पैंगोंग झील के उत्तरी हिस्से में बढ़ रही चीनी सैनिकों की गतिविधि, सीमा से पीछे टहने को राजी नहीं भारतीय जवान
By सुरेश एस डुग्गर | Published: October 28, 2021 03:47 PM2021-10-28T15:47:06+5:302021-10-28T16:05:14+5:30
इस बाबत सेना के एक अधिकारी ने कहा कि चीन पर भरोसा करना खुद को धोखा देने जैसा है। उसकी कथनी-करनी में कोई मेल नहीं है।
जम्मू। पूर्वी लद्दाख सहित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच अबतक 13 दौर की बातचीत हो चुकी है। दोनों ने सीमा विवाद को तेजीस से सुलझाने के लिए सहमति जताई लेकिन चीन ने पिछली बातचीत में हुए मौखिक समझौते को दरकिनार करते हुए उसने तनाव बढ़ाने वाली कार्रवाईयां आरंभ कर दी है।
इस बाबत सेना के एक अधिकारी ने कहा कि चीन पर भरोसा करना खुद को धोखा देने जैसा है। उसकी कथनी-करनी में कोई मेल नहीं है। सीमा पर बने तनावपूर्ण हालात में कमी लाने की बात तो वह करता है लेकिन सीमा पर उसकी गतिविधियां संदेह प्रकट करती हैं। जानकारी के मुताबिक चीन ने पैंगोंग झील के उत्तरी हिस्से में अपनी नई सैन्य टुकड़ियां भेजना शुरू कर दिया है। पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) की यह गतिविधि दर्शाती है कि उसकी मंशा इस इलाके में फिलहाल पीछे हटने की नहीं है। हालांकि इसकी भारत की ओर से आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
भारत का मानना है कि सीमा पर सैनिकों की वापसी की पहल एक लंबी प्रक्रिया से गुजरेगी। वहीं सेना का मानना है कि भारत यदि अपने सैनिकों को पीछे हटाता है तो उन जगहों पर पीएलए के सैनिक कब्जा कर लेंगे। इसलिए भारत अपने नियंत्रण वाले ऊंचाइयों को छोड़ने के पक्ष में नहीं है। वहीं चीन सीमा पर तापमान पारा शून्य से 15 डिग्री नीचे तक चला गया है। पर खराब मौसम में लगातार दूसरे साल बने रहने की भारत ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है जबकि चीन के सैनिकों के लिए इतनी ऊंचाई और सर्दी में रहने की आदत नहीं है।
बता दें भारत-चीन के सेनाओं के बीच 13वें दौर की वार्ता के बेनतीजा रहने के बाद से भारत ने उम्मीद छोड़ दी थी कि चीनी सैनिक लद्दाख के विवादित क्षेत्रों से पीछे हटेंगें। ऐसे में अब एलएसी पर लंबे समय तक टिके रहने को लेकर सर्दी से बचाव की योजनाएं लागू की जाने लगी हैं।
रक्षा सूत्रों के मुताबिक, दरअसल चीनी सैनिकों की वापसी का मामला दो बिंदुओं पर ही अटका हुआ है कि पहले पहल कौन करे। इस पर वार्ता में शामिल भारतीय सेनाधिकारियों का कहना था कि समझौते चीन की सेना ने तोड़े हैं तो पहल भी उसे ही करनी होगी। दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा जिस पर सहमति नहीं बन पाई कि इस बात की आखिर क्या गारंटी है कि चीनी सेना दोबारा लद्दाख के इलाकों में घुसपैठ कर विवाद खड़ा नहीं करेगी। यह भारतीय सेना के अधिकारियों की चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि पिछले कई सालों से यही हो रहा है कि चीन भी अब पाकिस्तान की ही तरह समझौतों की लाज नहीं रख रहा है।
यह भी सच है कि लद्दाख में चीन अब धोखे वाली रणनीति अपनाते हुए जो चाल चल रहा है वह खतरनाक कही जा सकती हें। इससे अब भारतीय सेना अनभिज्ञ नहीं है। यही कारण है कि उसने अब पैंगांग झील के सभी फिंगरों के अतिरिक्त आठ अन्य विवादित क्षेत्रों पर भी अतिरिक्त सैनिक भिजवाने की पहल आरंभ कर दी है।
रक्षाधिकारी मानते हैं कि भारतीय सेना और चीनी सेना लद्दाख के कई इलाकों में अभी भी आमने-सामने है और तनाव की स्थिति बनी हुई है लेकिन सबसे ज्यादा तनाव पैंगांग झील इलाके में है। अब कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हो सकता है कि चीन भारतीय सेना को पैंगांग झील में उलझा कर रखना चाहता है और उसकी असल नजर लद्दाख के देपसांग इलाके पर है।