सुनील पांडेय जिसने मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए दी थी 50 लाख की सुपारी, पढ़ें पीएचडी किये हुये बिहार के दबंग नेता की फिल्मी कहानी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 3, 2019 09:36 IST2019-08-03T09:36:17+5:302019-08-03T09:36:17+5:30
सुनील पांडेय ने पीएचडी का इंटरव्यू भी जेल में रहने के दौरान दिया था। सुनील पांडेय जब जेल से हथियारबंद पुलिसवालों के साथ पीएचडी का इंटरव्यू देने गये थे तो मीडिया से बात करते हुये अपनी कहा था- ''मैं नेता हूं, जिससे उम्मीद की जाती है कि वो समाज का नेतृत्व करे। मुझे शिक्षित होना ही होगा। मैं जेल में हूं तो क्या हुआ, हमारे बहुत से नेताओं ने जेल में रहते हुए ही किताबें लिखी हैं।”

सुनील पांडेय जिसने मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए दी थी 50 लाख की सुपारी, पढ़ें पीएचडी किये हुये बिहार के दबंग नेता की फिल्मी कहानी
सुनील पांडेय बिहार की राजनीति का जाना-माना नाम और आपराधिक छवि वाले दंबग नेता हैं। सुनील पांडेय अभी राम विलास पासवान की पार्टी लोक जन शक्ति पार्टी के नेता हैं। लेकिन इससे पहले वो जेडीयू की टिकट पर दो बार विधायक बने हैं। सुनील पांडेय बिहार के ऐसे नेता हैं, जिनका नाम हमेशा ही सर्खियों में रहा। सुनील पांडेय का नाम कभी रणवीर सेना के सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में आया, तो कभी बिहार के चर्चित आरा सिविल कोर्ट बम ब्लास्ट में आया, तो कभी पटना के एक होटल में खुलेआम गोली मारने की धमकी देने का वीडियो वायरल हुआ, तो कभी अपराधी को जेल से भगाने के मामले में गिरफ्तार होते हैं, तो कभी यूपी के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपये की सुपारी देने के आरोपों से घिर जाते हैं। 53 वर्षीय सुनील पांडेय की आधी जिंदगी जेल में बीती है तो आधी फरार रहने में।
सुनील पांडेय ने भगवान महावीर की अहिंसा पर पीएचडी की है
राजनीति और अपराध के अलावा सुनील को पढ़ाई में भी काफी दिलचस्पी थी। बिहार के रोहतास के नावाडीह गांव में जन्मे सुनील पांडेय ने अपनी शुरुआती पढ़ाई तो रोहतास में ही की, लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए बेंगलुरु गए थे। लेकिन उसी दौरान मामूली विवाद में एक लड़के को चाकू मार दी और वापस लौट आए। इसके बाद से ये अपराध जगत में ये आगे तो बढ़े लेकिन पढ़ाई से नाता कभी नहीं तोड़ा। सुनील पांडेय का एक परिचय यह भी है कि वो पीएचडी हैं। अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं। हैरानी वाली बात तो यह है कि इन्होंने पीएचडी भगवान महावीर की अहिंसा पर की है।
''मुझे शिक्षित होना ही होगा। मैं जेल में हूं तो क्या हुआ'': सुनील पांडेय
सुनील पांडेय ने पीएचडी का इंटरव्यू भी जेल में रहने के दौरान दिया था। सुनील पांडेय जब जेल से हथियारबंद पुलिसवालों के साथ पीएचडी का इंटरव्यू देने गये थे तो मीडिया से बात करते हुये अपनी कहा था- ''मैं नेता हूं, जिससे उम्मीद की जाती है कि वो समाज का नेतृत्व करे। मुझे शिक्षित होना ही होगा। मैं जेल में हूं तो क्या हुआ, हमारे बहुत से नेताओं ने जेल में रहते हुए ही किताबें लिखी हैं।” लेकिन माफिया डॉन, शोहरत, बदनामी और शिक्षा ये सब सुनील पांडेय को रातों-रात या एक दिन में नहीं मिला इनकी कहानी किसी बॉलीवुड की हिंदी मसाला फिल्मों से कम नहीं है।
सुनील पांडेय कैसे आये अपराध के रास्ते में
1990 के दशक में रोहतास के नावाडीह गांव में सुनील पांडेय के पिता इलाके में बालू निकालने के छोटे-मोटे ठेके के धंधे में थे। जिसकी वजह से इलाके में उनकी छवि दंबग वाली थी। बेंगलुरु से इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ कर आने के बाद सुनील पांडेय अपने पिता के नक्श-ए-कदम पर चलना शुरू कर देते हैं। जिस वक्त सुनील बालू के ठके का धंधा कर रहा था उस वक्त ठेकेदारी में रोहतास के आस-पास सिल्लू मियां को बोलबाला था। सिल्लू मियां आरा का रहने वाला था और शहाबुद्दीन का खास था। धीरे-धीरे सुनील ने सिल्लू मियां के साथ दोस्ती बढ़ाई और देखते देखते उसका राइट हैंड बन गया। कहा जाता है कि सुनील पांडेय ने अपराध जगत की तालिम सिल्लू मियां के अंडर ही रहकर ली थी।
लेकिन समय के साथ सुनील पांडेय खुद को सिल्लू मियां से ऊपर देखने लगा। इसी बीच अचानक एक दिन सिल्लू मियां का मर्डर हो जाता है। हत्या में नाम सुनील का आता है लेकिन सबूत ना होने पर केस दर्ज नहीं हो पाता है। सिल्लू मियां के मौत के बाद बालू के ठेके पर सुनील का एकछत्र राज हो जाता है। इसी वर्चस्व की लड़ाई में सुनील पांडेय रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह के विरोधी बन जाते हैं।
जब ब्रह्मेश्वर मुखिया के साथ हुआ सुनील पांडेय का आमना-सामना
बिहार में 90 का दशक रणवीर सेना का था। ये सेना मूल रूप से सवर्ण जातियों का हथियारबंद संगठन था, जिसमें भूमिहार जाति का बोलबाला था। सुनील पांडेय भी रणवीर सेना के खास आदमी थे। सुनील पांडेय इस सेना में खास से सबसे ऊपर पहुंचना चाहते थे। इसी होड़ में 1997 से सुनील और ब्रह्मेश्वर के बीच खूनी संघर्ष होने लगा। जनवरी 1997 को भोजपुर के बागर गांव में ब्रह्मेश्वर मुखिया गुट ने 3 लोगों की हत्या कर दी। मारे गए सभी लोग भूमिहार थे। मरने वालों में एक महिला भी थी, जो सुनील पांडेय की करीबी रिश्तेदार थी। इसके बाद से दोनों की दुश्मनी खुलेआम चली।
सुनील और ब्रह्मेश्वर मुखिया की जंग एक जून 2012 तक चली, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या हुई थी। जिसका आरोप सुनील पांडेय पर लगा। केस तो चला लेकिन सबूत नहीं मिला। ब्रह्मेश्वर मर्डर केस की जांच में सीबीआई अभी तक किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंची है। हत्या के पहले ब्रह्मेश्वर तकरीबन 9 सालों तक जेल में बंद था। अगस्त, 2002 में 227 लोगों की हत्या के जुर्म में ब्रह्मेश्वर गिरफ्तार हुआ था। मई 2011 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था। जिसके बाद एक जून 2012 को उनकी हत्या कर दी गई। लेकिन इन 9 सालों में सुनील पांडे ने अपराध के साथ-साथ राजनीति में भी अपनी पैठ जमा ली थी।
जब बिहार की राजनीति में छा गये सुनील पांडेय
बिहार में मार्च 2000 में हुये विधानसभा चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर सुनील पांडेय भी चुनावी मैदान में रोहतास के पीरो विधानसभा सीट से उतरा और पहली बार में ही जीत गये। लेकिन इस चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला। समता पार्टी उस वक्त बीजेपी के साथ गठबंधन में थी। नीतीश कुमार ने सीएम पद की शपथ ली। जिसमें बहुत बड़ा हाथ सुनील का था। सुनील ने उस वक्त बिहार के सारे बाहुबली और निर्दलीय विधायक मोकामा के सूरजभान, बनियापुर के धूमल, राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, रमा सिंह और अनंत सिंह को नीतीश के साथ लाकर खड़ा कर दिया। लेकिन फिर भी सरकार तो नहीं बच पाई पर बिहार की राजनीति में सुनील पांडेय छा जरूर गये। इसके बाद मई 2003 में पटना के मशहूर न्यूरो सर्जन डॉक्टर रमेश चंद्रा का अपहरण हो गया था और फिरौती के लिए पचास लाख रुपए मांगे गये। हालांकि पुलिस ने डॉक्टर को खोज निकाला था। लेकिन इस केस में नाम सामने आया विधायक सुनील का। केस दर्ज होने के बाद पांच साल तक चला और फिर 2008 में सुनील को इस मामले में तीन लोगों के साथ उम्रकैद की सजा हुई। हालांकि बाद में हाई कोर्ट ने बरी कर दिया। लेकिन इसी बीच सुनील 2005 में जेडीयू के टिकट पर पीरो से लगातार तीसरी बार विधायक बन गए थे। वो इसलिए क्योंकि 2005 में फरवरी और नवंबर दो बार विधानसभा के चुनाव हुए थे। दोनों में सुनील जीत गये थे।
चुनावी एफिडेविट में 23 आपराधिक मामले दर्ज
ऐसी छोटी-मोटी, रंगदारी, फिरौती, लूट, पत्रकार को धमकाने के सुनील पर कई आरोप लगे थे। जिसकी वजह से 2006 में उन्हें जेडीयू पार्टी से निकाल दिया गया था। लेकिन 2010 में नीतीश कुमार फिर से सुनील पांडे को टिकट दे दिया। सुनील फिर से चर्चा में आये क्योंकि चुनावी एफिडेविट में सुनील ने दिखाया था कि उनपर 23 आपराधिक मामले दर्ज हैं। जिसमें हत्या से लेकर लूट तक के मामले हैं।
2014 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा और वह हार गये। इस हार के बाद सुनील ने जेडीयू पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के बाद मीडिया से बात करते हुये उन्होंने कहा था- मैंने नीतीश कुमार को आगाह किया था कि एनडीए से बाहर ना जाये क्योंकि 2010 के विधानसभा चुनाव में जो जीत मिली थी, वो सिर्फ जेडीयू की नहीं थी इसमें एनडीए भी था।
जब मुख्तार अंसारी की हत्या के दी 50 लाख की सुपारी
जनवरी 2015 में आरा के सिविल कोर्ट में बम ब्लास्ट हुआ, जिसमें दो लोगों की मौत हुई और पुलिस की गिरफ्त से दो अपराधी लंबू शर्मा और अखिलेश उपाध्याय भाग गये। लेकिन पुलिस ने जून 2015 लंबू शर्मा को दिल्ली में दोबारा गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस पूछताछ में लंबू शर्मा ने कबूल किया कि उसने खुद ही भागने के लिए बम ब्लास्ट किये थे। पूछताछ में लंबू शर्मा ने यह भी दावा किया कि सुनील पांडेय ने यूपी के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए 50 लाख की सुपारी दी थी और जेल में भागने में मदद भी की।
इस घटना के बाद पुलिस ने नाटकीय ढंग से सुनील पांडेय को गिरफ्तार किया। भोजपुर जिले के तत्कालीन एसपी नवीन झा ने सुनील पांडेय को ऑफिस में मुलाकात के लिए बुलाया और गिरफ्तार कर लिया। हालांकि तीन महीने में सुनील को जमानत मिल गई थी।
जमानत पर बाहर निकलने के कुछ दिनों बाद ही नवंबर 2015 विधानसभा हुये। राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सुनील की पत्नी गीता को टिकट दिया। लेकिन वो भी चुनाव जीत नहीं पाईं। सुनील पांडेय फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।


