभालना आरंभ कर दिया था। हजारों केरिपुब जवानों को भी तैनात किया गया है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 2 लाख से अधिक सुरक्षाकर्मी अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा में जुटे हैं। फिर भी यह चिंता का विषय इसलिए बनी हुई है क्योंकि सूचनाएं और खबरें कह रही हैं कि आतंकी किसी भी कीमत पर इसे निशाना बनाना चाहते हैं। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस बार अमरनाथ यात्रा पर कोई आतंकी खतरा होने की खबरों से प्रशासन इनकार कर रहा है।
सबसे अधिक खतरा 300 किमी लम्बे जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर आतंकी हमलों और बारूदी सुरंगों का है। यात्रा से पूर्व हाईवे पर तैनात रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) की संख्या कई गुना बढ़ाई गई है। आरओपी की 300 पार्टियों को हाईवे पर तैनात करने किया गया है। प्रत्येक पार्टी के दो सैनिकों को 12 मीटर के हाईवे की सुरक्षा का जिम्मा दिया जा चुका।
इन आरओपी को प्रशिक्षित डाग स्कवाड के सुसज्जित किया गया है ताकि हाईवे पर लगाई गई किसी भी आईईडी का पता लगाया जा सके। इन डाग स्कवाड के कुत्तों की खासियत है कि यह आईईडी मिलते ही बैठ जाते हैं जिससे सुरक्षाबलों को उस स्थान की निशानदेही करने में आसानी होती है।
सुरक्षा के चाक चौबंद प्रबंधों के लिए वह तनावपूर्ण माहौल बताया गया था जिसमें कोई खतरा न होने की खबरों के बावजूद सुरक्षा प्रबंधों को हाई अलर्ट के स्तर रखने के लिए कहा गया है क्योंकि हाइब्रिड आतंकी अभी भी खतरा बने हुए हैं। जबकि ताजा घुसपैठ कर इस ओर आने वाले आतंकी भी खतरा बताए जा रहे हैं। जबकि इसमें स्टिकी बम भी तड़का लगा रहे हैं।
आतंकी हमलों की आशंकित योजनाओं की सभी प्रकार की सभी जानकारियों को विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां साझा कर रही हैं और सुरक्षा का मुख्य्ा जिम्मा सेना को सौंपा गया है। पहलगाम से गुफा और बालटाल से गुफा तक के रास्तों पर आतंकी हमलों से बचाव का जिम्मा सही मायनों में हमेशा भगवान भरोसे इसलिए रहता है क्योंकि इन पहाड़ों में सुरक्षा व्यवस्था के दावे हमेशा झूठे पड़ते नजर आए हैं।
अब राजमार्ग पर सेना, यात्रा मार्ग पर उसका साथ अन्य सुरक्षाबल देंगे तो जम्मू के बेस कैम्प में सभी सुरक्षाबलों को एकसाथ तैनात किया गया है। अधिकारी आप मानते हैं कि जम्मू के बेस कैम्प में खतरा हो सकता क्योंकि वहां से पाकिस्तान अधिक दूर नहीं है तो पुराना बेस कैम्प शहर के बीचोबीच होने के कारण पहले भी खतरे से जूझता रहा है।