मुंबई, छह अगस्त पूंजी बाजार नियामक सेबी ने शुक्रवार को प्रवर्तक से नियंत्रणकारी हिस्सेदार की धारणा को अपनाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक सहमति जतायी। साथ ही आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के बाद प्रर्वतकों के लिये न्यूनतम ‘लॉक इन’ अवधि कम करने का निर्णय किया।
निदेशक मंडल की बैठक के बाद भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एक बयान में कहा कि समूह की कंपनियों के लिये खुलासा नियमों को दुरुस्त करने का भी निर्णय किया गया है।
सेबी ने ‘लॉक इन’ अवधि के बारे में कहा कि यदि निर्गम के उद्देश्य में किसी परियोजना के लिए पूंजीगत व्यय के अलावा अन्य बिक्री पेशकश या वित्तपोषण का प्रस्ताव शामिल है, तो आरंभिक सार्वजनिक निर्गम और अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) में आबंटन की तारीख से प्रवर्तकों का न्यूनतम 20 प्रतिशत का योगदान 18 महीने के लिये ‘लॉक’ किया जाना चाहिए। वर्तमान में, ‘लॉक-इन’ अवधि तीन वर्ष है।
सेबी के अनुसार इसके अलावा, इन सभी मामलों में, प्रवर्तक की न्यूनतम योगदान से ऊपर की हिस्सेदारी मौजूदा एक वर्ष के बजाय छह महीने के लिए अवरूद्ध हो जाएगी।
सेबी निदेशक मंडल ने एक सहज, प्रगतिशील और समग्र तरीके से प्रवर्तक की अवधारणा से 'नियंत्रणकारी शेयरधारक’ को अपनाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।