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'आत्महत्या के लिए उकसाना जघन्य क्षेणी का अपराध, इसे समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता'- सर्वोच्च न्यायालय

By शिवेंद्र राय | Published: July 30, 2022 11:20 AM

सर्वोच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस इंदिरा बनर्जी और वी. रामसुब्रमण्यन की बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना एक जघन्य क्षेणी का अपराध है और इसे समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

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ठळक मुद्देआत्महत्या के लिए उकसाना जघन्य क्षेणी का अपराधआपसी समझौते के आधार पर रद्द नहीं की जा सकती एफआईआरजस्टिस इंदिरा बनर्जी और वी. रामसुब्रमण्यन की बेंच ने दिया फैसला

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना एक जघन्य क्षेणी का अपराध है और इसे समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा कि ऐसे जघन्य अपराध जो निजी प्रकृति के नहीं हैं और जिनका समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, उन मामलों में अपराधी और शिकायतकर्ता या पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।

जिस मामले के संदर्भ में यह फैसला दिया गया वह यह था कि मृतक से 2,35,73,200 रुपये की ठगी की गई थी। आर्थिक संकट के कारण मृतक ने आत्महत्या कर ली थी। शुरुआत में मुकदमा दर्ज हुआ लेकिन बाद में आरोपी और शिकायतकर्ता-मृतक के चचेरे भाई के बीच सुलह हो जाने से गुजरात हाई कोर्ट ने प्राथमिकी रद्द कर दी थी। 

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह मुद्दा उठाया गया कि क्या एफआईआर में नामित शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच एक समझौते के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आईपीसी की धारा 306 के तहत एक प्राथमिकी जिसमें दस साल की कैद की सजा होती है, को रद्द किया जा सकता था?

इस मामले पर जस्टिस इंदिरा बनर्जी और वी. रामसुब्रमण्यन की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि  आत्महत्या के लिए उकसाना एक जघन्य क्षेणी का अपराध है और इसे समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र में शिकायतकर्ता की स्थिति केवल सूचना देने वाले की होती है। एक बार प्राथमिकी या आपराधिक शिकायत दर्ज होने और राज्य द्वारा एक आपराधिक मामला शुरू करने के बाद, यह राज्य और आरोपी के बीच का मामला बन जाता है।

आगे शीर्ष अदालत ने कहा, आत्महत्या के लिए उकसाना निजी श्रेणी का अपराध नहीं है। इसे समाज के खिलाफ अपराध के रूप में माना जाना चाहिए और अकेले व्यक्ति के खिलाफ नहीं। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और वी. रामसुब्रमण्यन की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि ‘इसके अलावा आर्थिक रूप से मजबूत अपराधी हत्या, बलात्कार, दुल्हन को जलाने आदि जैसे जघन्य और गंभीर अपराधों के मामलों में भी सूचना देने वालों / शिकायतकर्ताओं को खरीदकर और उनके साथ समझौता करके बरी हो जाएंगे।’

टॅग्स :सुप्रीम कोर्टGujarat High CourtIPCJustice
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