सीधा-सादा लड़का बृजेश सिंह कैसे बना पूर्वांचल का सबसे बड़ा डॉन, जानें अंसारी से दुश्मनी और दाऊद से दोस्ती की कहानी
By पल्लवी कुमारी | Published: April 18, 2019 09:15 PM2019-04-18T21:15:09+5:302019-04-18T21:15:09+5:30
बृजेश सिंह की राजनीति पारी की बात करें तो वो कुछ खास नहीं है। 2012 में बृजेश चंदौली की सैय्दयराजा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। लेकिन इसके बाद बृजेश ने अपनी पत्नी अन्नपूर्णा को एमएलसी बनवाकर राजनीति में पिछले दरवाजे से ही सही एंट्री ले ली।
पूर्वांचल के माफियाओं और बाहुबली नेताओं की बात हो और उसमें बृजेश सिंह का नाम ना हो ऐसा तो ही नहीं सकता। क्राइम स्टोरी के आठवें एपिसोड में हम बात करेंगे हिस्ट्रीशीटर से नेता बने बृजेश सिंह की। बृजेश सिंह की कहानी पूरी फिल्मी है। आठ से ज्यादा राज्यों के पुलिस रिकॉर्ड में बृजेश सिंह पर 30 संगीन मामलों में केस दर्ज है।
20 सालों तक पुलिस बृजेश सिंह को पकड़ने के लिए छापे मारती रही लेकिन पुलिस के हाथ खाली ही रहे। सात साल तक बृजेश सिंह ओडिशा में नाम और पहचान छिपाकर एक सफेदपोश जिंदगी जीता रहा। उत्तर प्रदेश पुलिस ने बृजेश का सुराग बताने के लिए 5 लाख रुपये का इनाम भी रखा था।
27 अगस्त 1984 पिता की हुई हत्या
बृजेश सिंह का जन्म वाराणसी के धरहरा गाँव में हुआ था। बृजेश के पिता रविन्द्र सिंह इलाके के रसूखदार लोगों में गिने जाते थे। पढ़ाई-लिखाई में भी बृजेश का रिकार्ड अच्छा था। दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में बृजेश सिंह फर्स्ट डिविजन से पास हुआ था। उसके बाद बृजेश ने यूपी कॉलेज से बीएससी में एडमिशन लिया।
पढ़-लिख कर कुछ बनने का ख्वाब लिए यूपी कॉलेज पहुंचे बृजेश सिंह के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब 27 अगस्त 1984 को गाँव में उसके पिता रविन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई। पिता की मौत का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह ने शिक्षा-दीक्षा को किनारे कर हथियार उठा लिया।
पिता की मौत का बदला लेने के लिए उठाया हथियार
बृजेश सिंह ने पिता की मौत का बदला लेने के लिए करीब एक साल तक सही मौके का इंतजार करता रहा। आखिरकार 27 मई 1985 को सरेआम अपने पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया। यह पहला मौका था जब बृजेश के खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज हुआ।
इस घटना के बाद बृजेश सिंह फरार हो गया लेकिन उसका गुस्सा शांत नहीं होता है। उसे उन लोगों की भी तलाश थी जो उसके पिता की हत्या में हरिहर के साथ मिले हुए थे। एक दिन अचानक 9 अप्रैल 1986 को वाराणसी के सिकरौरा गांव में लगातार फायरिंग की आवाज सुनाई देती है, असल में ये कोई और नहीं बल्कि बृजेश सिंह था, जिसने अपने पिता की हत्या में शामिल रहे पांच लोगों को एक साथ गोलियों से भून डाला था। इस वारदात को अंजान देने के बाद पहली बार बृजेश गिरफ्तार हुआ।
बृजेश सिंह ने अपराध की दुनिया में कदम भले ही अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए रखा था लेकिन जेल जाते ही जब उसकी मुलाकात गाजीपुर के पुराने हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह से हुई और उसने अपराध की दुनिया की बुनियादी तालीम ली।अपराध जगत में एंट्री और त्रिभुवन-बृजेश गैंग के बढ़ते दबदबे के साथ ही दूसरे स्थानीय गिरोहों के साथ उनकी वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। यहीं से नींव पड़ी बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की बहुचर्चित दुश्मनी की।
मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह की दुश्मनी
पूर्वांचल के सभी माफिया गिरोहों की तरह बृजेश और मुख्तार दोनों के गैंगों के बीच पीडब्ल्यूडी, जमीन, शराब, बालू खनन, सिंचाई, कोयला, ट्रांसपोर्ट और रेलवे में से जुड़े ठेके हासिल करने के लिए होड़ रहती थी। इन ठेकों की वजह से हुई वर्चस्व की लड़ाइयों में में सैकड़ों व्यापारी, पुलिसकर्मी और अपराधी मारे गए। मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह दोनों ने कई बार एक दूसरे को जान से मरवाने की कोशिश की है। दोनों की दुश्मनी अब भी जारी है।
लेकिन बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी की ताकतों को आंकने में गलती कर दी थी। मुख्तार अंसारी राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत था। ठेकेदारी और कोयले के कारोबार को लेकर दोनों गैंग के बीच कई बार गोलीबारी हुई। इस दौरान मुख्तार अंसारी के प्रभाव की वजह से बृजेश पर पुलिस और नेताओं का दबाव बढ़ने लगा बृजेश के लिए कानूनी तौर पर काफी दिक्कतें पैदा होने लगी थी। इन सब के बीच बृजेश सिंह यूपी छोड़कर मुंबई भाग जाता है।
मुंबई में बृजेश की मुलाकात सुभाष ठाकुर से होती है, सुभाष ठाकुर खुद एक अपराधी था जिसका ताल्लुक अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की गैंग से था। सुभाष ठाकुर के ही जरिए बृजेश की मुलाकात दाऊद से होती है और वो डी कंपनी में शामिल हो जाता है।
दाऊद से दोस्ती की कहानी
डी कंपनी उन दोनों दाऊद के बहनोई के हत्यारे को खोजने में लगी थी। लेकिन डी कंपनी को उस वक्त हत्यारों से बदला लेने के लिए एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो मुंबई में नया हो। जब ये बात बृजेश सिंह को पता चलती है तो वो डी कंपनी में अपना कद बढ़ाने के लिए और दाऊद का खास बनने के लिए इस घटना को अंजाम देने के लिए तैयार हो जाता है। ये वही घटना हो जो मुंबई के अंडरवर्ल्ड के इतिहास के ब़ड़ी घटनाओं में शामिल है। ये घटना जिसे जेजे हॉस्पिटल शूटआउट कांड के नाम से जाना जाता हैं। मुंबई पुलिस की रिकॉर्ड में बृजेश का नाम इस घटना में शामिल है।
सितंबर 1992 की एक रात 20 से ज़्यादा लोग अचानक बंबई (मुंबई) के जेजे अस्पताल के वार्ड नम्बर 18 में घुस जाते हैं। कहते हैं जिसकी अगुवाई बृजेश सिंह कर रहा था और वो डॉक्टर की भेष में हॉस्पिटल के अंदर गया था। और बिस्तर पर लेटे शैलेष हलदरकर और तीन लोगों को गोलियों से भून देते हैं। हलदरकर बंबई के अरुण गवली गैंग के सदस्य था और इसे दाऊद के बहनोई के मर्डर के बदले मारा जाता है।
इस घटना में वार्ड की पहरेदारी कर रहे मुंबई पुलिस के दो हवलदार भी मारे गए थे। जेजे अस्पताल शूट-आउट में पहली बार एके 47 का इस्तेमाल कर 500 से ज़्यादा गोलियां चलाई गई थीं। घटना के बाद बृजेश पर टाडा के तहत लंबा मुक़दमा चला और सितंबर 2008 में उन्हें सबूतों की कमी के वजह से छोड़ दिया गया, लेकिन इस मामले ने बृजेश को पूर्वांचल के एक गैंगस्टर से पूरे देश में एक बड़े डॉन के तौर पर स्थापित कर दिया था।
बृजेश सिंह ने डी कंपनी से बनाई दूरी
इस घटना के बाद कहते हैं बृजेश से दाऊद काफी खुश हुआ था और दोनों नजदीक आने लगे थे लेकिन इसी बीच में 1993 में मुंबई ब्लास्ट हो जाता है। कहते हैं कि अगर मुंबई ब्लास्ट ना हुआ तो बृजेश दाऊद के बहुत करीबी और खास लोगों में से एक होता। लेकिन 1993 के बाद डी कंपनी के ज्यादातर लोग मुंबई छोड़ देते हैं और दाऊद भी देश को छोड़कर चला जाता है। जिसके बाद बृजेश डी कंपनी से दूरी बना लेता है। लेकिन जुर्म की दुनिया में वो सक्रिय रहा है।
बृजेश सिंह के बारे में एक बात मशहूर थी कि वो आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के लिए या खुद को पुलिस से बचाने के लिए बहरुपिया बन जाता था। इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि सात सालों तक बृजेश सिंह नाम और पहचान छुपाकर भुवनेश्वर में अरुण कुमार बनकर रह रहा था। इधर यूपी में इस बात की अफवाह थी कि उसकी हत्या हो गई है। लेकिन मामले का खुलासा तब हुआ जब 2008 में भुवनेश्वर से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसको गिरफ्तार किया। फिर उन पर इकट्ठा हो चुके 30 से ज्यादा मुकदमों की सुनवाई देश की अलग-अलग अदालतों में शुरू हुई।
आइए नजर डालते हैं बृजेश सिंह के कुख्यात अपराधों की लिस्ट पर
- 1985 में अपने पिता के तथाकथित हत्यारे हरिहर सिंह की हत्या की।
- 9 अप्रैल 1986 को वराणसी के सिकरौरा गांव में पिता की हत्या में शामिल पांच अन्य लोगों की हत्या की।
- 1990 के दशक में बृजेश सिंह ने धनबाद के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के कारोबार की देखभाल करने के लिए उनके शूटर की तरह काम करने लगे और 6 हत्याओं में नामजद हुआ।
- सितंबर 1992 में दाऊद गैंग के साथ मिलकर जेजे अस्पताल शूटआउट घटना को अंजाम दिया।
- 2003 में सूर्यदेव सिंह के ही बेटे राजीव रंजन सिंह के अपहरण और हत्याकांड में मास्टरमाइंड के तौर पर बृजेश का नाम आया।
- बृजेश सिंह का 2001 के गाजीपुर के उसरी चट्टी कांड में नाम सामने आया।
- दोस्त त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश सिंह ने पुलिस वाला बनकर गाजीपुर के एक अस्पताल में इलाज करा रहे साधू सिंह को को गोलियों से भून डाला था।
- 2016 में दिए गए अपने चुनावी शपथपत्र के अनुसार बृजेश सिंह पर अब भी 11 मुकदमे चल रहे हैं।
बात करें बृजेश सिंह की राजनीति पारी की बात करें तो वो कुछ खास नहीं है। 2012 में बृजेश चंदौली की सैय्दयराजा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गया। लेकिन इसके बाद बृजेश ने अपनी पत्नी अन्नपूर्णा को एमएलसी बनवाकर राजनीति में पिछले दरवाजे से ही सही एंट्री ले ली। वर्तमान में बृजेश सिंह वाराणसी सेंट्रल जेल में बंद है और साथ-साथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट वाराणसी से एमएलसी भी हैं। बृजेश सिंह जेल में भले ही बंद हो लेकिन पूर्वांचल में बृजेश सिंह और उनके किस्से आज भी आम हैं।