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FIFA World Cup: इस गेम में खास तरह की गेंद होती है इस्तेमाल, जानिए 88 साल में क्या-क्या हुए बदलाव

By सुमित राय | Updated: June 8, 2018 07:27 IST

FIFA World Cup 2018: इस साल भी एक खास तरह की गेंद का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें चिप लगी है।

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फुटबॉल के महाकुंभ 'फीफा वर्ल्ड कप 2018' में इस साल 32-32 टीमें हिस्सा ले रही हैं, जिन्हें आठ ग्रुप्स में रखा गया है। इन टीमों के बीच 64 मैच खेले जाएंगे। फीफा विश्व कप फुटबॉल के लिए एक विशेष तरह के गेंद का इस्तेमाल किया जाता है और हर साल वर्ल्ड कप से पहले मैचों में इस्तेमाल की जाने वाली बॉल की चर्चाएं होने लगती हैं। इस साल भी एक खास तरह की गेंद का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें चिप लगी है और गेंद को स्मार्टफोन से कनेक्ट कर मैच से जुड़े कई अहम आंकड़े हासिल किए जा सकते हैं।

उरुग्वे : 1930 में 12 टुकड़ों की बनी गेंद

फीफा वर्ल्ड कप की शुरुआत साल 1930 में हुई थी और पहली बार इसका आयोजन उरुग्वे में किया गया था। उरुग्वे में हुए इस विश्व कप में 12 टुकड़ों से बनी गेंद का इस्तेमाल किया गया था। गेद का दायरा 68 से 70 सेमी के बीच का था। गेंद पर अर्जेंटीना और उरुग्वे में विवाद हुआ था।

फ्रांस : 1938 में स्थानीय निर्माताओं ने बनाई गेंद

1938 में फ्रांस में आयोजित किए गए फीफा वर्ल्ड कप में जिस गेंद का इस्तेमाल किया गया था, उसे स्थानिय निर्माताओं ने तैयार किया था। यह गेंद भी 12 टुकड़ों से बनी थी, लेकिन इसका रंग बदल कर ब्राउन कर दिया गया था।

ब्राजील : 1950 में हुआ इस तरह की गेंद का इस्तेमाल

विश्व युद्ध के बाद भी 12 टुकड़ों वाले गेंद का इस्तेमाल हुआ, लेकिन इसके आखिरी छोर घुमावदार थे, जिससे  सिलाई पर जोर कम पड़े।

स्विट्जरलैंड : 1954 में 18 पैनल की गेंद का इस्तेमाल

साल 1954 में स्विट्जरलैंड में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप में पहली बार 18 पैनल की गेंद का इस्तेमाल किया गया। इसी बॉल का इस्तेमाल 1966 तक विश्व कप में हुआ।

स्वीडन : 1958 बेहतर किया गया बॉल

1958 में स्वीडन में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप में 18 टुकड़ों में बनी गेंद का इस्तेमाल किया गया। इसे थोड़ा पहले से बेहतर बनाया गया। इस गेंद की सिलाई ऐसी की गई, जिससे दबाव कम हो गया।

चिली : 1962 में रेफरी ने दिए 5 बदलाव के विकल्प

चिली में 1962 में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप में भी 18 टुकड़ों वाली गेंद का इस्तेमाल किया गया। हालांकि नमी वाले मौसम में शिकायतें आई कि गेंद पानी शोख रही है और धूप में रंग बदल रही है, तब रेफरी ने 5 बदलाव के विकल्प दिए।

इंग्लैंड : 1966 में इंग्लैंड की कंपनी को दिया गया नमूना

साल 1966 इंग्लैंड में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप में इंग्लैंड की कंपनी ने पहली बार बॉल के नमूने दिए। इसे 24 टुकड़ों को जोड़कर बनाया गया।

मैक्सिको : 1970 में एडिडास से हुआ करार

मैक्सिको में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए फीफा एसोसिएशन और एडिडास के बीच करार हुआ। इस साल पहली बार टेलस्टर बॉल का इस्तेमाल किया गया। यह चमड़े का था।

जर्मनी : 1974 में डिजाइन में कोई बदलाव नहीं

साल 1974 में जर्मनी में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए गेंद की डिजाइन में कोई खास बदलाव नहीं किया गया। इस बॉल को लेस्टार डुरस्टार का नाम दिया गया।

अर्जेंटीना : 1978 एडिडास ने दिया ट्रेडमार्क बॉल

अर्जेंटीना में 1978 में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप में पहली बार एडिडास ने अपना ट्रेडमार्क बॉल पर दिया। कंपनी ने इस बॉल का नाम टैगो दिया था।

स्पेन : 1982 में लेदर और सिंथेटिक तैयार किया गया बॉल

साल 1982 में स्पेन में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए खास तौर की गेंद तैयार की गई, जिसका मैटेरियल लेदर और सिंथेटिक का मिश्रण था। इस गेंद का नाम टेंगो स्पाना रखा गया था।

मैक्सिको : 1986 एजटेका नाम की बनी गेंद

1986 में मैक्सिको में आयोजित फीफा विश्व कप के लिए पहली बार अनूठे फीचर के साथ गेंद बनाई गई। सिंथेटिक मैटेरियल की लेयर के साथ बनी बॉल का नाम एजटेका दिया गया।

इटली : 1990 पूरी तरह सिंथेटिक फाइवर लेयर की गेंद

साल 1990 में इटली में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए पूरी तरह से सिंथेटिक फाइवर लेयर की गेंद बनाई गई। तेज रफ्तार के लिए अलग वस्तु का इस्तेमाल किया गया।

यूएसए : 1994 में फ्रांस में बनी गेंद का इस्तेमाल

साल 1994 में यूएसए में आयोजित फीफा विश्व कप के लिए पहली बार फ्रांस में बनी गेंद का इस्तेमाल किया गया। इस टूर्नामेंट के लिए क्यूस्टरा नाम की गेंद बनाई गई, जिसका टेस्ट यूरोप और यूएसए ने मिल कर दिया था।

फ्रांस : 1998 में ट्राइकलर की गेंद का इस्तेमाल

साल 1998 में फ्रांस में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए इतिहास में पहली बार मेजबान राष्ट्र के संकेत के रूप में बदल पर ट्राइकलर के रंग देने का प्रयास हुआ।

कोरिया/जापान :  2002 में तीन साल के रिसर्च के बाद बनी गेंद

साल 2002 में कोरिया और जापान में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए एडिडास रिसर्च सेंटर में ट्राइकलर पर तीन साल की मेहनत के बाद बनी यह बॉल कई मायनों में अलग थी।

जर्मनी : 2006 में कई टेस्ट के बाद बनी गेंद

साल 2006 में जर्मनी में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए एक बार फिस से तीन साल की रिसर्च के बाद एडिडास की रचनात्मक टीम मे कई टेस्ट करने के बाद बॉल का निर्माण किया था।

साउथ अफ्रीका : 2010 में गेंद में 11 रंगों का इस्तेमाल

साल 2010 में साउथ अफ्रीका में आयोजित फीफा वर्ल्ड कप के लिए एडिडास की एसोसिएट कंपनी जबुलानी ने 11वीं एडिडास के बॉल का निर्माण किया। इसमें 11 रंगों का इस्तेमाल किया गया।

ब्राजील : 2014 में ब्राजूका गेंद का इस्तेमाल

साल 2014 में ब्राजील में आयोजित फीफा विश्व कप में ब्राजूका गेंद का इस्तेमाल किया गया। ब्राजूका का मतलब स्थानीय भाषा में ब्राजीली होता है। नाम का चयन लोगों ने किया था।

रुस : 2018 में टेलस्टर गेंद का इस्तेमाल

इस साल एक बार फिर टेलस्टर बॉल का इस्तेमाल किया जा रहा है और इसे 1970 में इस्तेमाल किए गए टेलस्टर बॉल की तरह ही इसको डिजाइन किया गया है। हालांकि इसके पैनल में बदलाव किए गए है। इस साल गेंद में केवल छह पैनल वॉल हैं, जबकि पुराने टेलस्टर में 32 पैनल वॉल एक साथ थे। इस बार इसकी सतह को भी 3डी डिजाइन में बनाया गया है। इस साल मैचों में इस्तेमाल किए जाने वाले टेलस्टर-18 बॉल की खास यह है कि इसमें चिप लगाई गई है। चिप के जरिए एडिडास कंपनी के उपभोक्ता मोबाइल को सीधे गेंद से जोड़ सकते हैं, जो कि उन्हें पैर से लगे शॉट और हेडर सहित अन्य जानाकरियां देगा। इस साल विश्व कप में इस्तेमाल किए जाने वाला बॉल पाकिस्तान के सियालकोट शहर में बना है।

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