कच्चे रास्तों से एक्सप्रेसवे तक: बिहार की सड़क क्रांति
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 14, 2025 16:39 IST2025-10-14T16:37:54+5:302025-10-14T16:39:10+5:30
बरसात आते ही हाल और बदतर हो जाते थे। गाँवों से शहर तक पहुँचना एक दिन की लड़ाई बन जाता था।

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पटनाः 90 के दशक और 2000 की शुरुआत में बिहार की पहचान गड्ढों से भरी टूटी–फूटी सड़कों से होती थी। लोग मज़ाक में कहते थे – “बिहार में सड़क खोजो तो गड्ढे के नीचे मिलेगी।” बरसात आते ही हाल और बदतर हो जाते थे। गाँवों से शहर तक पहुँचना एक दिन की लड़ाई बन जाता था।
#WATCH | Bihar | On being announced as party candidate from Bankipur, state minister & BJP leader Nitin Nabin says," I want to thank the party's central and state leadership for having faith in me. I also express my gratitude to the people of Bankipur. There are many issues,… pic.twitter.com/3iivYMpAwt
— ANI (@ANI) October 14, 2025
लालू राज: जब सड़कें सपना थीं
बिहार में नेशनल हाईवे नेटवर्क महज़ 3,400 किमी तक सीमित था।
राज्य की ज़्यादातर ग्रामीण सड़कें कीचड़ और दलदल में बदल जाती थीं।
एम्बुलेंस, स्कूल बस और ट्रक तक गाँवों में फँस जाते थे।
शादी–समारोह, मंडी और अस्पताल तक पहुँचने में घंटों नहीं, कभी–कभी पूरा दिन लग जाता था।
यानी लालू राज में सड़कें सिर्फ़ चुनावी भाषणों का हिस्सा थीं, ज़मीनी हक़ीक़त नहीं। यही कारण था कि शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार सब पीछे छूट गए।
आज का बिहार: ईस्ट इंडिया में नंबर–वन
पिछले एक दशक में बिहार ने सड़क विकास की दिशा में ऐतिहासिक छलांग लगाई है।
नेशनल हाईवे की लंबाई अब 5,500 किमी से ज़्यादा हो गई है।
केंद्र और राज्य मिलाकर ₹1.18 लाख करोड़ से अधिक का निवेश सड़कों में किया जा रहा है।
5 बड़े एक्सप्रेसवे निर्माणाधीन हैं, जो बिहार को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर जोड़ देंगे।
अकेले 2024–25 में बिहार में 1,200 किमी नई सड़कें बनीं, जो झारखंड और ओडिशा की तुलना में दोगुनी रफ़्तार है।
यह आँकड़े बताते हैं कि बिहार अब सड़क नेटवर्क में पूरे पूर्वी भारत का नेतृत्व कर रहा है।
पीएम मोदी की प्राथमिकता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा कहा है कि “बिना आधुनिक सड़क नेटवर्क के बिहार और पूर्वी भारत का विकास अधूरा है।” यही कारण है कि केंद्र सरकार ने बिहार को देश के सबसे बड़े एक्सप्रेसवे पैकेज दिए।
रक्सौल–हल्दिया (407 किमी): नेपाल सीमा से बंगाल के पोर्ट तक सीधी कड़ी।
गोरखपुर–सिलीगुड़ी (417 किमी): उत्तर बिहार को नेपाल और नॉर्थ ईस्ट से जोड़ने वाला।
पटना–पूर्णिया (245 किमी): राजधानी से सीमांचल तक तेज़ सफ़र।
बक्सर–भागलपुर (380 किमी): पश्चिम से पूर्वी बिहार की जीवनरेखा।
वाराणसी–कोलकाता (117 किमी बिहार हिस्सा): पूरे पूर्वी कॉरिडोर की मज़बूती।
इन परियोजनाओं का शिलान्यास और मॉनिटरिंग खुद प्रधानमंत्री ने की है।
नीतीश कुमार की पहल
राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सड़क को विकास का सबसे अहम औज़ार माना। उनकी “हर गाँव को पक्की सड़क” की नीति ने ग्रामीण बिहार का चेहरा बदल दिया।
आज हालात यह हैं कि:
90% से ज़्यादा गाँव पक्की सड़कों से जुड़े हैं।
जिला और प्रखंड स्तर पर चौड़ीकरण और डबल लेन का काम तेज़ी से हुआ।
ग्रामीण सड़क योजना को राज्य सरकार ने मिशन मोड में चलाया।
यानी जहाँ मोदी सरकार ने बिहार को राष्ट्रीय एक्सप्रेसवे दिए, वहीं नीतीश सरकार ने गाँव से प्रखंड और ज़िला तक पक्की सड़कें पहुँचा दीं।
पड़ोसी राज्यों से तुलना
बिहार का मौजूदा सड़क नेटवर्क पड़ोसी राज्यों से कहीं आगे है:
पश्चिम बंगाल: हाईवे नेटवर्क लगभग 4,200 किमी, एक्सप्रेसवे परियोजनाएँ धीमी।
झारखंड: करीब 2,500 किमी हाईवे, सीमित नई परियोजनाएँ।
ओडिशा: 3,200 किमी हाईवे, ज़्यादातर पुराने कॉरिडोर पर निर्भर।
👉 यानी सड़क और एक्सप्रेसवे दोनों मोर्चों पर बिहार अब ईस्ट इंडिया का लीडर है।
जनता को सीधा लाभ
बिहार की सड़क क्रांति का असर हर वर्ग पर पड़ा है।
किसान: अब अपनी उपज बड़े शहरों तक समय पर पहुँचाते हैं, जिससे नुकसान घटा और दाम बढ़ा।
व्यापारी: लॉजिस्टिक्स लागत 25–30% तक घटी है।
युवा: एक्सप्रेसवे निर्माण से हज़ारों रोज़गार बने, आने वाले समय में पर्यटन और उद्योगों से और अवसर खुलेंगे।
आम लोग: पटना से सीमांचल या उत्तर बिहार तक का सफ़र आधे समय में पूरा हो रहा है।
सड़क ही विकास की धुरी
बिहार का यह बदलाव सिर्फ़ डामर और कंक्रीट की परत नहीं है। यह विकास, रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास की धुरी है।
👉 लालू राज में जहाँ सड़कें गड्ढों में गुम थीं, वहीं आज पीएम मोदी की प्राथमिकता और नीतीश कुमार की दूरदृष्टि से बिहार पूर्वी भारत का सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क बना रहा है।
यह यात्रा बताती है कि अगर संकल्प और ईमानदारी हो, तो दशकों की पिछड़न को भी विकास की चौड़ी राहों में बदला जा सकता है।