50 प्रतिशत शुल्क का असर नहीं, बूम-बूम इंडियन इकॉनमी?, एडीबी, फिच और मूडीज रेटिंग्स देख और घबराएंगे ट्रंप
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 30, 2025 13:10 IST2025-09-30T13:07:42+5:302025-09-30T13:10:24+5:30
अप्रैल में जारी एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के एशियाई विकास परिदृश्य (एडीओ) में सात प्रतिशत की उच्च वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया था।

सांकेतिक फोटो
नई दिल्लीः एडीबी ने मंगलवार को कहा कि पहली तिमाही में 7.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के चालू वित्त वर्ष 2025-26 में 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है क्योंकि भारतीय निर्यात पर अमेरिकी शुल्क का प्रभाव विशेष रूप से दूसरी छमाही की संभावनाओं को कम करेगा। उल्लेखनीय है कि अप्रैल में जारी एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के एशियाई विकास परिदृश्य (एडीओ) में सात प्रतिशत की उच्च वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया था।
इसे भारत से आने वाले माल पर अमेरिका के 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने की चिंता के कारण जुलाई की रिपोर्ट में घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया था। एडीओ सितंबर 2025 ने कहा कि वित्त वर्ष 2025-26 की पहली (अप्रैल-जून) तिमाही में बेहतर खपत और सरकारी व्यय के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.8 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि हुई है,
लेकिन भारतीय निर्यात पर अतिरिक्त अमेरिकी शुल्क से वृद्धि में कमी आएगी..खासकर वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी छमाही और वित्त वर्ष 2026-27 में.., हालांकि लचीली घरेलू मांग और सेवा निर्यात प्रभाव को कम कर देंगे। रिपोर्ट के अनुसार, शुल्क लागू होने के कारण निर्यात में कमी का असर वित्त वर्ष 2025-26 और 2026-27 दोनों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर पड़ेगा।
इसके परिणामस्वरूप शुद्ध निर्यात अप्रैल में पहले के अनुमान से अधिक तेजी से घटेगा। इसमें साथ ही कहा गया है कि कर राजस्व वृद्धि में कमी के कारण राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.4 प्रतिशत के बजट अनुमान से अधिक रहने की संभावना है।
इसका आंशिक कारण माल एवं सेवा कर (जीएसटी) में कटौती है जिसे मूल बजट में शामिल नहीं किया गया था जबकि व्यय के स्तर को बनाए रखने का अनुमान है जिससे घाटा बढ़ेगा। एडीबी ने कहा कि फिर भी घाटा वित्त वर्ष 2024-25 में दर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 4.7 प्रतिशत से कम रहने का अनुमान है।
मूडीज ने स्थिर परिदृश्य के साथ भारत की रेटिंग बीएए पर बरकरार रखी
मूडीज रेटिंग्स ने सोमवार को भारत के लिए 'स्थिर' परिदृश्य के साथ दीर्घकालिक स्थानीय और विदेशी मुद्रा जारीकर्ता रेटिंग और स्थानीय मुद्रा वरिष्ठ असुरक्षित रेटिंग को बीएए3 पर बरकरार रखा। स्थानीय-मुद्रा और विदेशी-मुद्रा जारीकर्ता रेटिंग, किसी देश की समग्र ऋण-पात्रता और दायित्वों को पूरा करने की क्षमता को बताती है।
वहीं स्थानीय मुद्रा वरिष्ठ असुरक्षित रेटिंग, उधारकर्ता की असुरक्षित ऋण चुकाने की क्षमता को दर्शाती है। यह कर्ज लेने वाले की अपनी मुद्रा में ऐसा ऋण होता है जिसके लिए कोई गारंटी नहीं होती। इसके साथ वैश्विक रेटिंग एजेंसी ने भारत की अन्य अल्पकालिक स्थानीय मुद्रा रेटिंग को भी पी-3 पर कायम रखा। एक बयान में कहा गया, ''रेटिंग की पुष्टि और स्थिर परिदृष्य हमारे इस विचार को दर्शाते हैं कि भारत की मौजूदा ऋण क्षमताएं बनी रहेंगी। इनमें देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, मजबूत बाहरी स्थिति और मौजूदा राजकोषीय घाटे के लिए स्थिर घरेलू वित्तपोषण आधार शामिल है।''
रिपोर्ट में कहा गया कि ये मजबूती प्रतिकूल बाहरी रुझानों के प्रति लचीलापन प्रदान करती है, खासकर जब उच्च अमेरिकी शुल्क और अन्य अंतरराष्ट्रीय नीतिगत उपाय भारत की विनिर्माण निवेश आकर्षित करने की क्षमता में बाधा डालते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत की ऋण क्षमता राजकोषीय पक्ष की दीर्घकालिक कमजोरियों से संतुलित है।
इसके मुताबिक अच्छी जीडीपी वृद्धि और क्रमिक राजकोषीय मजबूती सरकार के उच्च ऋण बोझ में बहुत कम कमी कर पाएगी। निजी उपभोग को बढ़ावा देने के हाल के राजकोषीय उपायों ने सरकार के राजस्व आधार को कम कर दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया कि भारत की दीर्घकालिक स्थानीय-मुद्रा (एलसी) बॉन्ड सीमा ए2 पर अपरिवर्तित बनी हुई है और इसकी दीर्घकालिक विदेशी-मुद्रा (एफसी) बॉन्ड सीमा ए3 पर अपरिवर्तित बनी हुई है। इससे पहले 14 अगस्त को, एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की सरकारी साख को 'बीबीबी-' से एक पायदान बढ़ाकर 'बीबीबी' कर दिया था।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 6.5 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने में कोई चुनौती नहीं : एमपीसी सदस्य
भारतीय अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही है और चालू वित्त वर्ष (2025-26) में इसे 6.5 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर हासिल करने में किसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य नागेश कुमार ने कही। कुमार ने कहा कि दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में भारत की स्थिति बेहतर बनी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, एक-तिहाई से ज़्यादा वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं ऋण संकट से जूझ रही हैं... औद्योगिकीकृत अर्थव्यवस्थाएं भारी दबाव, ऊंची मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि में सुस्ती का सामना कर रही हैं।’’ कुमार ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात या व्यापार से अधिक घरेलू खपत और घरेलू निवेश पर टिकी है। इस वजह से आज भी भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे चालू वित्त वर्ष और अगले साल भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.5 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ने की राह में कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘और, आप जानते हैं, उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी इस तरह की वृद्धि जारी रहेगी, और एक समय यह सात से 7.5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी।’’
पिछले वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में भी देश की अर्थव्यवस्था इसी दर से बढ़ेगी। मुद्रास्फीति पर एक सवाल पर कुमार ने कहा कि वर्तमान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति लगभग दो प्रतिशत है और यह काफी हद तक एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) या आरबीआई द्वारा अपनाई गई नीति का परिणाम है। और अब यह लक्ष्य के दायरे में आ गई है।
यह पूछे जाने पर कि क्या आरबीआई के लिए आगे दरों में कटौती की गुंजाइश है, उन्होंने कहा, ‘‘यह केवल मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर ही नहीं, बल्कि सभी विभिन्न वृहद आंकड़ों पर निर्भर करेगा।’’ अगर मुद्रास्फीति किसी महीने में दो प्रतिशत तक नीचे आ जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि यह इसी स्तर पर रहेगी।’’
केंद्रीय बैंक ने इस साल प्रमुख नीतिगत दर रेपो में एक प्रतिशत की कटौती की है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि जून में मुख्य मुद्रास्फीति चार प्रतिशत के लक्ष्य के मुकाबले घटकर 2.1 प्रतिशत रह गई है। आरबीआई की छह सदस्यीय मौद्रिक समिति अगस्त में अपनी अगली द्विमासिक नीति की घोषणा करने वाली है।
कुमार ने कहा, ‘‘इसलिए, एमपीसी न केवल मुद्रास्फीति के आंकड़ों, बल्कि अन्य सभी वृहद मापदंडों के रुझान पर भी गौर करेगी। इन्हीं के आधार पर एमपीसी को किसी निष्कर्ष पर पहुंचना होगा।’’ सरकार ने आरबीआई को मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य दिया है।
अमेरिका के साथ भारत के प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर एक सवाल के जवाब में, कुमार ने कहा, ‘‘अगर हम इस समझौते को पूरा कर पाते हैं, तो हमें श्रम-प्रधान क्षेत्र में अमेरिका के विशाल बाजार तक पहुंच प्राप्त होगी, जहां भारत को अपने प्रचुर श्रम संसाधनों के कारण प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त है।’’
उन्होंने बताया कि भारत को अपने कृषि क्षेत्र, डेयरी क्षेत्र और कुछ अन्य क्षेत्रों को खोलने को लेकर कुछ चिंताएं हैं। यह देखते हुए कि व्यापार वार्ताएं लेन-देन पर आधारित होती हैं, उन्होंने कहा, ‘‘कुछ बातों को ध्यान में रखते हुए, हम बाजार खोलने पर सहमत होते हैं, लेकिन एक कोटा निर्धारित किया जा सकता है।
इससे भागीदार देश को सीमित मात्रा में शुल्क लाभ सीमित अवधि के लिए मिलेगा।’’ देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर एक सवाल के जवाब में कुमार ने कहा कि जहां तक कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का संबंध है तो यह 71 अरब डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 81 अरब डॉलर पर पहुंच गया है, तो अच्छी वृद्धि है।
उन्होंने कहा कि शुद्ध एफडीआई का आंकड़ा कम है, क्योंकि बाहर अधिक निवेश जा रहा है। जब तक कुल एफडीआई प्रवाह अच्छा रहता है, मैं इसको लेकर अधिक चिंतित नहीं हूं। अंकटाड की ताजा वैश्विक निवेश रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक एफडीआई प्रवाह 2024 में 11 प्रतिशत घटकर 1,500 अरब डॉलर रहा है। यह लगातार दूसरा साल है जबकि वैश्विक एफडीआई प्रवाह में गिरावट आई है।
फिच ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की वृद्धि दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत किया
फिच रेटिंग्स ने जून तिमाही की मजबूत वृद्धि और घरेलू मांग के चलते चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है। इससे पहले फिच ने भारतीय अर्थव्यवस्था के 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया था।
अपने सितंबर के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य (जीईओ) में रेटिंग एजेंसी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की मार्च और जून तिमाहियों के बीच आर्थिक गतिविधियों में तेजी से वृद्धि हुई है, और वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर जनवरी-मार्च के 7.4 प्रतिशत से बढ़कर सालाना आधार पर 7.8 प्रतिशत हो गई है।