नई दिल्लीः सीबीआई ने भ्रष्टाचार के एक कथित मामले में पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम के दिल्ली और जयपुर स्थित परिसरों की तलाशी ली। जांच में कहा गया है कि वह करेंसी छपाई के लिए दिए गए टेंडर में अनियमितता में शामिल हैं। एजेंसी ने कई घंटों से सर्च जारी रखा है।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने भारतीय बैंक नोटों के लिए रंग बदलने वाले विशेष सुरक्षा धागे की आपूर्ति में कथित भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम और ब्रिटेन की एक कंपनी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और मायाराम के परिसरों पर बृहस्पतिवार को तलाशी ली।
सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया कि ब्रिटेन की कंपनी डी ला रुए इंटरनेशनल लिमिटेड और वित्त मंत्रालय तथा भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए आपराधिक साजिश रची। एजेंसी ने आरोप लगाया कि वित्त सचिव के रूप में मायाराम ने रंग बदलने वाले विशेष सुरक्षा धागों की आपूर्ति के लिए कंपनी के साथ खत्म हो चुके अनुबंध को ‘अवैध तरीके से’ तीन साल के लिए बढ़ा दिया और इसके लिए गृह मंत्रालय से कोई अनिवार्य सुरक्षा मंजूरी नहीं ली गयी या तत्कालीन वित्त मंत्री को सूचित नहीं किया गया।
प्राथमिकी के अनुसार मायाराम ने कथित तौर पर चौथी बार अनुबंध को बढ़ाया था। आपराधिक षड्यंत्र तथा धोखाधड़ी से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की। इसके बाद 1978 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी के दिल्ली और जयपुर स्थित आवासों पर तलाशी ली गयी।
कुछ दिन पहले ही मायाराम कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे। एजेंसी ने वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी की शिकायत पर 2018 में प्रारंभिक जांच शुरू की थी। सीबीआई ने अपने निष्कर्षों के आधार पर इसे मायाराम के खिलाफ नियमित मामले में तब्दील कर दिया।
मायाराम इस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आर्थिक सलाहकार हैं। एजेंसी ने अपनी प्राथमिकी में कहा कि केंद्र सरकार ने 2004 में भारतीय बैंक नोटों के लिए रंग बदलने वाले विशेष सुरक्षा धागों की आपूर्ति के लिए डी ला रुए इंटरनेशन लिमिटेड के साथ पांच साल का करार किया था।
31 दिसंबर, 2015 तक अनुबंध को चार बार बढ़ाया गया। एजेंसी का दावा है कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने भारत सरकार की ओर से विशिष्ट सुरक्षा धागों के आपूर्तिकर्ताओं के साथ विशेष समझौते के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को अधिकृत किया था। चार सितंबर, 2004 को डी ला रुए के साथ समझौते पर दस्तखत किये गये थे।
सीबीआई को पता चला कि कंपनी ने 28 जून, 2004 को भारत में पेटेंट के लिए आवेदन किया था, जिसे 13 मार्च, 2009 को प्रकाशित किया गया और 17 जून, 2011 को जारी किया गया, जो दर्शाता है कि समझौते के समय कंपनी के पास वैध पेटेंट नहीं था।
एजेंसी का आरोप है कि समझौते पर आरबीआई के कार्यकारी निदेशक पी के बिश्वास ने डी ला रुए के पेटेंट दावे का सत्यापन किये बिना हस्ताक्षर कर दिये थे। उसने कहा, ‘‘जांच में यह भी पता चला है कि अनुबंध में समाप्त होने का कोई उपबंध नहीं था।’’