सावधान! प्रोटीन से भरपूर मसूर-मूंग दाल हुई जानलेवा, फिलहाल ना करें सेवन

By उस्मान | Updated: October 26, 2018 11:30 IST2018-10-26T11:30:10+5:302018-10-26T11:30:10+5:30

नेशनल फूड सेफ्टी अथॉरिटी के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से आयात की जाने वाली दालें जहरीले पदार्थों से युक्त हैं। 'द फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया' ने उपभोक्ताओं को चेतावनी दी है कि नियमित रूप से इन दालों का सेवन ना करें। 

Moong and Masoor Dal May Be Poisonous Says FSSAI, benefits and side effects of dal or lentils | सावधान! प्रोटीन से भरपूर मसूर-मूंग दाल हुई जानलेवा, फिलहाल ना करें सेवन

फोटो- पिक्साबे

भारत में कई प्रकार की दालें प्रयोग की जाती हैं जिनमें मसूर और मूंग दाल भी हैं। दालें हमारे भोजन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं। दालें प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। डायरिया, कब्ज व खराब पाचन क्रिया को बेहतर करने में मसूर और मूंग की दाल का सेवन लाभकारी होता है। दाल को आप चावल, चपाती, नान जिसके साथ चाहें परोस सकते हैं। इन दोनों दालों में कई पोषक तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीज, पोटैशियम, आयरन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कॉपर, जिंक और विटामिन्स की मात्रा दोगुनी होती है। लेकिन नेशनल फूड सेफ्टी अथॉरिटी के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से आयात की जाने वाली दालें जहरीले पदार्थों से युक्त हैं। बता दें कि कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में इस समय दाल का सबसे ज्यादा उत्पादन हो रहा है। 'द फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया' ने उपभोक्ताओं को चेतावनी दी है कि नियमित रूप से इन दालों का सेवन ना करें। 

मसूर और मूंग दाल में हैं केमिकल्स
लैब में हुए परीक्षण में इन दालों में खतरनाक रसायनों की उच्च मात्रा पाई गई। दालों में ग्लाइफोसेट जैसे जानलेवा रसायन मौजूद पाए गए। इसका इस्तेमाल किसान चूहों और खरपतवार से छुटकारा पाने के लिए करते हैं। इस मुद्दे पर एफएसएसएआई के एक अधिकारी ने कहा, दालों में हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट का स्तर बहुत ज्यादा होने की आशंका है जो उपभोक्ताओं की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है। 

मसूर और मूंग की दाल में पाए गए ग्लाइफोसेट कण 
कनाडायिन फूड इन्सपेक्शन एजेंसी ने कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में पैदा की गईं दालों के हजारों सैंपल लेकर परीक्षण किया था। कनाडा की दालों में प्रति अरब ग्लाइफोसेट के 282 कण और ऑस्ट्रेलिया की दालों में प्रति अरब 1000 ग्लाइफोसेट कण पाए गए जोकि किसी भी मानक से बहुत ज्यादा है। दालों की गुणवत्ता पर एक ऐक्टिविस्ट ने चिंता जाहिर की थी और कहा था कि भारतीयों की डाइट पिछले कुछ सालों में बहुत जहरीली हो गई है और लोगों की इसकी जानकारी तक नहीं है।

भारत में ग्लाइफोसेट की पहचान कर पाना मुश्किल 
भारत में ग्लाइफोसेट को लेकर कोई मानक भी नहीं है जिससे इसकी खपत बिना रोक-टोक चल रही है। इसके बाद यह स्टडी आई है जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं। कुछ साल पहले तक ग्लाइफोसेट को सुरक्षित माना जाता था लेकिन बाद में डबल्यूएचओ ने अपनी एडवाइजरी में इसका सेवन बंद करने की सलाह दी थी।

ग्लाइफोसेट से हो सकती हैं ये खतरनाक समस्याएं
खरपतवारनाशक ग्लाइफोसेट से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इससे शरीर में प्रोटीन संबंधित प्रक्रिया को नुकसान पहुंच सकता है, प्रतिरक्षा तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है। इसके अलावा शरीर में जरूरी पोषक तत्वों का अवशोषण होना बंद हो जाता है। कुछ मामलों में ग्लाइफोसेट की वजह से गुर्दा तक काम करना बंद कर देता है। 

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