जम्मू-कश्मीर: अपनी पार्टी चीफ अल्ताफ बुखारी ने कहा, पीएम मोदी से सभी नजरबंद नेताओं की रिहाई के लिए किया अनुरोध
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 14, 2020 08:14 PM2020-03-14T20:14:29+5:302020-03-14T20:17:20+5:30
इससे पहले पीडीपी के पूर्व नेता सैयद अल्ताफ बुखारी ने एक नये राजनीतिक दल ‘जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी’ (जेकेएपी) की स्थापना की ।
जम्मू-कश्मीर: नई गठित की गई अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने कहा कि हमने पीएम नरेंद्र मोदी से यहां सभी नजरबंद नेताओं की रिहाई के लिए अनुरोध किया। पीएम मोदी के मुलाकात को लेकर अल्ताफ बुखारी ने कहा कि मीटिंग बहुत अच्छी रही, प्रधानमंत्री जी ने कहा कि कोई जम्मू-कश्मीर के लोगों की जमीन नहीं छीनेगा, कोई उनकी नौकरी नहीं छीनेगा। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द इसपर कानून लाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि कोई भी किसी लालच की वजह से किसी के साथ नहीं होता है, एक मकसद की वजह से ये जमात बनी है। ये आम लोगों की जमात है।
#WATCH Altaf Bukhari, Jammu & Kashmir Apni party President to ANI: We requested the PM that everyone in preventive detention should be released. Koi bhi kisi lalach ki wajah se kisi ke saath nahi hota hai, ek maksad ki wajah se ye jamaat bani hai. Ye aam logon ki jamaat hai... pic.twitter.com/y9vaIAovs5
— ANI (@ANI) March 14, 2020
इससे पहले पीडीपी के पूर्व नेता सैयद अल्ताफ बुखारी के नेतृत्व में रविवार को एक नये राजनीतिक दल ‘जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी’ (जेकेएपी) की स्थापना की जाएगी। नयी पार्टी का मुख्य उद्देश्य पिछले साल पांच अगस्त से अनिश्चितता का सामना कर रहे लोगों को राहत मुहैया करना होगा।
पांच अगस्त के बाद जम्मू कश्मीर में यह पहली राजनीतिक गतिविधि होगी। उसी दिन केंद्र सरकार ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों--जम्मू कश्मीर और लद्दाख-- में विभाजित करने की घोषणा की थी।
राज्य के पूर्व वित्त मंत्री एवं कारोबारी से नेता बने बुखारी ने कहा, ‘‘हां, मैं संयोग से राजनीति में आया, लेकिन राजनीति का मेरा विचार अलग है--मेरा मानना है कि यह एक ऐसी जगह है जहां आप अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमताओं से लोगों की सेवा कर सकते हैं।’’ महबूबा मुफ्ती से दूरी बनने तक वह पीडीपी में थे। जून 2018 में भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा की सरकार अल्पमत में आ गई थी।