"अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकती, यह 'राष्ट्रीय चरित्र' की संस्था है", केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 10, 2024 09:24 AM2024-01-10T09:24:31+5:302024-01-10T09:30:31+5:30

मोदी सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 'राष्ट्रीय चरित्र' को देखते हुए उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है।

"Aligarh Muslim University cannot be a minority institution, it is an institution of 'national character'", Center tells Supreme Court | "अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकती, यह 'राष्ट्रीय चरित्र' की संस्था है", केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

फाइल फोटो

Highlightsमोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकताकेंद्र ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा हैस्वतंत्रता पूर्व 1875 में स्थापित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक राष्ट्रीय चरित्र वाला संस्थान है

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के 'राष्ट्रीय चरित्र' को देखते हुए उसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है।

केंद्र की ओर से मामले में बीते मंगलवार को स्पष्ट कहा गया कि एएमयू किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है क्योंकि कोई भी विश्वविद्यालय जिसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया है, वह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर अपनी लिखित दलील में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह विश्वविद्यालय हमेशा से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है, यहां तक ​​कि एएमयू की स्थापना स्वतंत्रता पूर्व 1875 में हुई थी।

उन्होंने कोर्ट से कहा, "इसलिए भारत सरकार की ओर से साफ किया जा रहा है कि एएमयू एक राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े दस्तावेजों और यहां तक ​​कि तत्कालीन मौजूदा विधायी स्थिति भी यही बता रही है कि एएमयू हमेशा से एक राष्ट्रीय चरित्र वाला संस्थान था।"

सरकार की ओर से संविधान सभा में बहस का जिक्र करते हुए कहा गया कि एक विश्वविद्यालय जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान था और है, उसे कभी भी अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं होना चाहिए।

तुषार मेहना ने कहा, "यहां यह स्पष्ट है कि एएमयू राष्ट्र और संविधान में बताए गये धर्मनिरपेक्ष लोकाचार और प्रकृति के कारण 'राष्ट्रीय चरित्र' की एक संस्था है, इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है, भले ही इसे स्थापना के समय अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किया गया हो।”

देश के शीर्ष कानून अधिकारी मेहता ने कहा कि एएमयू एक मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में कार्य करने वाला विश्वविद्यालय नहीं है क्योंकि इसकी स्थापना और प्रशासन अल्पसंख्यकों द्वारा नहीं किया गया है।

मेहता ने कहा, "अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं है और न ही हो सकता है क्योंकि भारत के संविधान द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित कोई भी विश्वविद्यालय परिभाषा के अनुसार अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता है।"

उन्होंने एएमयू को 'अल्पसंख्यक संस्थान' घोषित करने के प्रभाव पर कहा कि एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान को केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 (2012 में संशोधित) की धारा 3 के तहत आरक्षण नीति लागू करने की आवश्यकता नहीं है।

तुषार मेहता के अनुसार दस्तावेज़ में कहा गया है, "राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थानों के साथ राष्ट्रीय महत्व का संस्थान होने के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक अलग प्रवेश प्रक्रिया होगी।"

मेहता ने कहा कि उक्त छूट का परिणामी बेहद "कठोर" होगा क्योंकि एएमयू एक बेहद पुराना और बड़ा संस्थान है। जिसमें विशाल संपत्तियां हैं और विभिन्न पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले बड़ी संख्या में छात्र हैं।

उन्होंने कहा, ''सरकार की ओर से यह निवेदन है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे बड़े राष्ट्रीय संस्थान को अपनी धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखना चाहिए और राष्ट्र के व्यापक हित की सेवा करनी चाहिए।''

मालूम हो कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला पिछले कई दशकों से कानूनी चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। साल 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।

हालांकि साल 1875 में स्थापित इस प्रतिष्ठित संस्थान को अपना अल्पसंख्यक दर्जा तब वापस मिल गया जब संसद ने 1981 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया। उसके बाद जनवरी 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था।

केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की गई थी। यूनिवर्सिटी ने इसके खिलाफ अलग से याचिका भी दायर की।

भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी। इसने एस अज़ीज़ बाशा मामले में शीर्ष अदालत के 1967 के फैसले का हवाला देते हुए दावा किया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था क्योंकि यह सरकार द्वारा वित्त पोषित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। (पीटीआई के इनपुट के साथ)

Web Title: "Aligarh Muslim University cannot be a minority institution, it is an institution of 'national character'", Center tells Supreme Court

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