यूसीसी को लेकर यूपी में बैकफुट पर सपा, रालोद और कांग्रेस, मसौदा सामने आने पर अपना बताएंगे अपना रुख
By राजेंद्र कुमार | Published: July 7, 2023 06:53 PM2023-07-07T18:53:00+5:302023-07-07T18:53:44+5:30
कॉमन सिविल कोड का यह मुद्दा चुनाव में किस करवट बैठेगा-इसको लेकर समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) जैसे प्रमुख विपक्षी दलों के नेता उलझन में हैं।
लखनऊ: कॉमन सिविल कोड (यूसीसी) यानी समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश में तीन प्रमुख विपक्षी दल दुविधा में है। कॉमन सिविल कोड का यह मुद्दा चुनाव में किस करवट बैठेगा-इसको लेकर समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) जैसे प्रमुख विपक्षी दलों के नेता उलझन में हैं। इन तीनों ही दलों में इस मुद्दे पर विचार के लिए पार्टी के आला नेताओं के बीच चर्चा हुई, लेकिन किसी रणनीति पर सहमति नहीं बन पायी हैं।
कुल मिलाकर अभी यह कहा जा सकता है कि यूसीसी को लेकर यूपी में अभी तीन विपक्षी दल बैकफुट पर हैं। ऐसे में अब यूसीसी का दबी जुबान से विरोध जताने के बाद अब यह तीनों दल इसे ज्यादा तूल देने के मूड में नहीं है। इन तीनों ही दलों के नेताओं को यह अहसास है कि अगर उसने इस पर मुखर होकर इसके खिलाफ आवाज उठाई तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस पर उसे घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी, इसलिए अब इन दलों के नेता यह कह रहे हैं कि यूसीसी का मसौदा सामने आने पर ही वह अपना रुख स्पष्ट करेंगे।
यह बहुत कमाल की बात है कि भारतीय जनसंघ के जमाने से चले आ रहे समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी हमेशा दुविधा में रही है। हालांकि समान नागरिक संहिता संघ के कोर अजेंडे और भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा है। यह उन मुद्दों में भी शामिल है, जिससे भाजपा को समय-समय पर सियासी ऑक्सीजन मिलती रही है।
अब योजनाबद्ध तरीके से लोकसभा चुनाव के पहले पीएम मोदी ने जिस तरह से यूसीसी का सवाल उछाला है, उससे यही कयास लग रहे हैं कि अगले चुनाव में भाजपा इसे अपना सियासी अस्त्र बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके बाद भी कांग्रेस के नेता इसका खुलकर विरोध नहीं कर रहे हैं।
कांग्रेस नेताओं को लगता है कि इसका विरोध करना कांग्रेस के बहुसंख्यक हिंदू मतदाताओं की नजर में हिंदू विरोधी साबित करेगा। इसके चलते ही कांग्रेस इस मुद्दे पर आक्रमक होने के बजाय फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि समान नागरिक संहिता को लेकर उसका पुराना स्टैंड कायम है कि इस स्तर पर इसे लागू करना ठीक नहीं है। बाकी कोई मसौदा सामने आएगा तो फिर वह कोई टिप्पणी करेगी।
अब कांग्रेस की इसी लाइन को पकड़ते हुए सपा और रालोद भी यूसीसी का दाबी जुबान से विरोध जताने के बाद यूपी में इसे ज्यादा तूल देने के मूड में नहीं है। इन दोनों दलों को भी यह लगता है कि इस मुद्दे पर ज्यादा मुखर हुए तो उन्हें यूपी में नुकसान हो सकता है। इसलिए सपा मुखिया अखिलेश यादव यूपी में अपने नवीनतम मुद्दे पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को महत्व दे रहे हैं। यह एक तरह से सपा के वर्ष 2022 के फार्मूले का विस्तार ही है।
इसी के आधार पर सपा ने अपना सामाजिक जातीय समीकरण इस तरह बिठाया जिससे उसके विधायकों की तादाद 47 से बढ़कर 111 हो गई। इसी फार्मूले से रालोद की भी संख्या में इजाफा हुआ है, इसलिए जयंत चौधरी भी पश्चिम यूपी में अपने सामाजिक समरसता के अभियान पर ध्यान दे रहे हैं।
अखिलेश और जयंत दोनों का ही यह मत है कि गैरयादव पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यकों को तवज्जो देते हुए जातीय जनगणना कराने की मांग और पिछड़ों, दलितों को उसका हक दिलाने का सवाल जनता के बीच उठाते हुए इस वर्ग को अपने पक्ष में लामबंद किया जाए, तो आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के रथ को रोका जा सकता है. और ऐसा करने के लिए भाजपा के यूसीसी मुद्दे से उलझने की जरूरत नहीं हैं।
इस मामले में बैकफुट पर रहना ही उनके लिए फायदेमंद है। इसी सोच के तहत सपा, कांग्रेस और रालोद यूपी में यूसीसी के मुद्दे पर बैकफुट पर हैं। जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने यूसीसी के समर्थन किया है। यूपी में योगी सरकार की सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी तथा भाजपा में शामिल होने को आतुर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर भी यूसीसी का समर्थन करने का ऐलान कर चुके हैं।