17 वर्षीय लड़की के साथ सहमति से संबंध, बच्चा भी हुआ?, 18 साल होने पर की शादी?, उच्च न्यायालय ने कहा-तब भी पॉक्सो अधिनियम केस चलेगा!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 30, 2025 16:30 IST2025-09-30T16:29:12+5:302025-09-30T16:30:20+5:30

न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के और न्यायमूर्ति नंदेश देशपांडे की पीठ ने कहा कि नाबालिगों के बीच या उनके साथ संबंध में तथ्यात्मक सहमति ‘‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम’’ के प्रावधानों के तहत अप्रासंगिक है।

Marrying minor not ground defence against rape charges under POCSO Act High Court | 17 वर्षीय लड़की के साथ सहमति से संबंध, बच्चा भी हुआ?, 18 साल होने पर की शादी?, उच्च न्यायालय ने कहा-तब भी पॉक्सो अधिनियम केस चलेगा!

सांकेतिक फोटो

Highlightsपॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।यौन उत्पीड़न, प्रताड़ना और बाल पोर्नोग्राफ़ी से बचाना तथा ऐसे पीड़ितों के लिए एक सहायक वातावरण प्रदान करना है।उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘बच्चों की सुरक्षा के लिए पॉक्सो अधिनियम लागू किया गया था।’’

मुंबईः मुंबई उच्च न्यायालय ने 29 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार का मामला रद्द करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि उसे केवल इसलिए पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसने पीड़ित नाबालिग लड़की से शादी की थी और अब उनका एक बच्चा भी है। उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने 26 सितंबर को पारित आदेश में व्यक्ति की इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि वह 17 वर्षीय लड़की के साथ सहमति से संबंध में था और उसने शादी का पंजीकरण तभी कराया, जब वह 18 वर्ष की हो गई।

न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के और न्यायमूर्ति नंदेश देशपांडे की पीठ ने कहा कि नाबालिगों के बीच या उनके साथ संबंध में तथ्यात्मक सहमति ‘‘यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम’’ के प्रावधानों के तहत अप्रासंगिक है। अदालत ने आरोपी व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा दायर उस अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें अकोला पुलिस द्वारा उनके खिलाफ इस साल जुलाई में दर्ज की गई प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया गया था। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता 17 साल की थी जब उसकी शादी हुई थी और उसने इसी साल मई में एक बच्चे को जन्म दिया। पीड़िता की शादी आरोपी से उस वक्त कर दी गई, जब उसके परिवार को पता चला कि आरोपी ने नाबालिग का यौन उत्पीड़न किया है। आरोपी ने दावा किया कि वह लड़की के साथ सहमति से संबंध में था और उसकी शादी 18 साल की होने के बाद कानूनी रूप से पंजीकृत हुई थी।

उसने आगे दावा किया कि अगर उस पर मुकदमा चलाया गया और उसे सजा दी गई, तो पीड़िता और उसके बच्चे को नुकसान होगा तथा उन्हें समाज में स्वीकार नहीं किया जाएगा। लड़की भी अदालत में पेश हुई और उसने कहा कि उसे प्राथमिकी रद्द किये जाने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों का प्राथमिक उद्देश्य 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को यौन उत्पीड़न, प्रताड़ना और बाल पोर्नोग्राफ़ी से बचाना तथा ऐसे पीड़ितों के लिए एक सहायक वातावरण प्रदान करना है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘बच्चों की सुरक्षा के लिए पॉक्सो अधिनियम लागू किया गया था।’’

अदालत ने यह भी कहा कि किशोरावस्था में प्रेम संबंध बनाने की आयु सीमा क्या होनी चाहिए, यह प्रश्न उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है। अदालत ने कहा कि आरोपी और पीड़ित लड़की का कहना है कि वर्तमान मामले में, हालांकि विवाह मुस्लिम रीति-रिवाजों और धर्म के अनुसार हुआ था, लेकिन तथ्य यह है कि उस समय उसकी (पीड़िता की) आयु 18 वर्ष से कम थी।

अदालत ने कहा कि पीड़िता बच्चे को जन्म देते समय भी 18 वर्ष की नहीं थी। खंडपीठ ने कहा कि आरोपी की आयु विवाह के समय 27 वर्ष थी और उसे यह समझना चाहिए था कि उसे लड़की के 18 वर्ष की उम्र पूरी करने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए थी।

अदालत ने कहा, ‘‘महज इसलिए कि लड़की ने एक बच्चे को जन्म दे दिया है, आरोपियों के अवैध कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘पॉक्सो अधिनियम लैंगिक रूप से तटस्थ है और 18 वर्ष से कम आयु के लोगों द्वारा यौन गतिविधियों को अपराध मानता है।

उक्त अधिनियम के तहत, नाबालिगों के बीच संबंधों में तथ्यात्मक सहमति अप्रासंगिक है।’’ अदालत ने आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि प्राथमिकी रद्द करने के लिए यह उपयुक्त मामला नहीं है।

Web Title: Marrying minor not ground defence against rape charges under POCSO Act High Court

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