बैंकों को आईबीसी के तहत निजी गारंटर के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत देने वाली अधिसूचना बरकरार
By भाषा | Updated: May 21, 2021 18:10 IST2021-05-21T18:10:21+5:302021-05-21T18:10:21+5:30

बैंकों को आईबीसी के तहत निजी गारंटर के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत देने वाली अधिसूचना बरकरार
नयी दिल्ली, 21 मई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र की उस अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखा, जिसमें बैंकों को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत ऋण वसूली के लिए व्यक्तिगत गारंटरों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति दी गई थी।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि आईबीसी के तहत समाधान योजना की मंजूरी से बैंकों के प्रति व्यक्तिगत गारंटरों की देनदारी खत्म नहीं हो जाती।
न्यायमूर्ति भट ने फैसले के निष्कर्ष को पढ़ते हुए कहा, ‘‘फैसले में हमने अधिसूचना को सही करार दिया है।’’
याचिकाकर्ताओं ने आईबीसी और अन्य प्रावधानों के तहत जारी 15 नवंबर 2019 की अधिसूचना को चुनौती दी थी, जो कॉरपोरेट देनदारों को व्यक्तिगत गारंटी देने वालों से संबंधित हैं।
अधिसूचना की वैधता को बरकरार रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी कंपनी के लिए दिवालिया समाधान योजना शुरू होने से व्यक्तियों द्वारा वित्तीय संस्थानों के बकाया भुगतान के प्रति दी गई कॉरपोरेट गारंटी खत्म नहीं होती।
न्यायमूर्ति भट ने फैसले में लिखा, ‘‘यह स्वीकार किया जाता है कि एक समाधान योजना (आईबीसी के तहत एक बीमार कंपनी के पुनरुद्धार के लिए) की मंजूरी से कोई निजी गारंटर (एक कॉरपोरेट कर्जदार का) गारंटी अनुबंध के तहत अपनी देनदारियों से स्वत: मुक्त नहीं हो जाता।’’
पीठ ने कहा कि उक्त अधिसूचना ‘‘कानूनी और वैध’’ है और कॉरपोरेट कर्जदार से संबंधित समाधान योजना की मंजूरी का कॉरपोरेट ऋणों के व्यक्तिगत गारंटरों की देनदारियों से संबंध नहीं है।
यह फैसला करीब 75 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया, जिनमें से कुछ स्थानांतरण याचिकाएं भी थीं। इन याचिकाओं को विभिन्न कंपनियों और उन लोगों द्वारा दाखिल किया गया था, जिन्होंने कंपनियों को दिए गए कर्ज के बदले में बैंकों या वित्तीय संस्थानों को अपनी व्यक्तिगत गारंटी दी थी।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।