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उत्तर बिहार में बाढ़ः मानव तस्कर सक्रिय, लाचारी और भुखमरी का भय दिखा बच्चों को नौकरी-काम दिलाने का देने लगे झांसा

By एस पी सिन्हा | Updated: July 18, 2020 21:07 IST

बंधक बनाकर बच्चों से हाड़तोड़ मेहनत करवाई जाती है. उसके बाद अभिभावकों का बच्चों से कोई संपर्क नहीं हो पाता है. अभी कोरोना संकट के दौरान भी तस्कर किसी ने किसी तरह उत्तर बिहार की ओर रुख करने लगे हैं.

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ठळक मुद्देपिछले साल बाढ़ के दौरान उत्तार बिहार से सैकड़ों बच्चों के लापता होने के मामले सामने आये थे.पूर्णिया से तीन, कटिहार से पांच, अररिया से चार और किशनगंज से तीन बच्चे सहित कई जिलों से सैकड़ों बच्चे लापता हुए थे. पूर्णिया जिले के मुख्यालय डीएसपी सह एंटी ह्यूमेन ट्रैफिकिंग सेल के नोडल पदाधिकारी पंकज कुमार ने कहा कि मानव तस्करी पर पुलिस की पैनी नजर रहती है.

पटनाः बिहार में बाढ़ के दस्तक के साथ ही उत्तर बिहार में मानव तस्कर सक्रिय हो गये हैं. लाचार लोगों को चंद रुपये और बच्चों को महानगरों में अच्छा रोजगार दिलाने का लालच देकर तस्कर ले जाने लगे हैं.

वे अच्छी रकम लेकर फैक्ट्री मालिकों के हाथों बच्चों को  बेच देते हैं. वहां बंधक बनाकर बच्चों से हाड़तोड़ मेहनत करवाई जाती है. उसके बाद अभिभावकों का बच्चों से कोई संपर्क नहीं हो पाता है. अभी कोरोना संकट के दौरान भी तस्कर किसी ने किसी तरह उत्तर बिहार की ओर रुख करने लगे हैं.

हालांकि पिछले साल की तुलना में इनकी संख्या बहुत कम बताई जा रही है. फिर से ये लोग इन इलाकों में सक्रिए हो गये हैं. वैसे पिछले साल बाढ़ के दौरान उत्तार बिहार से सैकड़ों बच्चों के लापता होने के मामले सामने आये थे.

किशनगंज से तीन बच्चे सहित कई जिलों से सैकड़ों बच्चे लापता हुए थे

उनमें पूर्णिया से तीन, कटिहार से पांच, अररिया से चार और किशनगंज से तीन बच्चे सहित कई जिलों से सैकड़ों बच्चे लापता हुए थे. चाइल्डलाइन ने भी पिछले साल दो बच्चों को मुक्त कराया था. 2018 में 17 और 2017 में सीमांचल से 24 किशोर और किशोरियां के लापता होने का मामला पुलिस तक पहुंचा था. चाइल्ड लाइन से जुडे़ लोग बताते हैं कि बाढ़ के दौरान सीमावर्ती क्षेत्र के मानव तस्कर सक्रिय हो जाते हैं. ये लोगों को रोजगार के नाम पर बहला-फुसलाकर ले जाते हैं. अधिसंख्य मामलों में शिकार बच्चे होते हैं. 

पूर्णिया जिले के मुख्यालय डीएसपी सह एंटी ह्यूमेन ट्रैफिकिंग सेल के नोडल पदाधिकारी पंकज कुमार ने कहा कि मानव तस्करी पर पुलिस की पैनी नजर रहती है. बाढ़ के समय विशेष टीम गठित की जाएगी जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में मानव तस्करों पर नजर रखती है.

चूड़ी फैक्ट्री, कालीन फैक्ट्री आदि से बच्चों को छुड़ाकर पुलिस लाती भी रही है

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र, बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि में लोहा फैक्ट्री, चूड़ी फैक्ट्री, कालीन फैक्ट्री आदि से बच्चों को छुड़ाकर पुलिस लाती भी रही है. पूर्णिया जंक्शन पर 24 अगस्त, 2018 को बाढ़ के दौरान सीमांचल एक्सप्रेस ट्रेन से 12 बच्चों को मानव तस्करी की आशंका पर उतारा गया था.

उनमें से एक आरिफ ने बताया था कि उसके गांव बराबर आने वाले एक चाचा ने उसे दिल्ली चलने के लिए कहा था. उसे कहा गया था कि अच्छा काम दिलवाने के अलावा उसे पढ़ाया भी जाएगा. पांच रुपये भी दिए गए थे. ट्रेन में आरिफ को बिठाने के बाद चाचा गायब हो गए. आरिफ को यह भी पता नहीं था कि उसे कहां जाना है और किस काम में लगाया जाएगा.

आरपीएफ ने पूर्णिया स्टेशन से 10 बच्चों को बच्चों को बरामद किया

वहीं, अररिया में चार अक्टूबर, 2018 को आरपीएफ ने पूर्णिया स्टेशन से 10 बच्चों को बच्चों को बरामद किया. इन बच्चों में शामिल रौनक ने बताया कि कुछ लोगों ने उसके पिता से कहा था कि रौनक की नौकरी लगाई जाएगी और उसके बदले रुपये भेजे जाते रहेंगे. उसे दिल्ली की धागा फैक्ट्री में काम देने के बारे में कहा गया था.

बायसी में एक बच्चे को नौकरी के नाम पर तस्कर ले गए थे. इससे पूर्व इन तस्करों ने बाढ़ पीड़ितों की सहायता की थी. बच्चे को ले जाने के पूर्व तस्करों ने उसके अभिभावकों को पांच हजार रुपये भी दिए थे. हर महीने रुपये भेजने का भी आश्वासन दिया गया था. एक बार बच्चे को लेकर गए तो फिर उससे संपर्क नहीं हो सका. कुछ समय के बाद पुलिस ने राजस्थान की एक फैक्ट्री से कुछ बच्चों को मुक्त कराया. उनमें बायसी का उक्त बाल मजदूर भी शामिल था.

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