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मथुरा: वैज्ञानिकों को मिली है बड़ी कामयाबी, इस तकनीक का इस्तेमाल कर कृत्रिम गर्भाधान के जरिए बकरी ने जन्मा एक मेमना, अब बकरी पालन का विकास संभव

By भाषा | Updated: December 10, 2022 16:31 IST

इस पर बोलते हुए परियोजना प्रभारी डॉ. योगेश कुमार सोनी ने बताया “दूरबीन तकनीक द्वारा कृत्रिम गर्भाधान तकनीक भेड़ एवं बकरियों में प्रयोग होने वाली नई पद्धति है। इसके द्वारा उच्च गर्भधारण दर के साथ-साथ उच्च कोटि के नर बकरों के वीर्य का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे बकरी पालन और भी समृद्ध होगा।”

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ठळक मुद्देमथुरा के वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है। यहां के डॉक्टरों ने लैप्रोस्कोप तकनीक के इस्तेमाल से एक मेमने को जन्म दिया है। इस सफलता से अब यह संभवाना जताई जा रही है कि इससे बकरी पालन में विकास होगा।

लखनऊ: केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बकरी के हिमीकृत (फ्रोजन) वीर्य का उपयोग कर ‘लेप्रोस्कोपिक’ तकनीक द्वारा कृत्रिम गर्भाधान करा मेमने का जन्म दिलाने में सफलता प्राप्त की है। इससे बकरी पालन में विकास होने की उम्मीद है। 

संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तरह की यह पहली सफलता है और मेमना तथा उसे जन्म देने वाली बकरी पूरी तरह स्वस्थ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक से बकरी पालन में उल्लेखनीय विकास होगा। 

‘लेप्रोस्कोपिक’ तकनीक से बकरी को गर्भाधान कर मेमने को दिलाया गया जन्म

कृषि अनुसंधान परिषद की अनुषांगिक शाखा केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक पुष्पेंद्र शर्मा ने बताया कि ‘लेप्रोस्कोपिक’ तकनीक से बकरी में छह जुलाई को गर्भाधान किया गया था। उन्होंने बताया कि बकरी ने दो दिसंबर को मेमने को जन्म दिया और यह प्रयोग सफलतापूर्वक किया गया है। 

इस तकनीक से बकरी पालन में हो सकता है विकास- डॉक्टर

आपको बता दें कि यह संस्थान यहां फरह क्षेत्र के मखदूम गांव में स्थित है। संस्थान के निदेशक डॉ. मनीष कुमार चेटली ने इस प्रयास की सराहना की है। शोध टीम में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसडी खर्चे, डॉ. योगेश कुमार सोनी, डॉ. एसपी सिंह, डॉ. रवि रंजन एवं डॉ. आर पुरुषोत्तमन शामिल थे। 

परियोजना प्रभारी डॉ. योगेश कुमार सोनी ने बताया “दूरबीन तकनीक द्वारा कृत्रिम गर्भाधान तकनीक भेड़ एवं बकरियों में प्रयोग होने वाली नई पद्धति है। इसके द्वारा उच्च गर्भधारण दर के साथ-साथ उच्च कोटि के नर बकरों के वीर्य का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे बकरी पालन और भी समृद्ध होगा।” 

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