मुंबई का अंडरवर्ल्ड डॉन व माफिया नेता अरुण गवली, जिसका दाऊद के साथ चलता था गैंगवार, सुपारी किंग और डैडी के नाम से था मशहूर

By पल्लवी कुमारी | Updated: September 9, 2019 10:15 IST2019-09-09T10:15:33+5:302019-09-09T10:15:33+5:30

अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली की जीवनी: महाराष्ट्र और मुंबई की गलियों में अरुण गवली अब सिर्फ एक नाम बनकर रह गया है। फिलहाल गवली नागपुर सेंट्रल जेल में शिवसेना पार्षद कमलाकर जमसांदेकर की हत्या के मामले में सजा काट रहा है।

Arun Gawli biography mumbai underworld don know history of Gawli as a daddy | मुंबई का अंडरवर्ल्ड डॉन व माफिया नेता अरुण गवली, जिसका दाऊद के साथ चलता था गैंगवार, सुपारी किंग और डैडी के नाम से था मशहूर

अरुण गवली (फाइल फोटो)

Highlightsअरुण गवली का जन्म 17 जुलाई 1955 को अहमदनगर जिले में हुआ था। उसके बचपन का नाम अरुण गुलाबराव अहीर था 2004 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अरुण गवली ने अपने कई उम्मीदवार उतारे और खुद भी चिंचपोकली सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया।

हमेशा सफेद टोपी और सफेद कुर्ता पहनने वाला महाराष्ट्रमुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन, गैंगस्टर और माफिया नेता अरुण गवली सेंट्रल मुम्बई की दगली चॉल में रहा रहता था। दावा किया जाता है कि पुलिस भी वहां उसकी इजाजत के बिना नहीं जाती थी। वहां गवली की सुरक्षा में हर समय हथियार बंद लोग तैनात रहते थे। 1990 में जब मुंबई में गैंगवार जोरों पर था, तब सारे गैंगस्‍टरों के बीच अरुण गवली ही था, जो मुंबई छोड़कर नहीं गया था। गवली पर बनी फिल्म की पोस्टर डैडी की टैगलाइन भी कहती है- THE ONLY WHO DIDNOT RUN यानी इकलौता शख्स, जो भागा नहीं। मुंबई के मामूली से चॉल में रहने वाला लड़का मायानगरी पर राज करने लगता है। पूरे महाराष्ट्र में ये डैडी ने नाम से मशहूर हो जाता है। गवली के जीवन के ऊपर मराठी और हिंदी में फिल्म भी बन चुकी है। गवली ने करीब तीन दशकों तक अंडरवर्ल्ड की दुनिया में रहा। गवली पर मर्डर, वसूली, किडनैपिंग जैसे दर्जनों मामले दर्ज हैं।

अंडरवर्ल्ड की दुनिया में कैसे पहुंचा अरुण गवली

अरुण गवली का जन्म 17 जुलाई 1955 को अहमदनगर जिले में हुआ था। उसके बचपन का नाम अरुण गुलाबराव अहीर था। गवली के डॉन बनने की कहानी 1970 के दशक से शुरू होती है, जब मुंबई टेक्सटाइल मिल्स में ताला लग गया था। लाखों मजदूर बेरोजगार हुये भूखमरी बढ़ी। तभी चॉल में रहने वाले मजदूर अंडरवर्ल्ड की चपेट में आने लगे। इसी में से एक था अरुण गवली। पैसा कमाने के लिए गवली ने शॉटकट अपनाया हफ्ता वसूली शुरू किया। वसूली करते-करते गवली रामा नाइक, बाबू रेशीम के साथ मिलकर बीआर गैंग बनाई। रामा नाइक और गवली दोनों अच्छे दोस्त थे। रामा नाइक को अंडरवर्ल्ड के धंधे के बारे अच्छी जानकारी थी इसलिए गवली उसकी बातें सुनता था। 

जब अरुण गवली की दाऊद से हुई मुलाकात

1984 में, रामा नाइक ने दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी को उसके आपराधिक गतिविधियों में मदद की। इसी बीच गवली की मुलाकात दाऊद से भी होती है। 1987 के में नाइक पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था। रामा नाइक की मौत के बाद दगली चॉल में बनी गैंग बीआर का धंधा अपने हाथ में लिया। गवली को ऐसा लगता था कि जिस एनकाउंटर में नाइक की मौत हुई थी, उसकी प्लानिंग दाऊद ने की थी और तभी से 1987 से 1990 तक डी कंपनी और गवली की गैंग में गैंगवार की शुरुआत हुई थी। इसी हीच दाऊद की बहन हसीना पारकर के पति इब्राहिम पारकर को गवली ने मार दिया था। बदले की आग में 1990 में दाऊद ने गवली के बड़े भाई किशोर की हत्या करवा दी थी।

सारे गैंग का मुंबई से जाने का फायदा अरुण गवली को हुआ

गवली को ये बात पता थी कि वो कितना भी गैंगवार कर ले लेकिन मुंबई का बेताज बादशाह सिर्फ दाऊद ही थी। लेकिन मुंबई में 1993 में हुए धमाकों से पहले ही दाऊद भारत छोड़ दुबई चला गया था। दाऊद के दुबई जाने के बाद उसका गैंग भी टूटने लगा। धमाकों की वजह से ही दाऊद और उसका राइट हैंड माने जाने वाला छोटा राजन अलग हुये। छोटा राजन भी मुंबई से मलेशिया चला गया। इस तरह इन सभी के चले जाने का फायदा गवली को मिला।

मुंबई से ज्यादातर अंडरवर्ल्ड डॉन भाग चुके थे। अब मुंबई में गवली का सामना अमर नाइक की गैंग से था। ये अपनी गैंग को सात रास्ता के लाल विटाची चाल से संभालता था।दोनों के बीच मुंबई के तख्त को लेकर गैंगवार शुरू हुई। गवली के शार्पशूटर रवींद्र सावंत ने अप्रैल 1994 को अमर नाइक के भाई अश्विन नाइक पर जानलेवा हमला किया लेकिन वह बच निकला। इसके बाद मुंबई पुलिस ने अगस्त 1996 को गवली के दुश्मन अमर नाइक को एक एनकाउंटर में मार गिराया और उसके बाद अश्विन नाइक को भी गिरफ्तार कर लिया गया। बस तभी से मुंबई पर गवली का राज चलने लगा।

गवली के गैंग में तकरीबन 800 लोग काम करते थे

दगली चॉल को गवली ने बिल्कुल एक किले की तरह बनाया। जिसके दरवाजे 15 फीट के थे। वहां गवली के हथियार बंद लोग हमेशा तैनात रहा करते थे। कई मीडिया रिपोर्ट ने दावा किया है कि गवली के गैंग में तकरीबन 800 लोग थे। उन सभी को हथियार चलाने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती थी। सभी को हर महीने वेतन भी दिया जाता था। मुंबई के कई बिल्डर और व्यापारी अपने कारोबार को बढ़ाने और दुश्मनों को खात्मा करने के लिए गवली की मदद लेते थे। गवली ने इस काम से खूब पैसा बनाया।

मंबुई में गवली ने सुपारी लेने का भी काम शुरू किया। पुलिस की माने तो ऐसे कई मामले थे जिनमें गवली ने सुपारी लेकर हत्या और मारपीट की घटनाओं को अंजाम दिया था। लेकिन सबूत और गवाहों की कमी के चलते वो हर बार बच जाता था। उसका प्रभाव इतना बढ़ गया था कि लोग उसे सुपारी किंग कहने लगे थे। गवली को कई बार गिरफ्तार भी हो चुका था। लम्बे समय तक उसे जेल में भी रहना पड़ा था। लेकिन बहुत से केसों में सबूत ना होने की वजह से उसे छोड़ दिया जाता था। दावा किया जाता है कि गवली के हर बार बचकर निकलने में पुलिस का भी हाथ था।

अरुण गवली को हमेशा रहता था कानून का डर 

अंडरवर्ल्ड में धाक जमाने वाले गवली को फिर भी हमेशा कानून का डर रहता था। उसे पता था कि एक ना एक दिन पुलिस उसपर शिकंजा जरूर कसेगी। ऐसे में उसने राजनीति की शरण में जाना सबसे आसान दिखा। इसी की वजह से उसने साल 2004 में अखिल भारतीय सेना के नाम से एक पार्टी बनाई। 2004 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में गवली ने अपने कई उम्मीदवार उतारे और खुद भी चिंचपोकली सीट से चुनाव लड़ा और जीत गया।एक समय था जब शिवसेना गवली की सहायता करती थी। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने एक रैली में कहा था कि अगर पकिस्तान के पास दाऊद है, तो भारत के पास गवली है। लेकिन कुछ वजह से शिवसेना और गवली के रिश्तो में दरार आ गई थी।

शिवसेना पार्षद की हत्या के आरोप में अरुण गवली जेल में बंद 

विधायक बन जाने के बाद अरुण को इस बात का घमंड हो गया कि पुलिस उसे अब गिरफ्तार नहीं कर सकती है। 2008 में गवली ने शिवसेना पार्षद कमलाकर जमसांदेकर की हत्या की सुपारी ली और उसका मर्डर करवा दिया। इस हत्या के लिये गवली ने 30 लाख रुपये की सुपारी ली थी। 2008 में ही शिवसेना पार्षद की हत्या मामले में गवली को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जिसे 2012 में हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। यह पहली मौका था जब गवली को किसी अदालत ने दोषी मानकर सजा सुनाई थी।

फिलहाल गवली नागपुर सेंट्रल जेल में काट रहा है। जेल जाने के बाद गवली गैंग का भी मुंबई पुलिस ने सफाया कर दिया था। लेकिन 2018 के अगस्त महीने में वो फिर से चर्चा में आये थे। जब गांधीवाद की परीक्षा में जेल में रहते हुये गवली ने टॉप किया था। नागपुर सेंट्रल जेल में 1 अक्टूबर, 2017 को गांधीवाद से जुड़ी परीक्षा हुई थी, जिसमें कुल 160 कैदियों ने भाग लिया था। जिसमें से गवली ने 80 में से 74 सवालों का सही जवाब दिया और परीक्षा में टॉप किया था। सहयोग ट्रस्ट के ट्रस्टी रवींद्र भूसरि ने मीडिया से बात करते हुये उस वक्त कहा था- हमें खुशी है कि गवली ने जेल में गांधीवाद के सिद्धांतों को आत्मसात करने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं।

Web Title: Arun Gawli biography mumbai underworld don know history of Gawli as a daddy

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