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जगन मोहन की प्रधान से मुलाकात; विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र का निजीकरण नहीं करने का आग्रह किया

By भाषा | Updated: June 11, 2021 21:33 IST

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नयी दिल्ली, 11 जून आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी ने शुक्रवार को केंद्रीय इस्पात और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान से मुलाकात की तथा उनसे विशाखापत्तनम इस्पात संयंत्र (वीएसपी) का निजीकरण नहीं करने का आग्रह किया।

आधिकारिक बयान के अनुसार दो दिन के लिये दिल्ली आये रेड्डी ने दूसरे दिन प्रधान के साथ बैठक में काकीनाडा पेट्रो परिसर और वीएसपी पर बातचीत की।

बैठक में मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से वीएसपी का निजीकरण रोकने की अपील की और कारखाने को पटरी पर लाने के लिये राज्य द्वारा सुझाये गये विकल्पों पर गौर करने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि वीएसपी में 20,000 लोग कार्यरत हैं और कारखाने से हजारों लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। कंपनी ने अच्छा प्रदर्शन किया और 2002 और 2015 के बीच मुनाफा कमाया।

रेड्डी ने कहा कि ऋण लेकर कारखाने का विस्तार हुआ है, लेकिन 2014-15 के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में नरमी के कारण, कंपनी बढ़ती परिचालन लागत और खुद की खदानों की कमी के कारण कर्ज में डूब गई।

उन्होंने ओड़िशा में वीएसपी के उपयोग के लिये खदान आबंटित करने का अनुरोध किया जो कारखाने को पटरी पर लाने में मदद करेगा। उन्होंने वीएसपी के वित्त के पुनर्गठन को लेकर अन्य उपायों का भी सुझाव दिया। इसके तहत सभी अल्पकालिक और दीर्घकालिक ऋणों को इक्विटी में परिवर्तित किया जा सकता है। इससे कर्ज का बोझ कम होगा।

कारखाने के ऊपर 22,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। इस पर 14 प्रतिशत की उच्च दर से ब्याज लगता है। इस कर्ज को इक्विटी में तब्दील कर दिया जाए और इकाई को शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जाए, तो इससे ब्याज बोझ पूरी रह से खत्म हो जाएगा। बैंक भी शेयर बाजार के जरिये अपनी हिस्सेदारी भुना सकेंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वीएसपी ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान 7,000 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की है, जिससे कठिन समय में लोगों की जान बचाने में मदद मिली।

उन्होंने कहा काकीनाडा पेट्रो परिसर पर चर्चा करते हुए कहा कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के तहत काकीनाडा एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) में एक पेट्रो परिसर स्थापित करने का वादा किया गया था।

परियोजना के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की एचपीसीएल-गेल ने विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की है। इसके तहत 32,900 करोड़ रुपये की लागत से 10 लाख टन की क्षमता की परियोजना लगाने का प्रस्ताव किया गया है।

मुंख्यमंत्री के अनुसार केंद्र ने परियोजना को व्यवहारिक बनाने को लेकर 15 साल के लिए प्रति वर्ष 975 करोड़ रुपये मांगे हैं। उन्होंने इसमें कटौती का आग्रह करते हुए कहा कि राज्य वर्तमान परिस्थितियों में इस तरह का बोझ नहीं उठा सकता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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