भरतपुर के राजा मानसिंह हत्याकांडः 35 साल बाद इंसाफ, दोषी करार 11 पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद, 10-10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा

By भाषा | Updated: July 22, 2020 19:15 IST2020-07-22T16:26:29+5:302020-07-22T19:15:47+5:30

उच्चतम न्यायालय ने मान सिंह के दामाद और शिकायतकर्ता विजय सिंह की याचिका पर नवंबर 1989 में मुकदमे की सुनवाई जयपुर की विशेष अदालत से उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थानांतरित कर दी थी। 

Rajasthan Uttar Pradesh Raja Mansingh massacre Bharatpur justice after 35 years life imprisonment 11 former policemen | भरतपुर के राजा मानसिंह हत्याकांडः 35 साल बाद इंसाफ, दोषी करार 11 पूर्व पुलिसकर्मियों को उम्रकैद, 10-10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा

1985 में राजा मानसिंह और उनके दो सहयोगियों सुमेर सिंह और हरि सिंह को मुठभेड़ में मारने वाले पुलिस दल का नेतृत्व किया था। (file photo)

Highlightsराजा मान सिंह और उनके दो सहयोगियों की हत्या के कुछ दिन बाद 27 फरवरी 1985 को तत्कालीन केंद्र सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया।अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि माथुर सेवा निवृत्त आईएएस अधिकारी ब्रजेंद्र सिंह के पक्ष में चुनावी रैली को संबोधित करने वाले थे।अभियोजन के मुताबिक उन पर प्रचार सामग्री और कांग्रेस उम्मीदवार के प्रचार में माथुर द्वारा भाषण देने के लिये तैयार मंच को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप था।

मथुराःराजस्थान के पूर्ववर्ती भरतपुर राज घराने के राजा मानसिंह और उनके दो सहयोगियों की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के 35 साल से अधिक पुराने मामले में यहां की एक अदालत ने बुधवार को डीग के तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) कान सिंह भाटी सहित सभी 11 पूर्व पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास और 10-10 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।

मथुरा की जिला न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने जिन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई उनमें डीग के पूर्व पुलिस उपाधीक्षक कान सिंह और स्थानीय पुलिस थाने के तत्कालीन प्रभारी, उप निरीक्षक वीरेंद्र सिंह शामिल हैं, जिन्होंने 21 फरवरी 1985 को राजा मानसिंह और उनके दो सहयोगियों सुम्मेर सिंह और हरि सिंह को मुठभेड़ में मारने वाले पुलिस दल का नेतृत्व किया था।

इस अपराध में जिन अन्य पूर्व पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई गई उनमें सुखराम, जीवन राम, जग मोहन, भंवर सिंह, हरि सिंह, छतर सिंह, शेर सिंह, दया राम और रवि शेखर शामिल हैं। सजा सुनाए जाने के बाद सभी दोषियों को जेल भेज दिया गया। अदालत ने इसके अलावा भाटी और अन्य सभी दोषियों पर अन्य धाराओं में भी छह माह व दो माह के कारावास तथा एक-एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया।

धारा 148 में छह माह का कारावास व एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया

कानसिंह भाटी पर लगाई गई भादंसं की धारा 323/149 को खारिज करते हुए धारा 148 में छह माह का कारावास व एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया। जिला न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने दोषियों को सजा सुनाए जाने के साथ ही उक्त घटना में पुलिस द्वारा मारे गए राजा मानसिंह, उनके साथी ठाकुर सुम्मेर सिंह व ठाकुर हरि सिंह के परिजनों को राजस्थान सरकार द्वारा तीस-तीस हजार रुपए तथा जख्मी हुए राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह सिरोही, बाबूलाल, नवल सिंह व चंदन सिंह को दो-दो हजार रुपए हर्जाने के तौर पर देने का आदेश दिया।

आदेश में बचाव पक्ष के वकील नन्दकिशोर उपमन्यु की मांग पर सभी दोषियों की आयु (सभी अभियुक्त साठ वर्ष से अधिक आयु के हैं, जिनमें से डीएसपी रहे कान सिंह भाटी तो अब 82 वर्ष से अधिक उम्र के हैं) को देखते हुए जिला कारागार में उनको उचित चिकित्सा सुविधा दिलाए जाने को कहा गया है। फैसला सुनाए जाने के बाद कान सिंह भाटी के पुत्र चांद सिंह भाटी के वकील नन्दकिशोर उपमन्यु एवं तत्कालीन थानाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह सिरोही के पुत्र जगदेव सिंह की ओर से वकील नवीन कुमार सक्सेना ने कहा कि कि वे इस फैसले के विरोध में उच्च न्यायालय में अपील करेंगे।

इसके लिए साठ दिन का समय दिया गया है

उन्हें इसके लिए साठ दिन का समय दिया गया है। यह मुठभेड़ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे राजा मान सिंह द्वारा कथित तौर पर अपनी जीप से राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री शिव चरण माथुर के हेलीकॉप्टर में कथित तौर पर टक्कर मारने के एक दिन बाद डीग अनाज मंडी में हुई थी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक उन पर प्रचार सामग्री और कांग्रेस उम्मीदवार के प्रचार में माथुर द्वारा भाषण देने के लिये तैयार मंच को नुकसान पहुंचाने का भी आरोप था।

अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि माथुर सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ब्रजेंद्र सिंह के पक्ष में चुनावी रैली को संबोधित करने वाले थे। राजा मान सिंह और उनके दो सहयोगियों की हत्या के कुछ दिन बाद 27 फरवरी 1985 को तत्कालीन केंद्र सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया। उच्चतम न्यायालय ने मान सिंह के दामाद और शिकायतकर्ता विजय सिंह की याचिका पर नवंबर 1989 में मुकदमे की सुनवाई जयपुर की विशेष अदालत से उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थानांतरित कर दी थी।

मथुरा के जिला न्यायालय में तीन दशक से भी अधिक लंबे समय तक चले मुकदमे में फैसला आने से खुश राजा मानसिंह की पुत्री ने कहा, ‘‘शुक्र है कि 35 साल बाद ही सही, फैसला तो हुआ। सिद्ध हो गया कि भगवान के घर देर है, पर अंधेर नहीं। हम मुकदमे के निर्णय तथा अभियुक्तों को सुनाई गई सजा से पूरी तरह से संतुष्ट हैं।’’ इस मौके पर राजा मानसिंह की बेटी दीपा कौर के पति एवं मुकदमे के वादी विजय सिंह सिरोही, राजा मानसिंह की बड़ी बेटी गिरेन्द्र कौर और परिवार के अन्य सदस्य भी फैसले के वक्त उपस्थित रहे।

सभी आरोपियों को धारा 148 के तहत दो वर्ष के कारावास तथा एक-एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई

जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम सिंह तरकर ने बताया, ‘जिला अदालत ने मामले के मुख्य आरोपी डीग के तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक कान सिंह भाटी को भादंसं की धारा 323/149 से अलग करते हुए शेष सभी आरोपियों को धारा 148 के तहत दो वर्ष के कारावास तथा एक-एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में सात दिन का अतिरिक्त कारावास भी सुनाया।

उन्होंने बताया कि इसी प्रकार, धारा 323/149 के तहत सभी को दोषी करार देते हुए छह-छह माह की सजा एवं एक-एक हजार रुपए का जुर्माना देने का दण्ड घोषित किया गया। इसे अदा न करने की स्थिति में सात दिन का अतिरिक्त कारावास देने की सजा सुनाई। तरकर ने बताया, ‘‘कानसिंह भाटी को भादंसं की धारा 148 के तहत छह माह का कारावास व एक हजार रुपए जुर्माने की सजा तथा धारा 302 के तहत आजीवन कारावास व दस हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई है।’’

उन्होंने बताया, ‘‘यह सभी सजाएं एक साथ चलेंगी। इस प्रकार अन्य सभी अभियुक्तों को कुल मिलाकर आजीवन कारावास तथा 12-12 हजार रुपया जुर्माना बतौर भरना पड़ेगा। जबकि कानसिंह भाटी को आजीवन कारावास एवं एक हजार रुपया जुर्माना भरना पड़ेगा।’’

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो की ओर से 18 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। इसमें से कान सिंह भाटी के वाहन चालक महेंद्र सिंह को पहली ही सुनवाई में आरोप मुक्त कर दिया गया था तथा आरोपी राजस्थान पुलिस के तत्कालीन सहायक उप निरीक्षक सीताराम, सिपाही कुलदीप सिंह व सिपाही नेकीराम की मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो चुकी थी। इनके अलावा पुलिस अधीक्षक कार्यालय भरतपुर में उस वक्त अपराध सहायक पद पर कार्यरत निरीक्षक कान सिंह सीरवी, हेड कांस्टेबल हरिकिशन व सिपाही गोविंद प्रसाद को अदालत ने एक दिन पूर्व ही बरी कर दिया था।

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