नयी दिल्ली, नौ सितंबर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कराधान व्यवस्था में किसी तरह की धारणा या अनुमान की गुंजाइश नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सुविधाजनक और सुगम कर प्रणाली बनाना सरकार की जिम्मेदारी है जिससे व्यक्ति या कंपनियां अपना बजट और योजना बना सकें।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि उचित संतुलन हासिल हो, तो राजस्व सृजन से समझौता किए बिना अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सकता है।
न्यायालय ने बैंकों द्वारा केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपीलों के बैच को अनुमति देते हुए व्यवस्था दी कि ऐसी स्थिति में जब बैंकों के पास उपलब्ध उनका खुद का ब्याज मुक्त कोष उनके निवेश से अधिक हो जाये तब करमुक्त बांड/प्रतिभूतियों में किए गए निवेश पर आयकर कानून की धारा 14ए के तहत आनुपातिक ब्याज को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे बांड या प्रतिभूतियों में निवेश पर आकलनकर्ता बैंकों को करमुक्त लाभांश और ब्याज मिलता है। धारा 14ए आय के संदर्भ में ऐसे खर्च से संबंधित है जिसे कुल आय में शामिल नहीं किया जाता।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और ऋषिकेश रॉय ने अपने 22 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘‘इस निष्कर्ष के साथ, हम बिना हिचकिचाहट के आईटीएटी द्वारा आकलनकर्ताओं के पक्ष में लिये गये विचार से सहमत हैं।’’
18वीं शताब्दी के अर्थशास्त्री एडम स्मिथ के कार्य ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि कराधान व्यवस्था में किसी तरह की कल्पना की गुंजाइश नहीं होती और कुछ भी अंतर्निहित नहीं माना जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘व्यक्तिगत या कॉरपोरेट कर का भुगतान करने की जरूरत होती है। यह करदाता के लिए योजना बनाने की बात है। ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इसे सुविधाजनक और सुगम बनाए जिससे अनुपालन को अधिकतम किया जा सके।
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